जागरण संपादकीय: अपराध के आंकड़े, लोगों को नियम-कानूनों का पालन करना भी सीखना होगा
अपराधों का एक कारण कानूनों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति भी है। छोटे-मोटे नियम-कानूनों की अवहेलना के बढ़ते मामले यही बताते हैं कि देश अभी सामंती प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हुआ है। अपराध रोधी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता से इन्कार नहीं लेकिन लोगों को नियम-कानूनों का पालन करना भी सीखना होगा।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो अर्थात एनसीआरबी के 2023 के आंकड़े कोई अच्छी तस्वीर प्रस्तुत नहीं कर रहे हैं। यह ठीक नहीं कि हर स्तर पर अपराध बढ़ते दिख रहे हैं। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि महिलाओं को घरेलू हिंसा से लेकर यौन अपराधों से बचाने वाले कई कानूनों को कठोर किए जाने के बाद भी उनके खिलाफ अपराध कम होने के बजाय बढ़ रहे हैं।
2023 में महिलाओं के खिलाफ 4.5 लाख अपराध के मामले दर्ज किए गए। ये पिछले दो वर्षों की तुलना में अधिक हैं। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों में सबसे अधिक मामले घरेलू हिंसा के हैं। इसका मतलब है कि वे घर में भी सुरक्षित नहीं हैं। निःसंदेह सार्वजनिक स्थानों पर भी उनकी सुरक्षा को लेकर सवाल उठते ही रहते हैं।
पिछले दिनों ही कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के एक मामले में अभियुक्त को जमानत देने से मना करते हुए कहा कि जिस दिन महिलाएं रात में निर्भय होकर चल सकेंगी, उस दिन हम कह सकते हैं कि भारत ने सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है। इस स्थिति के निर्माण के लिए केवल पुलिस और अदालतों को ही तत्परता का परिचय देने की आवश्यकता नहीं है।
इसके साथ ही हमारे पुरुष प्रधान समाज को भी अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है। महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों का एक बड़ा कारण पुरुष प्रधान समाज की महिलाओं को हीन और दोयम दर्जे का मानने की मानसिकता है। इसी मानसिकता के कारण आज भी महिलाएं बड़ी संख्या में घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं।
इससे बड़ी विडंबना और कोई नहीं कि 21वीं सदी में भी महिलाएं दहेज के लिए प्रताड़ित की जा रही हैं। यह तब है, जब सरकारें अपने स्तर पर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उन्हें संबल देने के लिए सामाजिक कल्याण की कई योजनाएं चला रही हैं। यह आवश्यक है कि इन योजनाओं का केंद्रीय पहलू लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना बने।
इसके साथ ही अपराधरोधी तंत्र को और सक्षम बनाने की भी गहन आवश्यकता है। इस तंत्र में पुलिस के साथ ही अदालतों की भी प्रमुख भूमिका है। अपराधी छोटा हो या बड़ा, उसे यथाशीघ्र दंड का भागीदार बनाकर ही कानून के शासन को स्थापित किया जा सकता है। अपने देश में सामाजिक-आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के खिलाफ अपराध घटित होने का एक कारण यह है कि कई बार सक्षम लोग अपने किए की सजा इसलिए नहीं पाते, क्योंकि वे रसूख वाले होते हैं।
अपराधों का एक कारण कानूनों को अनदेखा करने की प्रवृत्ति भी है। छोटे-मोटे नियम-कानूनों की अवहेलना के बढ़ते मामले यही बताते हैं कि देश अभी सामंती प्रवृत्ति से मुक्त नहीं हुआ है। अपराध रोधी तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता से इन्कार नहीं, लेकिन लोगों को नियम-कानूनों का पालन करना भी सीखना होगा।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।