'संपत्ति बचाने के लिए जानलेवा तरीकों का सहारा लेना जघन्य अपराध', हिमाचल हाई कोर्ट की अहम टिप्पणी
न्यायाधीश राकेश कैंथला ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि मामले में आरोपितों ने फसल की सुरक्षा के लिए खेत के चारों ओर बिजली की तार लगा दी थी। यह कृत्य स्वाभाविक रूप से खतरनाक था और बिजली के तार के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को खतरे में डाल सकता था। उनके कृत्य ने पहले ही एक हैप्पी सिंह नामक व्यक्ति की जान ले ली थी।
विधि संवाददाता, शिमला। संपत्ति बचाने के लिए जानलेवा तरीकों का सहारा लेना जघन्य अपराध है। ऐसी छूट देना कानून के राज का अंत करने के बराबर होगा। यह जानबूझ कर किया गया ऐसा कृत्य है, जिससे किसी निर्दोष की जान जा सकती है।
मामले को रद करने से किया इनकार
प्रदेश हाई कोर्ट ने ऐसे ही अपराध से जुड़े मामले को समझौते के आधार पर रद करने से इनकार कर दिया। प्रार्थियों ने फसल बचाने के लिए खेत के चारों ओर बिजली की तार लगाई थी, जिससे करंट लगने से एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। कोर्ट ने कहा कि जघन्य अपराध, जो समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं, उन्हें समझौता कर रद नहीं किया जा सकता। दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर एफआइआर रद करने की मांग करने वाली याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने यह व्यवस्था दी।
न्यायाधीश राकेश कैंथला ने मामले का निपटारा करते हुए कहा कि मामले में आरोपितों ने फसल की सुरक्षा के लिए खेत के चारों ओर बिजली की तार लगा दी थी। यह कृत्य स्वाभाविक रूप से खतरनाक था और बिजली के तार के संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को खतरे में डाल सकता था। उनके कृत्य ने पहले ही एक हैप्पी सिंह नामक व्यक्ति की जान ले ली थी।
बिजली की तार लगाने का कार्य किसी एक व्यक्ति के लिए नहीं बल्कि बड़े पैमाने पर समाज के लिए खतरा था। यह महज हैप्पी सिंह के परिवार और आरोपितों के बीच का विवाद नहीं है, बल्कि इसमें हमारा पूरा समाज भी शामिल है। अगर इस तरह लोगों को दूसरों की जान लेने में सक्षम सहारों की अनुमति दी जाती है, तो समाज का चिंतित होना स्वाभाविक है।
कोर्ट ने कहा कि यदि लोगों को खतरनाक तरीकों का उपयोग करके संपत्ति की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा तो निश्चित ही यह कानून के शासन का अंत होगा। इस मामले में दोनों पक्षों को समझौता करने की अनुमति देने से लोग कानून को अपने हाथ में लेने के लिए प्रोत्साहित होंगे, जो बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है। कोर्ट ने कहा कि अपराध की गंभीरता और समाज पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पक्षकारों के बीच समझौते के आधार पर एफआइआर को रद नहीं किया जा सकता है।
कोर्ट का कहना था कि वर्तमान मामले में लापरवाही नहीं बल्कि जानबूझकर किया गया ऐसा कार्य था कि जानलेवा बिजली के संभावित परिणाम की पूरी जानकारी होने के बावजूद इसे स्थापित किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने कांगड़ा जिले के इंदौरा पुलिस थाना में दर्ज एफआइआर को रद करने और उसके परिणामस्वरूप होने वाली कार्यवाही को रद करने के लिए याचिका दायर की थी।