जब बुजुर्ग महिला ने गांधीजी के कदमों में रख दिया तांबे का सिक्का...
इस प्रेरक प्रसंग से जाहिर है कि किसी की उदारता और बलिदान का मूल्य गांधीजी से बेहतर कौन समझ सकता था।
महात्मा गांधी देशभर में घूम-घूमकर चरखा संघ के लिए धन एकत्रित कर रहे थे। इस दौरान जब उनका ओड़सिा जाना हुआ तब उन्होंने एक सभा को भी संबोधित किया। भाषण जैसे ही पूरा हुआ भीड़ में से एक बुजुर्ग महिला उनके सामने आई। उस महिला के कपड़े फटे हुए थे और कमर पूरी तरह से झुकी हुई थी।
उसने गांधी के सामने पहुंचकर पहले उनके पैर छुए और फिर अपने साड़ी के पल्लू में बंधा तांबे का सिक्का निकालकर गांधी के कदमों में रख दिया। गांधी ने सिक्का उठाया और उसे अपने सहायकों को देने की बजाए खुद अपने पास रख लिया। उस समय चरखा संघ का कोष जमनालाल बजाज संभाल रहे थे। उन्होंने गांधीजी से वो सिक्का मांगा, लेकिन उन्होंने नहीं दिया।
बजाज ने कहा, ' मैं संघ के लिए हजारों रूपये संभालता हूं, फिर भी आप मुझ पर इस सिक्के को लेकर विश्वास नहीं कर रहे हैं।'
गांधीजी ने जवाब दिया 'यह ताम्बे का सिक्का उन हजारों से कहीं कीमती है।'
उन्होंने कहा' यदि किसी के पास लाखों हैं और वो हजार या दो हजार देता है तो उसे कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन ये सिक्का शायद उस औरत की कुल जमा-पूंजी थी। उसने अपना सारा धन दान दे दिया। इसीलिए इस तांबे के सिक्के का मूल्य मेरे लिए एक करोड़ से भी ज्यादा है।'