नेताओं के अपराध, प्रज्वल रेवन्ना के मामले से उठते गंभीर सवाल
क्या यह विचित्र नहीं कि तब कर्नाटक सरकार ने इस पर गौर नहीं किया कि किन वीडियो का उल्लेख हो रहा है और जिन्हें प्रज्वल रेवन्ना फर्जी बता रहे हैं वे सही भी हो सकते हैं? क्या कर्नाटक सरकार इसलिए मौन रही कि तब देवेगौड़ा की पार्टी एवं भाजपा में गठबंधन नहीं हुआ था और कांग्रेस को उसके अपने साथ आने की उम्मीद रही हो?
आम चुनाव के बीच कर्नाटक में जनता दल-एस सांसद एवं लोकसभा प्रत्याशी प्रज्वल रेवन्ना की ओर से तमाम महिलाओं के यौन उत्पीड़न के वीडियो सार्वजनिक होने के बाद पक्ष-विपक्ष में आरोप-प्रत्यारोप के सिलसिला छिड़ जाने पर हैरानी नहीं। चूंकि प्रज्वल रेवन्ना पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के पोते हैं और इस बार जनता दल-एस भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहा है, इसलिए कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं।
ऐसा हमेशा होता है, लेकिन जो मुश्किल से होता है, वह यह कि ऐसे मामलों में आरोपित नेताओं के खिलाफ गहन जांच नहीं हो पाती और होती भी है तो धीमी गति से और कई बार तो जांच के नाम पर लीपापोती भी हो जाती है। आरोपित नेता खुद को राजनीतिक बदले की भावना से निशाना बनाने का आरोप लगाता है और विपक्षी उसे संरक्षण देने की तोहमत मढ़ते हैं।
यह ठीक है कि कर्नाटक सरकार ने प्रज्वल रेवन्ना के बेहद गंभीर मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन कर दिया, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि यह मामला कई वर्ष पुराना है और उसे लेकर पहले भी आरोप-प्रत्यारोप सामने आ चुके हैं। तथ्य यह भी है कि पिछले वर्ष जून में प्रज्वल रेवन्ना स्थानीय अदालत से अपने पक्ष में यह आदेश पाने में सफल रहे थे कि उन्हें बदनाम करने के लिए कथित तौर पर उनके कुछ फर्जी वीडियो सार्वजनिक करने की जो तैयारी हो रही है, उस पर रोक लगाई जाए।
क्या यह विचित्र नहीं कि तब कर्नाटक सरकार ने इस पर गौर नहीं किया कि किन वीडियो का उल्लेख हो रहा है और जिन्हें प्रज्वल रेवन्ना फर्जी बता रहे हैं, वे सही भी हो सकते हैं? क्या कर्नाटक सरकार इसलिए मौन रही कि तब देवेगौड़ा की पार्टी एवं भाजपा में गठबंधन नहीं हुआ था और कांग्रेस को उसके अपने साथ आने की उम्मीद रही हो?
प्रश्न यह भी है कि यदि भाजपा को प्रज्वल रेवन्ना के इतने गंभीर मामले की जानकारी हो गई थी तो उसने इस पर जोर क्यों नहीं दिया कि सच्चाई जाने बिना वह उनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं कर सकती? इस मामले में पीड़ित वीडियो सार्वजनिक होते ही जर्मनी खिसक गए प्रज्वल रेवन्ना नहीं, महिलाएं हैं और उन्हें न्याय देना सुनिश्चित किया जाना चाहिए। यह दलगत राजनीति नहीं, महिलाओं के मान-सम्मान का गंभीर मुद्दा है।
अपने देश में नेताओं और अन्य रसूख वालों के अपराधों के खिलाफ प्राथमिकता के आधार सही जांच न हो पाना एक ऐसी समस्या है, जो बढ़ती ही दिखती है। एक ऐसे समय यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोपों की भी समय रहते सही तरह जांच न हो पाना शर्मनाक है, जब हर दल नारी सम्मान की रक्षा के प्रति खुद को समर्पित बताता है। यदि यह समर्पण वास्तव में होता तो क्या प्रज्वल रेवन्ना का मामला इतने दिन तक दबा रहता?