Haryana News: हरियाणा की ओर बढ़ता यमुना का कटाव, करोड़ों खर्च होने पर भी नहीं पुख्ता बचाव; हर साल बह रही जमीन
यमुना नदी यूं तो साल भर शांत रहती हैं लेकिन मानसून के समय नदी का रौद्र रूप भयभीत कर देता है। इन दिनों नदी अपने सामने आने वाली हर वस्तु को बहा कर ले जाती है। इसी कड़ी में हरियाणा में हर साल किसानों की फसलें यमुना की भेंट चढ़ जाती है। यही नहीं हर साल स्टड और तटबंध बनाए जाते हैं। लेकिन उनका कोई फायदा नहीं होता।
जागरण संवाददाता, यमुनानगर। हरियाणा व उत्तर प्रदेश के बीचोबीच बह रही जीवन दायिनी यमुना मानसून सीजन में कब रौद्र रूप धारण कर ले कुछ कहा नहीं जा सकता।
पानी का बहाव बढ़ जाने से फसलें जलमग्न भी हो जाती हैं और जमीन यमुना में भी समा जाती है। बचाव के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च कर किनारों पर स्टड व तटबंध बनाए जाते हैं, लेकिन पुख्ता बचाव आज भी नहीं है। नदी पर नुकसान के रास्ते खुले हैं।
उधर, यमुना नदी का बहाव हर साल 40 से 50 मीटर हरियाणा की ओर बढ़ रहा है। किसानों की सैकड़ों एकड़ जमीन हर साल यमुना नदी में समा जाती है। यमुना नदी के साथ-साथ सोम व पथराला नदी में आई बाढ़ के कारण भी किसानों को नुकसान झेलना पड़ता है।
यूपी के जिला सहारनपुर के नकुड क्षेत्र में शासन ने यमुना नदी पर कच्ची पटरी बना दी है। जिससे दिक्कत ज्यादा बढ़ रही है। यह एनजीटी के नियमों की भी अवेहलना है।
10 साल में हुआ इतना नुकसान
- 2011-12 : साढे़ 13 करोड़ रुपये
- 2012-13 : आठ करोड़
- 2013-14 : साढे़ दस करोड़
- 2014-15 : 17 करोड़
- 2015-16 : 11 करोड़
- 2016-17 : नौ करोड़,
- 2017-18 : 14 करोड़,
- 2018-19 : आठ करोड़
- 2019-20 : 22 करोड़,
- 2020-21 : 13 करोड़
- 2022-23 : 30 करोड़
- 2023-24 : 56 करोड़
इन गांवों रहता अधिक खतरा
माली माजरा, नवाजपुर, लाक्कड़, लेदी, बेलगढ़, टापू कमालपुर, होदरी, लापरा, बीबीपुर, मांडेवाला, खानूवाला, आंबवाली, टिब्बड़ियों, काटरवाली, रामपुर गेंडा, रणजीत पुर, भंगेड़ा, मलिकपुर, रणजीतपुर, मुजाफत, नगली, प्रलादपुर, पौबारी, संधाला, संधाली, लालछप्पर, माडल टाऊन करेहड़ा, उन्हेड़ी, संधाला, संधाली, गुमथला समेत दर्जनों गांवों में हर वर्ष बाढ़ का खतरा रहता है।यह भी पढ़ें- Haryana Crime: भिवानी में बहस रंजिश में बदली, पेंचकस से 10 वार कर शख्स को महज 75 सेकेंड में उतार दिया मौत के घाट
यमुना नदी का रुख हरियाणा की ओर बढ़ गया है। बीते वर्ष कमालुपर टापू, गुमथला, लालछप्पर व नगली में काफी कटाव हुआ है।
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