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Jharkhand News: डी-लिंस्टिग महारैली से मतांरतरण पर सीधा प्रहार, आदिवासियों के हक की लड़ाई को तेज करने का दिया संकेत

लोकसभा चुनाव से पहले दुमका में जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा आयोजित डी-लिस्टिंग महारैली के बड़े सियासी मायने हैं। दरअसल इस रैली से आदिवासियों के हक व आरक्षण की लड़ाई के आसरे सीधे तौर पर ईसाई समुदाय और मतांतरण पर प्रहार करने की पहल तेज करने का संकेत है। भाजपा के रणनीतिकार आने वाले दिनों में इसे और धार देने की तैयारी में हैं।

By Rohit Kumar MandalEdited By: Shashank ShekharUpdated: Sun, 17 Dec 2023 03:04 PM (IST)
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डी-लिंस्टिग महारैली से मतांरतरण पर सीधा प्रहार, आदिवासियों के हक की लड़ाई को तेज करने का दिया संकेत

राजीव, दुमका। लोकसभा चुनाव से पहले दुमका के सोनुवाडंगाल मैदान में शनिवार को जनजाति सुरक्षा मंच द्वारा आयोजित डी-लिस्टिंग महारैली के बड़े सियासी मायने हैं। दरअसल, इस रैली के माध्यम से आदिवासियों के हक-अधिकारों व आरक्षण की लड़ाई के आसरे सीधे तौर पर ईसाई समुदाय और मतांतरण पर प्रहार करने की पहल तेज करने का स्पष्ट संकेत है।

भाजपा के रणनीतिकार आने वाले दिनों में इसे और धार देने की तैयारी में हैं ताकि लोकसभा चुनाव में आदिवासी व सरना मतदाताओं की गोलबंदी मजबूती से की जा सके।

महारैली में हजारों की उमड़ी भीड़

आदिवासी वेशभूषा में पारंपरिक तरीके से दुमका में हजारों की उमड़ी भीड़ को शृंखलाबद्ध कर निकाली गई महारैली के बाद आयोजित जनसभा के माध्यम से वक्ताओं ने भविष्य की मंशा को स्पष्ट कर दिया। इस दौरान कहा कि पुरखों की संस्कृति ही उनका हक व संवैधानिक आधार है, जिन्होंने अपनी संस्कृति छोड़ दी है उन्होंने अपनी जनजाति होने का पहचान भी खो दिया है। ऐसे में ये लोग आदिवासियों के आरक्षण का लाभ लेना भी छोड़ दें।

कहा कि अनुसूचित जाति की तरह ही अनुसूचित जनजाति से ईसाई और इस्लाम में मतांतरित लोगों का डी-लिस्टिंग किया जाना चाहिए क्योंकि ये लोग कानूनन अल्पसंख्यक हो चुके हैं। 1970 से डी-लिस्टिंग बिल संसद में लंबित है, जिसे अब पारित किया जाना चाहिए।

धर्मांतरित मूल जनजाति का 70 फीसद आरक्षण का लाभ ले रहे

वक्ताओं का कहना है कि धर्मांतरित लोग मूल जनजाति का 70 प्रतिशत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। यह आदिवासियों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है। इस अन्याय के खिलाफ आदिवासियों को गोलबंद होने की जरूरत है तभी मतांतरित जनजाति को आरक्षण के लाभ से वंचित किया जा सकता है।

कहा कि यदि जनजाति समुदाय की महिला किसी दूसरे धर्मावलंबी पुरुष के साथ शादी कर लेती है तो उस महिला को जनजाति समाज का जाति प्रमाण पत्र नहीं दिया जाना चाहिए। वक्ताओं ने तथ्यों को रखते हुए कहा कि अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण, संरक्षण एवं विकास का फंड संबंधित संवैधानिक अधिकारों को ऐसे लोग छीन रहे हैं जो इसके पात्र ही नहीं हैं।

ऐसे लोग तय मानक पर खरा ही नहीं उतर रहे हैं। ऐसे जनजातीय लोगों की संख्या कुल जनजातियों की संख्या से 10 प्रतिशत से भी कम है लेकिन ऐसे लोग 70 प्रतिशत अधिकारों को हड़प रहे हैं। कहा कि अब समय आ गया है कि देश के लगभग 12 करोड़ आदिवासी समुदाय अपनी अस्मिता, अस्तित्व और विकास के लिए गोलबंद होकर आर-पार की लड़ाई लड़ें। कुल मिलाकर इस महारैली व जनसभा के माध्यम से जनजाति अधिकार मंच ने सनातन धर्म को प्रखर बनाने का आह्वान किया है।

विशाल महारैली निकाल कर विरोधियों को दिया संदेश

जनजाति सुरक्षा मंच संताल परगना की ओर से शनिवार को पारंपरिक तरीके से विशाल महारैली निकाल कर विरोधियों को जोरदार संदेश दिया गया है। महारैली के दौरान शहर की सड़कें भीड़ से पट गई थी। महारैली में शामिल लोग हाथों में तख्तियां लेकर अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे।

लाउडस्पीकर पर भी नारेबाजी हो रही थी। खास बात यह कि पारंपरिक हथियार व ढोल-टमाक के साथ आए महिला, पुरुष व युवा आदिवासी धर्मावलंबी थी। महारैली के उपरांत सोनुवाडंगाल में आयोजित जनसभा में मंच का संचालन करते हुए इंग्लिश लाल मरांडी एवं कैलाश उरांव ने अतिथियों का स्वागत एवं परिचय कराया। जबकि स्वागत भाषण संजीव सिंघानिया ने दिया।

डी-लिस्टिंग को लेकर न्यायिक पक्ष रखा

सुलेमान मुर्मू ने विषय प्रवेश कराया। इसके उपरांत संग्राम बेसरा ने डी-लिस्टिंग के तकनीकी पक्षों पर विस्तार से अपनी बातों को रखते हुए संविधान सम्मत धारा तथा पिछले 100 सालों के संदर्भों को शामिल करते हुए डी-लिस्टिंग के न्यायिक पक्ष रखा।

कहा कि लंबे समय से जनजाति समाज के साथ हो रहे अन्याय का अब अंत होना चाहिए। इस कार्यक्रम में अनुसूचित जनजाति मोर्चा के विमल मरांडी, कन्हाई देहरी, सतीश सोरेन, टोकई सोरेन, निर्मल टुडू, जयसेन बेसरा, वकील बेसरा, अर्जुन सोरेन, सुनील हांसदा, रामेश्वर हांसदा, बिरेंद्र मरांडी, एतवारी मुर्मू, सूर्यनारायण हेंब्रम, सूर्यनारायण सूरी, रमेश बाबू, विनोद उपाध्याय, कैलाश उरांव समेत संताल परगना के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में आदिवासी समुदाय के लोग आए थे।

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