संघ-मुस्लिम संवाद; संवाद की नींव: अतीत से वर्तमान तक
भारत की ताकत उसकी विविधता में है। यही विविधता कभी हमारी शक्ति बनी तो कभी विभाजन का कारण भी। दशकों तक संघ और मुसलमानों के बीच दूरी को राजनीतिक स्वार्थ और कट्टरपंथी ताकतों ने इतना गहरा कर दिया कि संवाद की कल्पना भी असंभव लगने लगी। परंतु इतिहास यह भी सिखाता है कि संवाद ही वह पुल है जो नफरत की दीवारों को गिरा सकता है।
डॉ. इंद्रेश कुमार। भारत की ताकत उसकी विविधता में है। विविधता में शक्ति, सौन्दर्य, जीवंतता, स्नेह भरपूर होता है। यही विविधता कभी-कभी हमारी शक्ति बनी तो कभी-कभी विभाजन का कारण भी। दशकों तक संघ और मुसलमानों के बीच की दूरी को राजनीतिक स्वार्थ और कट्टरपंथी ताकतों ने इतना गहरा कर दिया कि संवाद की कल्पना भी असंभव लगने लगी। परंतु इतिहास यह भी सिखाता है कि संवाद ही वह पुल है जो नफरत की दीवारों को गिरा सकता है।
1986 से ही मैंने कश्मीर की धरती पर यह पुल बनाने का प्रयास कर दिया था। तब से आज तक निरंतर यह अथक प्रयास ईश्वर की कृपा से जारी है। आज खुशगवार माहौल है। तब नहीं था जब शुरू किया था। परिस्थितियां प्रतिकूल थीं, आतंकियों ने मेरी जान लेने की तीन कोशिशें कीं लेकिन जब इरादा राष्ट्रहित का हो और लक्ष्य प्रेम व भाईचारा हो, तो बाधाएं टिकती नहीं हैं। दोनों ओर समूहों में नफरत व हिंसा के साथ शक गहरा व भयानक था। भारत विभाजन ने भारत-पाक-बंगलादेश के बीच सदा के लिए विष बीज बो दिया है। हिंदू-मुस्लिम दो कौम, यह विष बीज गहरा गया है। चंद लोग मिलते थे जो इस कट्टरता को चीरना चाहते थे।
धीरे-धीरे संवाद की लौ जली और आज परिणाम यह है कि मुसलमान न केवल संघ से संवाद कर रहे हैं, राष्ट्रनिर्माण में सक्रिय साझेदार भी बने हैं। हां, एलिमेंट्स अभी हैं, जो विरोध में हैं और वो रहेंगे जब तक बड़ी तादाद में मुस्लिम, तथाकथित मुल्लाओं और वोट बैंक की राजनीति से ऊपर नहीं उठेगा। क्योंकि जो मुसलमान सियासी खेल के शिकार हैं या कठमुल्लाओं और तथाकथित उलेमाओं की गिरफ्त में हैं, वो अब भी कहीं न कहीं जिहादी सोच से प्रभावित हैं। ऐसे लोग देश के बाकी मुसलमानों और इस्लाम को बदनाम करते हैं। उन्हें समझना होगा कि वे विदेशी नहीं भारतीय (हिंदुस्तानी) मुस्लिम हैं। इस दौरान मा. सुदर्शन जी ने जम्मू व कश्मीर घाटी में मुसलमानों से राममंदिर व हम हैं कौन, इस पर सार्थक संवाद किया। अलगाववाद व आतंकवाद की भट्ठी में जम्मू क्षेत्र व कश्मीर घाटी सुलग रहे थे तब भी आशा की किरण सामने थी।
‘राष्ट्र पहले’ : संघ का मूल मंत्र
संघ का दृष्टिकोण कभी धर्म (पूजा-पद्धति) या मजहब की सीमाओं में नहीं बंधा थी। उसका मंत्र हमेशा एक ही रहा ‘राष्ट्र पहले’अर्थात देश प्रथम, देश सदैव। यह विचारधारा कहती है कि हिंदू और मुसलमान का डीएनए एक है। यह कथन वैज्ञानिक सच्चाई ही नहीं, भावनात्मक खुदाई (ईश्वरीय)जुड़ाव का प्रतीक भी है। यह संदेश उन लोगों को चुनौती देता है जिन्होंने मजहबी पहचान को राजनीतिक हथियार बना लिया। विश्व में पहली पहचान हम सब ‘मानव’ हैं। दूसरी पहचान जाति, मजहब, भाषा, वेश भूषा आदि से नहीं, देश से ही होती है। अमरीका-अमेरीकन, तुर्किस्तान में तुर्क, चीन-चीनी, ईरान-ईरानी, भारत-भारतीय, हिंद- हिंदू, हिंदुस्तान-हिंदुस्तानी, जिसको जो नाम पसंद है, वह उचित है कोई गलत नहीं।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच : एक सामाजिक प्रयोग
