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नए आपराधिक कानूनों के नामों पर विरोधियों को झटका, केरल हाइकोर्ट ने लगा दी मुहर

एक जुलाई से देश में लागू हुए तीन नए आपराधिक कानूनों भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के हिंदी नामों को लेकर हो रहे विरोध का पटाक्षेप हो गया है। केरल हाई कोर्ट ने नए आपराधिक कानूनों के हिंदी नामों (शीर्षक) पर अपनी मुहर लगा दी है। हाई कोर्ट ने कहा है कि कानूनों के हिंदी शीर्षक संविधान का उल्लंघन नहीं हैं।

By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Wed, 21 Aug 2024 11:45 PM (IST)
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नए आपराधिक कानूनों पर केरल हाइकोर्ट ने लगा दी मुहर (फाइल फोटो)

माला दीक्षित, नई दिल्ली। एक जुलाई से देश में लागू हुए तीन नए आपराधिक कानूनों भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम के हिंदी नामों को लेकर हो रहे विरोध का पटाक्षेप हो गया है। केरल हाई कोर्ट ने नए आपराधिक कानूनों के हिंदी नामों (शीर्षक) पर अपनी मुहर लगा दी है। हाई कोर्ट ने कहा है कि कानूनों के हिंदी शीर्षक संविधान का उल्लंघन नहीं हैं।

उच्च न्यायालय ने कानून के हिंदी नामों को चुनौती देने वाली याचिका खारिज करते हुए कहा कि कानून का शीर्षक हिंदी में रखने पर संसद पर कोई रोक नहीं है। किसी नागरिक को परिचित भाषा में कानूनों का शीर्षक मांगने का मौलिक अधिकार नहीं है। केरल हाई कोर्ट का यह फैसला मील का पत्थर है, क्योंकि देश की किसी संवैधानिक कोर्ट का यह शायद पहला फैसला होगा जिसमें संसद द्वारा बनाए गए कानून के हिंदी नामों के बारे में कानूनी और संवैधानिक स्थिति स्पष्ट की गई है।

न्यायमूर्ति एस मनु की पीठ ने 19 अगस्त को दिया फैसला

जब से नए कानून बने हैं तभी से इनके हिंदी नामों को लेकर विरोध हो रहा है। विशेषकर दक्षिण भारत के राज्यों जैसे तमिननाडु, केरल आदि में विरोध ज्यादा मुखर है और मामले अदालत तक पहुंचे हैं। ये तीनों नए आपराधिक कानून एक जुलाई से आइपीसी, सीआरपीसी और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लागू हुए हैं। यह अहम फैसला केरल हाई कोर्ट ने कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मुहम्मद मुश्ताक और न्यायमूर्ति एस मनु की पीठ ने 19 अगस्त को दिया। हाई कोर्ट ने तीनों नए आपराधिक कानूनों के हिंदी शीर्षकों को संविधान के खिलाफ घोषित करने और उनके अंग्रेजी भाषा में नाम रखे जाने की मांग वाली जनहित याचिका खारिज कर दी।

उच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 351 के तहत हिंदी भाषा के विकास के लिए निर्देश जारी किए गए हैं ताकि वह भारत की समग्र संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके, इसलिए कानून का शीर्षक हिंदी में रखने पर संसद पर कोई रोक नहीं है।

इन तीनों कानूनों के नाम हिंदी में हैं

अधिनियम में आधिकारिक अंग्रेजी पाठ को प्राथमिकता देने की संविधान में कही गई बात पूरे देश में समानता सुनिश्चित करने के लिए है, न कि कानून के शीर्षक के तौर पर किसी भी रूप में हिंदी का परित्याग करना।

केरल में कोच्चि के रहने वाले याचिकाकर्ता पी.वी. जीवेश ने याचिका में संविधान के अनुच्छेद 348 (1) (2) को आधार बनाया था जो कहता है कि संसद द्वारा पारित सभी कानूनों का आधिकारिक पाठ अंग्रेजी भाषा में होगा। उसका कहना था कि इन तीनों कानूनों के नाम ¨हदी में हैं इसलिए संविधान के अनुच्छेद 348(1)(2) का उल्लंघन है। उसने मौलिक अधिकार के हनन की भी दलील दी थी। लेकिन हाई कोर्ट ने उसकी दलीलें खारिज करते हुए कहा कि अधिनियम के नाम सिर्फ शीर्षक हैं, इसे आधिकारिक पाठ (अथारटेटिव टेक्स्ट) नहीं माना जा सकता, जैसा कि अनुच्छेद 348 में कहा गया है। कोर्ट ने कहा कि मौलिक अधिकार के हनन की दलील स्वीकार करने योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा-मौलिक अधिकार समूह के अधिकार होते हैं और संविधान सभी नागरिकों को एक समान समूह के रूप में देखता है।