जागरण संपादकीय : पाकिस्तान-सऊदी अरब में रक्षा समझौता, भारत के लिए चिंता
क्या सऊदी अरब ने पाकिस्तान से नाटो जैसा रक्षा समझौता इसलिए किया क्योंकि वह अमेरिका पर पहले जितना भरोसा नहीं कर पा रहा है? कहना कठिन है लेकिन ऐसा हो भी सकता है क्योंकि एक तो अमेरिका का प्रभाव तेजी से घट रहा है और दूसरे सऊदी अरब ने यह देखा कि कुछ दिनों पहले इजरायल ने किस तरह उसके पड़ोसी देश कतर में हमला किया।
पाकिस्तान और सऊदी अरब के बीच रक्षा समझौता होने से भारत का सशंकित होना स्वाभाविक है। यह कोई सामान्य रक्षा समझौता नहीं है, क्योंकि इसमें यह कहा गया है कि यदि किसी भी देश पर हमला होता है तो उसे दोनों देशों के खिलाफ माना जाएगा। इसके चलते यह प्रश्न उठा है कि यदि भारत भविष्य में पाकिस्तान के खिलाफ वैसी कोई सैन्य कार्रवाई करता है, जैसी पिछले दिनों आपरेशन सिंदूर के तहत की गई तो क्या सऊदी अरब पाकिस्तान के साथ वैसे ही खड़ा होगा, जैसे चीन और तुर्किये खड़े हुए थे?
इस प्रश्न पर विचार करते समय इस पर भी ध्यान देना होगा कि आपरेशन सिंदूर पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई थी। क्या सऊदी अरब आतंकवाद के खिलाफ की जाने वाली सैन्य कार्रवाई को भी पाकिस्तान पर हमले के रूप में देखेगा? भारत ने अपनी प्रतिक्रिया में उम्मीद जताई है कि सऊदी अरब भारत की संवेदनशीलता का ध्यान रखेगा, लेकिन यदि उसे भारत के हितों की चिंता होती तो क्या वह पाकिस्तान से वैसा समझौता करता, जैसा अमेरिका के प्रभुत्व वाले सैन्य संगठन नाटो के सदस्य देशों ने कर रखा है?
क्या सऊदी अरब ने पाकिस्तान से नाटो जैसा रक्षा समझौता इसलिए किया, क्योंकि वह अमेरिका पर पहले जितना भरोसा नहीं कर पा रहा है? कहना कठिन है, लेकिन ऐसा हो भी सकता है, क्योंकि एक तो अमेरिका का प्रभाव तेजी से घट रहा है और दूसरे, सऊदी अरब ने यह देखा कि कुछ दिनों पहले इजरायल ने किस तरह उसके पड़ोसी देश कतर में हमला किया।
कतर में अमेरिका का सैन्य ठिकाना होने के बाद भी इजरायल ने उस पर हमला करने में संकोच नहीं किया। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की मानें तो उन्हें कतर पर इजरायली हमले की कहीं कोई जानकारी नहीं थी, लेकिन शायद सऊदी अरब इस पर यकीन करने के लिए तैयार नहीं। जो भी हो, इस समझौते ने अमेरिकी राष्ट्रपति के अब्राहम समझौते को आगे बढ़ाने के सपने पर भी पानी फेरने का काम किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति इस समझौते को विस्तार देकर अन्य अरब देशों और इजरायल में मित्रवत संबंध कायम करना चाहते हैं।
यदि सऊदी अरब ने अपनी सुरक्षा चिंताओं का समाधान करने के लिए पाकिस्तान से रक्षा समझौता करना बेहतर समझा तो यह अमेरिका से ज्यादा भारत के लिए चिंता का विषय है। यह समझौता पाकिस्तान का दुस्साहस बढ़ाने का जरिया बन सकता है। इस समझौते ने पश्चिम एशिया में भारत की कूटनीतिक चुनौती बढ़ा दी है। इस चुनौती से पार पाने के लिए भारत को एक ओर जहां अपनी कूटनीति को धार देनी होगी, वहीं दूसरी ओर अपनी सैन्य एवं आर्थिक शक्ति भी बढ़ानी होगी। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं, क्योंकि पश्चिम एशिया में भारत के व्यापक हित निहित हैं।
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