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पारिवारिक मूल्यों की रक्षा का पर्व है भाई दूज, यही कहती है यम और यमुना की कथा

यह पर्व भ्राता-भगिनी के स्नेह की उस शुद्धता को प्रकट करता है जो पावन और दिव्य है। बहन अपने भाई को तिलक कर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है। मान्यता है कि यमराज ने इसी तिथि को अपनी बहन यमुना का निमंत्रण स्वीकार किया था।

By Jagran NewsEdited By: Vivek BhatnagarUpdated: Sat, 22 Oct 2022 06:15 PM (IST)
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यम ने भ्रातृ द्वितीया को अपनी बहन यमुना का आतिथ्य स्वीकार किया था।

 डा. पूनम पांडे। भ्रातृ द्वितीया अर्थात भाई दूज का त्योहार कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को मनाया जाता है। यह पर्व भ्राता-भगिनी के स्नेह की उस शुद्धता को प्रकट करता है, जो पावन और दिव्य है। बहन अपने भाई को तिलक कर उनकी लंबी उम्र की कामना करती है। पौराणिक कथाओं में यह पर्व मनाने की परंपरा यमराज से जुड़ी है। मान्यता है कि यमराज ने इसी तिथि को अपनी बहन यमुना का निमंत्रण स्वीकार किया था। इस दिन यमुना में स्नान का विशेष महत्व है। भाई के कल्याण की इच्छा से बहनें इस दिन कुछ अन्य मांगलिक विधान भी करती हैं। जिसमें मंगल पाठ, भेंट समर्पण, स्नेह भोज आदि शामिल है। इस पर्व के संबंध में पौराणिक कथा है : सूर्य की पत्नी संज्ञा से दो संतानें थीं- पुत्र यमराज तथा पुत्री यमुना। संज्ञा सूर्य का तेज सहन न कर पाने के कारण अपनी छायामूर्ति का निर्माण कर सूर्य को अपने पुत्र-पुत्री सौंपकर वहां से चली गई। संज्ञा की छाया को यम और यमुना से किसी प्रकार का लगाव न था, किंतु यम और यमुना में परस्पर बहुत प्रेम था। यमुना, यमराज से मिलने का जतन करती थी। वह निवेदन करती कि उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन यमराज को भोजन के लिए पधारने के लिए यमुना ने वचनबद्धकर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक में निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना बहुत प्रसन्न हुईं। उन्होंने भाई को भोजन कराया। यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने को कहा। यमुना ने कहा कि भैया, प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करें, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज तथास्तु कहकर यमुना को वस्त्राभूषण देकर यमलोक लौट गए।

इस पर्व से जुड़ी एक अन्य प्रचलित कथा है। मान्यता है कि भ्रातृ द्वितीया के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर राक्षस का वध कर वापस द्वारका लौटे थे। नरकासुर के पाप और अधर्म से तीनों लोक त्राहिमाम कर रहा था। वह ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त भी था, उसने कई देवों की तपस्या और सिद्धि से अपार शक्तियां प्राप्त कर ली थीं। इन शक्तियों के मद और अहंकार में वह नित्य प्रति अधर्म कर रहा था। उसने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग लोक पर आधिपत्य जमा लिया था। ब्रह्मा जी के सुझाव पर इंद्र पृथ्वी लोक पर श्रीकृष्ण से सहायता मांगने पहुंचे। श्रीकृष्ण स्वयं अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ नरकासुर के नगर जा पहुंचे। भीषण युद्ध के बाद श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से नरकासुर का वध किया और तीनों लोकों को भय मुक्त कर दिया। इस दिन भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया और भगवान श्रीकृष्ण के मस्तक पर तिलक लगाकर उनके दीर्घायु की कामना की थी।

बहन सदैव ही अपने भाई के स्नेह, पराक्रम, उत्साह, वीरता, यश आदि की कामना भी करती है और भाई के इन गुणों देखकर आनंदित भी होती है। मान्यता है कि भ्रातृ द्वितीया या यम द्वितीया के दिन बहनें यम के नाम का दीपक घर के बाहर जलाती हैं, जिससे उनके भाई के अकाल मृत्यु का भय दूर होता है। भाई दूज पंच दिवसीय दीपावली पर्व का उपसंहार है, जिसका परम लक्ष्य पारिवारिक मूल्यों की रक्षा करना, आपसी स्नेह, सौहार्द को सहेजना है।