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जमशेदपुर शहर के बीचोंबीच तीन फुट के कुएं से निर्झर बह रहा पानी, लबालब भरा रहता तालाब

एक ओर शहर में छह सौ फुट तक बोरिंग हो रही है चापाकल से लेकर डोभा-तालाब तक सूख चुके हैं। वहीं शहर के बीचोंबीच गोलमुरी में अधिवक्ता अशोक लकड़ा की जमीन में तीन फुट के कुएं से हर वक्त पानी बाहर गिरता रहता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Updated: Sat, 22 May 2021 07:51 PM (IST)
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टिनप्लेट कंपनी के पास अधिवक्ता अशोक लकड़ा की चार बीघा जमीन है।

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। एक ओर शहर में छह सौ फुट तक बोरिंग हो रही है, चापाकल से लेकर डोभा-तालाब तक सूख चुके हैं। वहीं शहर के बीचोंबीच गोलमुरी में अधिवक्ता अशोक लकड़ा की जमीन में तीन फुट के कुएं से हर वक्त पानी बाहर गिरता रहता है।

टिनप्लेट कंपनी के पास अधिवक्ता अशोक लकड़ा की चार बीघा जमीन है। लकड़ा का कहना है कि यहां उनके पुरखे पहले धान की खेती करते थे। उसी समय से यहां कुआं है। हाल में उन्होंने इस पर तीन फुट का सीमेंट पाइप का रिंग लगाकर कुएं जैसा बना दिया है। इससे बराबर गिरने वाले पानी को बर्बाद होने से बचाने के लिए चार कट्ठा में तालाब बना दिया है। तालाब में मछली व बतख पालता हूं, जबकि शेष जमीन में करीब 300 किस्म के पेड़ हैं। प्रकृति प्रेमी अशोक बताते हैं कि उनके यहां लगभग हर किस्म के पेड़ हैं। साल, शीशम, सागवान से लेकर आम, कटहल, जामुन, अमरुद, नारियल, कदंब समेत हर फलदार और औषधीय पेड़-पौधे हैं। उन्होंने असम व तमिलनाडु की नर्सरी से मंगाकर बांस भी लगाया है।

दूसरों को भी देते बागवानी की सलाह

अधिवक्ता अशोक लकड़ा।

अशोक बताते हैं कि उनके पिता बिरसा लकड़ा सीआइएसएफ में डिप्टी कमांडेंट थे। असम में ही उनका निधन हो गया था। इसके बाद उन्हें सीआइएसएफ से अनुकंपा पर नौकरी का प्रस्ताव मिला, लेकिन इकलौता पुत्र होने के नाते उन्होंने यहीं रहना जरूरी समझा। कोर्ट बंद है, जिससे अब वह बागवानी में ज्यादा समय दे रहे हैं। यह कुआं प्राकृतिक है। इसी के पानी से उनका तालाब भरा रहता है। उन्होंने मुर्गा-मुर्गी भी पाल रखा है। वह दूसरों को भी बागवानी की सलाह देते हैं। इससे वातावरण शुद्ध रहता है। हर वक्त आक्सीजन मिलता रहता है।

सुरक्षित रखा है 1932 का खतियान

अशोक लकड़ा का परिवार मूल रूप से चाईबासा का रहने वाला है। उनके दादा-परदादा यहां रहते थे। उनके पास आज भी 1932 का खतियान सुरक्षित है। पिता ने उन्हें अधिवक्ता इसीलिए बनाया, ताकि मैं पूर्वजों की संपत्ति की देखभाल कर सकूं। उनकी चाईबासा में भी पैतृक जमीन है, लेकिन वे ज्यादातर यहीं रहते हैं। 36 वर्षीय अशोक कहते हैं कि हम सरना धर्म को मानने वाले हैं। इसमें प्रकृति की पूजा से बढ़कर कुछ नहीं है। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं अपने बापा-दादा के सपनों को पूरा कर पा रहा हूं।