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जागरण संपादकीय: जाति की राजनीति, संसद में जाति पर घमासान, शांति से निकालना होगा समाधान

हर कोई इससे अच्छी तरह परिचित है कि जाति की राजनीति ने समाज को विभाजित करने के साथ सामाजिक न्याय की राह में मुश्किलें पैदा की हैं फिर भी कुछ नेता अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए समाज को जातियों में बांटने में लगे हुए हैं। जातीय वैमनस्य के रूप में इसके दुष्परिणाम सामने हैं लेकिन जातिवादी नेता यह देखने-समझने को तैयार नहीं।

By Jagran News Edited By: Narender Sanwariya Updated: Thu, 01 Aug 2024 01:42 AM (IST)
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जाति की राजनीति: संसद में जाति पर घमासान (File Photo)

बहुत दिन नहीं हुए, जब राहुल गांधी लोगों और विशेषकर अधिकारियों एवं मीडिया वालों की जाति पूछते थे, लेकिन जब लोकसभा में उनका उल्लेख किए बिना यह तंज कसा गया कि जिन्हें अपनी जाति का पता नहीं, वे उसकी गणना की मांग कर रहे हैं तो कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों के नेता संसद के भीतर और बाहर आपे से बाहर हो गए।

इनमें कांग्रेस के वे नेता भी हैं, जो लोगों की जाति जानने की राहुल गांधी की उत्कंठा को उनका मास्टर स्ट्रोक बताया करते थे। जब कोई घूम-घूमकर इनकी-उनकी जाति जानने की कोशिश करेगा तो फिर उसे वैसे कटाक्ष सुनने के लिए तैयार रहना चाहिए, जैसा विगत दिवस भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने किया।

राहुल गांधी इस कटाक्ष को अपना अपमान बता रहे हैं। यह वही राहुल हैं, जो चंद दिन पहले ही लोकसभा में भाजपा नेताओं को दुर्योधन, शकुनी आदि बताने में लगे हुए थे। इसके पहले वह एक जनसभा में यह कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री मोदी तो ओबीसी हैं ही नहीं। यह एक नीति की बात है कि किसी को भी दूसरों के साथ वैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, जैसा उसे अपने लिए पसंद न हो।

अनुराग ठाकुर के बयान पर संसद में जो हंगामा हो रहा है, वह केवल खीझ मिटाने और जनता का ध्यान भंग करने के लिए हो रहा है। यह हास्यास्पद ही है कि अनुराग ठाकुर के बयान का समर्थन करने के कारण कांग्रेस प्रधानमंत्री के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस देने पर विचार कर रही है।

संसद में जाति पर जैसा घमासान हो रहा है, वह जाति की राजनीति का नतीजा है। दुर्भाग्य से जब देश को जाति की राजनीति से बाहर लाने की कोशिश की जानी चाहिए, तब कुछ दलों और विशेष रूप से कांग्रेस के नेता जाति की राजनीति को तूल देकर समाज में विभाजन और वैमनस्य पैदा करने में लगे हुए हैं।

वे यह कहकर जाति गणना की मांग करने में लगे हुए हैं कि इससे ही समस्त समस्याओं का समाधान होगा और सामाजिक न्याय का लक्ष्य हासिल होगा। यदि जाति गणना इतनी ही आवश्यक थी तो दशकों तक केंद्र की सत्ता में रही कांग्रेस ने ऐसा क्यों नहीं किया? प्रश्न यह भी है कि क्या लोगों की जाति जाने बिना उन्हें गरीबी से बाहर निकालने और शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार के प्रश्न हल करना संभव नहीं?

हर कोई इससे अच्छी तरह परिचित है कि जाति की राजनीति ने समाज को विभाजित करने के साथ सामाजिक न्याय की राह में मुश्किलें पैदा की हैं, फिर भी कुछ नेता अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने के लिए समाज को जातियों में बांटने में लगे हुए हैं।

जातीय वैमनस्य के रूप में इसके दुष्परिणाम सामने हैं, लेकिन जातिवादी नेता यह देखने-समझने को तैयार नहीं। हमारे समाज में तो केवल दो ही जातियां होनी चाहिए-अमीर एवं गरीब और उनका ही पता लगाया जाना चाहिए।