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जानलेवा हवा! वायु प्रदुषण से बच्चों में बढ़ा 100 फीसदी मौत का खतरा; शोध में चौंकाने वाले खुलासे

Air Pollution वायु प्रदुषण से मौत का खतरा लगातार बढ़ रहा है। शोध के मुताबिक नवजात शिशुओं में यह जोखिम 86 प्रतिशत पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 100-120 प्रतिशत तथा वयस्कों में 13 प्रतिशत जोखिम बढ़ा है। जहां पीएम 2.5 एनएएक्यूएस के स्तर तक है नवजात शिशुओं और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का जोखिम लगभग दो गुना से भी अधिक है।

By Agency Edited By: Sachin Pandey Updated: Tue, 27 Aug 2024 11:00 PM (IST)
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जिन घरों में अलग रसोई नहीं है, वहां मृत्यु का जोखिम काफी अधिक पाया गया है। (File Image)

पीटीआई, नई दिल्ली। भारतीय जिलों में राष्ट्रीय मानक से अधिक वायु प्रदूषण की वजह से सभी आयु वर्ग के लोगों में मौत का जोखिम बढ़ गया है। एक अध्ययन में यह बात कही गई है। अध्ययन के मुताबिक नवजात शिशुओं में यह जोखिम 86 प्रतिशत, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 100-120 प्रतिशत तथा वयस्कों में 13 प्रतिशत बढ़ा है।

साथ ही जिन घरों में अलग रसोई घर नहीं है, वहां नवजात शिशुओं और वयस्कों में मृत्यु का जोखिम काफी अधिक पाया गया है। मुंबई स्थित अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं सहित अन्य शोधकर्ताओं के एक दल ने 700 से अधिक जिलों में सूक्ष्म कण (पीएम2.5) संबंधी प्रदूषण के स्तर का अध्ययन किया है।

पीएम 2.5 एनएएक्यूएस के स्तर वाले जिलों में खतरा अधिक

विश्लेषण के लिए आंकड़ा राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण (पांचवें दौर) और राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (एनएएक्यूएस) से लिया गया है। जियोहेल्थ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट में लेखकों ने कहा है कि भारत के उन जिलों में जहां पीएम 2.5 एनएएक्यूएस के स्तर तक है, नवजात शिशुओं और पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु का जोखिम क्रमश: लगभग दो गुना और दो गुना से भी अधिक है।

एनएएक्यूएस से अधिक पीएम2.5 और घरों में वायु प्रदूषण के बीच संबंध का विश्लेषण करते हुए टीम ने पाया कि इससे नवजात शिशुओं में मत्यु दर 19 प्रतिशत तक, बच्चों में 17 प्रतिशत तक ओर वयस्कों में 13 प्रतिशत तक बढ़ गई है। लेखकों ने लिखा है कि नतीजे बताते हैं कि कि पीएम2.5 जीवन के अलग-अलग चरणों में मृत्यु दर के साथ अधिक मजबूत संबंध प्रदर्शित करता है। विशेष रूप से जब घरेलू वायु प्रदूषण को बाहरी प्रदूषण के साथ जोड़कर देखा जाता है, तो इसका असर बढ़ जाता है।

सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में खतरा ज्यादा

उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप में फैले सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्र में पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा है। इसके लिए फसल अवशेषों को जलाने और और औद्योगिक केंद्रों तथा विनिर्माण केंद्रों से निकलने वाला उत्सर्जन सहित कई कारण जिम्मेदार हैं। लेखकों ने कहा कि मैदानी इलाकों के मध्य और निचले क्षेत्रों तथा मध्य भारत के जिलों में स्वच्छ ईंधन और घरों में अलग रसोईघर का उपयोग बहुत कम है।

मध्य प्रदेश, ओडिशा और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में फसल अवशेष और गोबर के साथ-साथ आसानी से उपलब्ध ईंधन के रूप में जलाने लायक लकड़ी उपलब्ध है। टीम के अनुसार, पिछले अध्ययनों में क्षेत्रीय आंकड़ों पर ध्यान दिया गया था, वहीं, इस अध्ययन में शहरों में प्रदूषण के स्तर को जिला-स्तर के मृत्यु अनुमानों के साथ एकीकृत किया गया है।

पीएम2.5 उत्सर्जन घटाने पर होना चाहिए जोर

शोधकर्ताओं ने इस बात पर जोर दिया है कि जिन क्षेत्रों में स्वच्छ ईंधन का उपयोग कम है और घरों में अलग रसोईघर बहुत आम नहीं हैं, वहां लोगों में स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ाने के प्रयास किए जाने चाहिए। लेखकों ने लिखा है कि भारत में नीति निर्माताओं को विश्व स्वास्थ्य संगठन की वायु गुणवत्ता गाइडलाइंस को भूल कर मानव जनित पीएम2.5 उत्सर्जन घटा कर कम से कम एनएएक्यूएस के स्तर पर लाने के लिए प्रयास करना चाहिए। इससे बीमारियों के बोझ और असमय मृत्यु में काफी हद तक कमी आ सकती है।