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच (MRM) 24 दिसंबर, 2004 को बापू धाम, दिल्ली में प्रांभ तहरीक (आंदोलन) है जो कि हब्बुल वतनी (देश प्रेम), अमन, सलामती, हम एक कौम, इसी सोच का विस्तार है। यह मंच साबित करता है कि मुसलमान भी, राष्ट्रहितैषी, नशा-मुक्ति पर्यावरण संरक्षण, गंगा-सफाई, गौ-संवर्धन और राष्ट्रीय पर्वों में उसी उत्साह से भाग लेते हैं जैसे कोई और भारतीय। कुरआन-गीता संवाद इसका सबसे प्रेरक उदाहरण है, जिसने दिखाया कि धर्मों की शिक्षाएं विभाजन नहीं, बल्कि सह-अस्तित्व सिखाती हैं। एक-दूसरे के घरों पर लेजाती है। परंतु चंद लोग जहर भी फैलाते हैं। परंतु बड़ी संख्या में राखी का त्योहार मनाते हुए, मां के कदमों में जन्नत का संदेश देते हुए, नारी सखक्तिकरण की धारा भी बहाते हैं। MRM एक व्यापक आंदोलन बन गया है। सैकड़ों-हजारों कार्यकर्ता हैं। धीरे-धीरे सभी स्वयं को तराश रहे हैं। कार्य कठिन है, असंभव नहीं।
कट्टरपंथ को नकारते मुसलमान
संवाद का सबसे बड़ा असर यह हुआ कि मुसलमान अब आतंकवाद और कट्टरपंथ से दूरी बनाकर राष्ट्र की मुख्यधारा में खड़े हैं। आतंक पर पाकिस्तानी साजिशों के खिलाफ देश के साथ एकजुटता दिखानी हो या देश के अंदर पल रहे आतंकी संगठन पीएफआई, एसआइएमआइ (SIMI), एलईटी, एचयूए पर बैन की मांग, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। पहले जिन संगठनों को मुसलमानों की ढाल बनाकर पेश किया जाता था, आज वही समुदाय उनकी निंदा कर रहा है। सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है, पुतले जला रहा है और आवाज बुलंद कर रहा है। यह भारतीय मुसलमान की परिपक्वता और राष्ट्रप्रेम की नई परिभाषा है। देश में मुस्लिम स्वर गूंज रहा है कि आतंकी व आतंकवाद को न तो नमाज है, न ही जनाजों में भागीदारी है, न ही जमीन है, उसका रंग-रूप केवल शैतीनी है।
तिरंगा यात्राओं से अखंड भारत तक
आज मुसलमानों के हाथों में तिरंगा है और उनकी आवाज में राष्ट्रगान। जब वे रैलियों में ‘अखंड भारत’ का उद्घोष करते हैं और गुलाम कश्मीर पर अधिकार की बात करते हैं, तो यह केवल नारा नहीं आत्मविश्वास से भरा वादा होता है। यह वही दृश्य है जो कभी असंभव समझा जाता था। पहलगांव (कश्मीर) में नारा लगा है ‘मुसलमान ने पुकारा है, POK हमारा है।’ हिमालय से आ आवाज ‘कैलाश मानसरोवर हमारा है।’ भारत से अलग होते भू-भाग बोले ‘भाईचारा-भाईचारा’।
वैश्विक दृष्टि : पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों की पीड़ा
आज संवाद का दायरा केवल भारत तक सीमित नहीं। आज भारतीय मुसलमान पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार की निंदा कर रहे हैं। यह संकेत है कि उनका दृष्टिकोण केवल ‘अपने हक’ तक सीमित नहीं रहा। अब वे पूरी मानवता की आवाज बन चुके हैं। पड़ोसी देशों में शांति चाहते हैं। भारत में अल्पसंख्यक सर्वाधिक सुरक्षित हैं व सम्मानित हैं फिर उसी मूल भारत को पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ्गानिस्तान, मालदीव में भी अल्पसंख्यक सुरक्षित व सम्मानित हों।
ठोस उपलब्धियां : बदलाव की गवाही
अनुच्छेद 370 और 35ए हटाने पर समर्थन : मुस्लिम समाज का यह रुख ऐतिहासिक था, जिसने साबित किया कि वे अलगाव की राजनीति नहीं, एकता और अखंडता के पक्षधर हैं। 8 1/4 लाख मुस्लिम हस्ताक्षर तब के राष्ट्रपति को देना।
तीन तलाक समाप्त करने में मुस्लिम महिलाओं की भूमिका : लाखों मुस्लिम महिलाओं ने इसे अन्याय का अंत और समानता की जीत बताया। इस्लाम में नया सवेरा और व एक कुरीति से मुक्ति। खुदा के अनुसार उसे यह सबसे अप्रिय है।
राम मंदिर पर सकारात्मक दृष्टिकोण : निर्णय को शांति और सौहार्द की जीत मानना एक बड़ा वैचारिक परिवर्तन है। बड़ी तादाद में मुसलमानों ने मंदिर निर्माण के लिए धनराशि दी, जिसकी कल्पना पहले नहीं की जा सकती थी। मुसलमान रामजी, जो कि उसकी नजरों में इमामे-हिंद हैं, के दर्शन करने जा रहा है।
