Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

फिर चंबल में उगेगा गुग्गल, देश में खपत 1620 टन की, पैदावार सिर्फ 10 टन की, बाकी पाकिस्‍तान के भरोसे

डकैतों की शरणस्थली के रूप में कुख्यात रहे चंबल में पर्यावरण संरक्षण संग स्वावलंबन का अनूठा अभियान बीहड़ में गुग्गल के जंगल को तस्करों ने किया था नष्ट एक सामाजिक संस्था कर रही औषधीय पौध लगाने को प्रेरित आयात पर घटेगी निर्भरता

By Vijay KumarEdited By: Updated: Sun, 29 May 2022 07:07 PM (IST)
Hero Image
चंबल के बीहड़ों में पाया पाने वाला गुग्गल का औषधीय पौधा। जाकिर खान

हरिओम गौड़, मुरैना: डकैतों की शरणस्थली के रूप में कुख्यात रहे चंबल के बीहड़ों में खेती नहीं होती, कोसों तक हरियाली नहीं होती, लेकिन यह जानकर आश्चर्य होगा कि धार्मिक कार्यों में उपयोग होने वाला गुग्गल जिस पेड़ से निकलता है, उन पेड़ों के लिए बीहड़ की जमीन पूरे देश में सबसे उत्तम है। लगभग 35 वर्ष पहले तक यहां गुग्गल के घने जंगल हुआ करते थे, जिन्हें इससे निकलने वाले गोंद जैसे द्रव्य के लिए तस्करों ने उजाड़ दिया।

वर्तमान में देश में जितने गुग्गल की खपत है, उसका 99 प्रतिशत से अधिक हमें पाकिस्तान से खरीदना पड़ता है। अब मुरैना की एक समाजसेवी संस्था बीहड़ में गुग्गल की बहार लाकर पर्यावरण संरक्षण के साथ पाकिस्तान पर निर्भरता को खत्म करने के अभियान में जुटी है। फिलहाल प्रयास छोटा है लेकिन सरकार भी इस ओर गंभीर हो तो न सिर्फ बीहड़ हरे-भरे होंगे बल्कि हजारों किसानों को रोजगार मिलेगा और भूमि कटाव के कारण लगातार बढ़ रहे बीहड़ की भी रोकथाम होगी।

गुग्गल के बारे में जानें विस्‍तार से

गुग्गल ऐसा औषधीय पौधा है, जो हृदय एवं त्वचा रोग से लेकर 60 प्रकार की बीमारियों की आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के काम आता है। छिंदवाड़ा स्थित जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के एक सर्वे में बताया गया है कि देश में हर वर्ष 1,620 टन गुग्गल की खपत होती है, लेकिन इसकी तुलना में केवल 10 टन गुग्गल ही पैदा होता है। बाकी 1,600 टन से ज्यादा गुग्गल पाकिस्तान से आयात करना पड़ता है। पड़ोसी देश पाकिस्तान पर इस निर्भरता को खत्म करने और बीहड़ों में गुग्गल के पेड़ों का अस्तिस्व बढ़ाने के लिए सुजागृति समाजसेवी नाम की संस्था लगी हुई है, जिसने दो साल में मुरैना जिले के पिपरई, देवरी, बागचीनी, बामसोली, जावरोल आदि गांवों के पास करीब 12 हेक्टेयर भूमि (60 बीघा) में गुग्गल के पौधे लगाकर बीहड़ को हराभरा कर दिया है। इस संस्था का लक्ष्य बीहड़ की एक हजार एकड़ भूमि में गुग्गल की खेती करने का है।

इसके लिए 10 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य है। एक हेक्टेयर में पौधारोपण का खर्च एक लाख रुपये हैं। तीन वर्ष बाद इससे गोंद व अन्य उत्पाद निकलना शुरू होता है। गुग्गल का गोंद 1,200 से 1,500 रुपये प्रति किलोग्राम में बिकता है जिसे, डाबर, पतंजलि, ऊंझा, हमदर्द, बैद्यनाथ और चरक जैसी कई नामी आयुर्वेद कंपनियां दवाएं बनाने में उपयोग के लिए खरीदती हैं।

तस्करी से वीरान हो गए बीहड़:

लगभग 35 वर्ष पहले चंबल के बीहड़ों में गुग्गल बहुत अधिक मात्रा में मिलता था। 10 से 12 फीट ऊंचे पेड़ पाए जाते थे, जिसका प्रमाण श्योपुर जिले में वीरपुर तहसील के कूनो साइफन से लेकर दिमरछा, सांथेर, मोहनपुरा, तेलीपुरा आदि गांवों के बीहड़ हैं जहां आज भी गुग्गल के पेड़ बड़ी संख्या में हैं। करीब 33 वर्ष पहले कुख्यात डकैत रूपासिंह ने राजस्थान के तस्करों के साथ मिलकर गुग्गल के गोंद की तस्करी शुरू कराई। वन विभाग या जिला प्रशासन ने इसे रोकने के कोई प्रयास कभी नहीं किए। डकैत रूपा का सफाया होने के बाद राजस्थान के तस्करों ने पूरे बीहड़ से गुग्गल को उजाड़ दिया। वीरपुर के बीहड़ों में अभी गुग्गल के पेड़ हैैं, वहां भी तस्करों की सक्रियता है।

एक साल से साहब की टेबल में दबी है गुग्गल पौधरोपण की फाइल:

गुग्गल के संरक्षण और बीहड़ों में गुग्गल की खेती के प्रयास में जुटी सुजागृति समाजसेवी संस्था के प्रयासों से मध्य प्रदेश राज्य विविधता बोर्ड के अध्यक्ष ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने एक वर्ष पहले मुरैना के कलेक्टर व जिला पंचायत सीईओ को पत्र लिखकर कहा कि मनरेगा के कोष से चंबल के बीहड़ों में गुग्गल के पौधों का रोपण करवाया जाए। यह फाइल बीते एक वर्ष से जिला पंचायत सीईओ की टेबल पर धूल फांक रही है। वन विभाग और अजीविका मिशन को भी जिपं सीईओ ने एक बार बैठक में बुलाया, लेकिन इस बैठक के बाद परिणाम धरातल पर नहीं आए।

चंबल अंचल में 35,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बीहड़ फैले हैं। गुग्गल के पौधे की खास बात यह है कि इस पौधे को न तो कोई मवेशी खाता है, न ही कभी पानी की जरूरत पड़ती है। यानी यह पौधा बीहड़ों में स्वत: ही फलता फूलता है। अगर बीहड़ों में गुग्गल की खेती हो तो पाकिस्तान से गुग्गल मंगाना तो दूर, दूसरे देशों को इसका निर्यात भी कर सकते हैं। बीहड़ों में गुग्गल की खेती होने लगे तो प्रदेश सरकार को करोड़ों की आय होगी, भूमि कटाव रुकेगा। हमने इसके लिए देश के कृषि मंत्री व क्षेत्र के सांसद नरेंद्र सिंह तोमर को भी पत्र लिखा है।

-जाकिर खान, अध्यक्ष, सुजागृति समाजसेवी संस्था, मुरैना