'सजा तो सजा है, फिर भेदभाव क्यों': केंद्र सरकार के जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन को हाई कोर्ट में चुनौती
केंद्र सरकार के जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन को पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। इस मामले में हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि कैसे अपराध करने वालों को वोट डालने का अधिकार नहीं है लेकिन चुनाव लड़ने का है।
चंडीगढ़, राज्य ब्यूरो। पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 2013 में बने जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब मांगा है। हाईकोर्ट ने सरकार को 29 अगस्त तक जवाब देने का आदेश देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी है। याचिका में कहा गया कि किसी भी अपराध के दोषी और सजा पाने वाले सभी लोगों को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य करार दिया जाना चाहिए।
याची ने कहा कि फिलहाल यह प्रावधान है कि जिस व्यक्ति को 2 साल से कम की सजा मिलती है, उससे वोट डालने का अधिकार तो छिन जाता है लेकिन वह चुनाव लड़ सकता है। सरकार ने 2013 में जनप्रतिनिधि एक्ट में संशोधन कर ऐसा प्रावधान कर दिया कि दोषी करार व्यक्ति वोट तो नहीं डाल सकता, लेकिन चुनाव लड़ सकता है।
याची ने हाई कोर्ट से अपील की है कि दोषी करार दिए गए और सजा पाने वाले किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं होना चाहिए। ऐसा न करना संविधान में निहित समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा सवाल
याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस पर आधारित खंडपीठ ने केंद्र सरकार से पूछा है कि कैसे अपराध करने वालों को वोट डालने का अधिकार नहीं है, लेकिन चुनाव लड़ने का है। साथ ही एक्ट में संशोधन करने को जिन आधारों पर चुनौती दी गई है, उस पर जवाब दाखिल करने के आदेश दिए गए हैं। अगली सुनवाई पर इस बारे में केंद्र सरकार को अपना पक्ष रखना होगा।
'सजा तो सजा है, फिर भेदभाव क्यों?'
इसी विषय एक और याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया गया कि मौजूदा समय में दो वर्ष से कम के कारावास की सजा वालों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाती है, जबकि इससे ज्यादा सजा वाले व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य माना जाता है। याचिका के मुताबिक, मौजूदा नियम समानता के अधिकार के खिलाफ है, क्योंकि अपराध तो अपराध होता है। चाहे वह छोटा हो या बड़ा। अगर किसी व्यक्ति को दो साल की सजा हुई है और किसी को दो साल से ज्यादा की सजा हुई है तो दोनों के मामलों में असमानता क्यों। सजा तो दोनों को हुई है। फिर दो साल से कम वाले को चुनाव लड़ने की छूट देना और दो साल से ज्यादा सजा होने वाले को चुनाव न लड़ने देने की इजाजत देना कितना उचित है। इस पर भी हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब तलब किया है।