वक्फ संपत्तियों में पारदर्शिता का समर्थन : यह दर्शाता है कि मुसलमान अपने संसाधनों को समाज और राष्ट्रहित में लगाना चाहते हैं। देश का मुस्लमान अपने हक को लेकर जागरूक हो रहा है और वो सिर्फ पिछलग्गू बन के नहीं रहना चाहता है। वक्फ में व्याप्त भ्रष्टाचार से मुक्ति तथा संपदा जन-कल्याण में खर्च हो। बहकाए या भड़काए गए मार्ग से दूर हो गया। मुस्लिम संपत्ति पर कब्जे को भड़काना झूठ निकला।
UCC पर खुला विमर्श : यह स्वीकार करना कि समान कानून भाईचारे और न्याय को मजबूत करेगा, एक परिपक्व सोच है। गाय व मानव – से मुक्त हिंदुस्तान बनाने की मुहिम, गाय के दूध से रोजा खोलना।
सरसंघचालक और संवाद की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए
4 जुलाई 2021 को गाजियाबाद वसुंधरा में सरसंघचालक माननीय मोहन भागवत जी ने कहा— ‘भारत के हिंदू और मुसलमान दोनों का डीएनए एक है।’ यह केवल वाक्य नहीं, बदलते इतिहास का नया मोड़ था। इसके बाद मुंबई में आलिमों के साथ बैठक, दिल्ली में मुस्लिम दिग्गजों के साथ बैठक रही हो या इमाम संगठन के प्रमुख उमेर इलियासी से मदरसे में मुलाकात और फिर हरियाणा भवन में 60 मुस्लिम आलिमों, उलेमाओं और मौलानाओं से संवाद- इन सबने मिलकर संवाद की प्रक्रिया को गति दी। इस दौरान सरसंघचालक जी ने अपने बयानों से देश के मुसलमानों के दिल में अपनी खास जगह बनाई। उनका यह कहना कि ‘हर मस्जिद के नीचे शिवलिंग क्यों ढूंढना?’ हर मुसलमानों के दिल को छू गया।
भागवत जी का संदेश साफ है— भारत माता सबकी साझा धरोहर है। उनकी पहली पहचान हिंदुस्तानी होना है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘भाईचारे और मेलमिलाप के बिना भारत का भविष्य सुरक्षित नहीं।’ यह विचारधारा संघ को केवल हिंदुओं तक सीमित मानने वाली धारणा को तोड़ती है और मुसलमानों को नए आत्मविश्वास से भरती है।
भविष्य की राह : मिलकर बनाएं नया भारत
आज संघ और मुसलमानों का यह संवाद केवल औपचारिकता नहीं रहा, एक वास्तविक सामाजिक आंदोलन का रूप ले चुका है। हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम अपनी पहचान केवल मजहब से तय करेंगे या फिर भारत और भारतीयता को सबसे ऊपर रखेंगे। मेरा विश्वास है कि भविष्य का भारत वही होगा जहां मुसलमान और हिंदू मिलकर न केवल गलतफहमियों की खाई पाटेंगे, एक ऐसा राष्ट्र गढ़ेंगे जिसकी नींव समानता, भाईचारे और राष्ट्रप्रेम पर टिकी होगी। यही इस संवाद का सार है: भारत पहले, बाकी सब बाद में।
नई जिम्मेदारी सभी की जिम्मेदारी: संवाद घर-घर पहुंचे
आज संवाद नेतृत्व स्तर पर सफल हो रहा है। इसकी सफलता का पैमाना है जब यह मुस्लिम के घर-घर के साथ-साथ मस्जिद तक भी पहुंचे। जब हर मोहल्ले का मुसलमान भी कहेगा संघ केवल हिंदुओं का ही नहीं पूरे भारत के भारतीयों का है। पूरे हिंदवियों व हिंदुस्तानियों का है। तभी इस प्रयास की सच्ची सफलता होगी। हिंदू मुस्लिम में दंगे व धर्मांतरण नहीं बलिक् आपसी भाईचारा व प्यार होगा। यह जिम्मेवारी दोनों की ही नहीं, बल्कि सभी की है।
1986 से अब तक मुसलमानों के साथ संवाद के हजारों कार्यक्रम आयोजित किए गए—कभी छोटे स्तर पर, तो कभी बड़े स्तर पर। लेकिन 27 सितंबर का दिन वास्तव में ऐतिहासिक साबित हुआ, जब कश्मीर से कन्याकुमारी, महाराष्ट्र से लेकर नॉर्थ ईस्ट, गुजरात से पश्चिम बंगाल और कर्नाटक से ओडिशा तक के लोग, हिंदी पट्टी के अतिरिक्त, एकजुट होकर मुस्लिम महासम्मेलन में शामिल हुए। इस विराट संगम में 12 हज़ार से अधिक लोग उपस्थित रहे। यह दृश्य इस बात का साक्ष्य है कि ‘संवाद से समाधान’ अब केवल एक पहल नहीं, बल्कि सशक्त जनआंदोलन का रूप ले चुका है।
(लेखक, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के मुख्य संरक्षक हैं)
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