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Chhattisgarh News: बस्तर की रोचक परंपरा, यहां देवी को अर्पित किया जाता है काला चश्मा

बस्तर जंगल तथा आदिवासियों का क्षेत्र हैं। आदिवासी जंगलों में अपने जीवन यापन करते हैं यहां के वस्तुओं को ही बेच कर अपना जीवन गुजर बसर करते हैं क्योंकि आदिवासी मानते है कि जंगल उनके लिए वरदान है जिसके लिये उनकी परंपरा भी अनोखी होती हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Tue, 10 May 2022 11:00 AM (IST)
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बस्तर के कोटमसर में देवी बास्ताबुंदिन की मूर्ति (फोटो एएनआई)

बस्तर, एएनआई। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले के ग्राम कांगेरवैली नेशनल कोटमसर में हर तीन साल में मां बस्ताबुंदिन की यात्रा होती हैं, यहां माता को काला चश्मा चढ़ाने की परंपरा हैं। यहां के बुजुर्गों का मानना है, कि चश्मा चढ़ाने से मां उनके जंगलों को बुरी नजर से बचाती हैं, जिस परम्परा को आज यहां युवा पीढ़ी भी अपना रहे हैं। इस संबंध में एक स्थानीय ने बताया कि 3 साल में एक बार यहां आयोजन किया जाता है, बड़ा मेला भी लगता है। खेती को किसी की नजर न लगे इसलिए चश्मा चढ़ाया जाता है। कई पीढ़ियों से ये चलता आ रहा है।

एक स्थानीय ने बताया, "3 साल में एक बार यहां आयोजन किया जाता है, बड़ा मेला भी लगता है। खेती को किसी की नज़र न लगे इसलिए चश्मा चढ़ाया जाता है। कई पीढ़ियों से ये चलता आ रहा है।" pic.twitter.com/0IQnqWboxa— ANI_HindiNews (@AHindinews) May 10, 2022

इस साल होगा मेले का आयोजन

कांगेर वैली मे निवास करने वाले आदिवासियों संस्कृति के जानकार बताते हैं, कि पहले गांव के एक ही परिवार के द्वारा माता की पूजा कर मां को काला चश्मा भेंट किया जाता रहा, लेकिन आज इस परंपरा को पूरे क्षेत्र वासियों ने अपना लिया हैं।

क्या कहते हैं मंदिर के पुजारी

मंदिर के पुजारी जीतू बताते हैं, कि इस मेले का आयोजन होना हैं। माता की कृपा से इस साल जंगल हरे भरें रहेंगे, वन देवी रक्षा करेंगी और भक्त इस बार भी माता को चश्मा चढ़ा कर अपनी मनौती मांगते हैं। पुजारी बताते हैं कि माता को चढ़ाया चश्मे भक्तों में प्रसाद के रुप में वितरित किया जाता हैं। भक्त इन चश्मे को पहनकर गांव की परिक्रमा करते हैं ताकि देवी मां बास्ताबुंदिन की कृपा पूरे गांव और ग्राम वासियों पर बनी रहें।