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6 राज्यों से बाकी प्रदेशों को सीखने की जरूरत, मुफ्त रेवड़ियों से नहीं चलेगा काम; ऐसे सुधरेगी खजाने की सेहत

उत्तर प्रदेश बुनियादी विकास पर सबसे अधिक खर्च करने वाला प्रदेश है। वहीं पिछले कुछ सालों में तमिलनाडु सबसे अधिक निवेश को आकर्षित करने वाला प्रदेश बना है। गुजरात ने भी अपने यहां सेमीकंडक्टर से जुड़ा ईको-सिस्टम को विकसित किया है। तमिलनाडु दुनिया के 10 ऑटोमोबाइल्स मैन्यूफैक्चरिंग हब में से एक बन गया है। महाराष्ट्र भी बेहतर कर रहा है।

By Jagran News Edited By: Ajay Kumar Updated: Sun, 15 Sep 2024 10:32 AM (IST)
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ऑटोमोबाइल सेक्टर में तमिलनाडु का दबदबा। (सांकेतिक फोटो)

राजीव कुमार, जागरण, नई दिल्ली। चुनावी राजनीति के चौसर पर आर्थिक बोझ से कराहते राज्यों के खस्ताहाल खजाने के बीच कुछ ऐसे भी राज्य हैं जो बेहतर वित्तीय सुशासन और विकास की उम्मीद जगाते हैं। गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य मुफ्त चुनावी वादों को पूरा करने के दबाव के बीच निवेश और औद्योगिकरण के जरिए अपने-अपने राज्यों का राजस्व बढ़ाते हुए पूंजीगत खर्च भी बढ़ा रहे हैं। उत्तरी भारत में सिर्फ उत्तर प्रदेश दक्षिण और पश्चिम के इन राज्यों से मुकाबला कर रहा है।

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इनक्लूसिव ग्रोथ का मॉडल हितकारी

राजस्व में बढ़ोतरी के साथ पूंजीगत खर्च में इजाफे की राह को आर्थिक विकास की राह मानकर आगे बढ़ रहे इन राज्यों के उदाहरण इस बात के संकेत दे रहे हैं कि खजाने की सेहत बेहतर कर इनक्लूसिव ग्रोथ का मॉडल राज्य के लिए हितकारी है। देश की कुल मैन्यूफैक्चरिंग में 53 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल पांच राज्यों की है। वित्त वर्ष 2022 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार इन पांच राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।

विकास पर सबसे अधिक खर्च कर रहा यूपी

बीते कुछ वर्षों से उत्तर प्रदेश देश में सबसे अधिक बुनियादी विकास पर खर्च कर रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में बजट अनुमान के मुताबिक उत्तर प्रदेश ने विकास पर खर्च के मद में 4,30,258 करोड़ का बजट रखा था। इस अवधि में विकास पर खर्च करने के मामले में महाराष्ट्र दूसरे, तेलंगाना तीसरे, तमिलनाडु चौथे, कर्नाटक पांचवें तो मध्य प्रदेश छठे स्थान पर रहा।

निवेश में भी छह राज्यों का दबदबा

वित्तीय आंकड़े बताते हैं कि विकास पर ये राज्य इसलिए खर्च कर पा रहे हैं क्योंकि इनका राजस्व घाटा अन्य राज्यों के मुकाबले कम है। तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे राज्य अपनी भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक स्थिति की वजह से शुरू से औद्योगिक निवेश का केंद्र रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि नए आने वाले निवेश का लगभग 75 प्रतिशत यही छह राज्य ले जा रहे हैं। बाकी के राज्य इनवेस्टमेंट समिट तो कर रहे हैं लेकिन इकोसिस्टम या नीति के अभाव में उसे जमीन पर नहीं उतार पा रहे हैं।

इन सेक्टरों में केंद्र का फोकस

उधर, कई ऐसे भी राज्य हैं जिनकी शिथिलता के कारण जमे जमाए उद्योग भी ध्वस्त हो गए। केंद्र सरकार का अनुमान है कि ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, टेक्सटाइल जैसे सेक्टर में नए निवेश की मदद से देश का मैन्यूफैक्चरिंग कारोबार एक लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच सकता है और इसमें इन पांच राज्यों का अहम योगदान होगा क्योंकि ये राज्य अपने बुनियादी विकास पर सबसे अधिक खर्च कर रहे हैं जो निवेशकों के अनुकूल माहौल तैयार करता है।

तमिलनाडु क्यों आगे बढ़ा?

बुनियादी ढांचे के विकास से ही औद्योगिक लागत कम की जा सकती है और बिजनेस की प्रक्रिया के साथ श्रमिकों के जीवन को आसान बनाया जा सकता है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में वर्ष 2019 की रैंकिंग में उत्तर प्रदेश दूसरे स्थान पर था। आंध्र प्रदेश पहले तो तेलंगाना तीसरे पायदान पर था। यह सवाल खड़ा होता है कि सब्सिडी और रेवड़ी के बावजूद तमिलनाडु कैसे आगे बढ़ रहा है तो जवाब यह है कि पिछले दो-तीन सालों में सबसे अधिक मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट तमिलनाडु में लगी हैं और इसके पीछे की वजह है कि वहां की सरकार उद्यमियों को बहुत ही कम समय में यूनिट लगाने की तमाम औपचारिकताएं पूरी करके दे देती है।

इन राज्यों को मिला पीएलआई का फायदा

देश में सबसे अधिक 39,600 औद्योगिक यूनिट तमिलनाडु में हैं। यह राज्य दुनिया के 10 आटोमोबाइल्स मैन्यूफैक्चरिंग हब में से एक बन गया है। मेक इन इंडिया प्रोग्राम व प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव जैसी स्कीम की घोषणा का सबसे अधिक लाभ तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिण के राज्यों के साथ गुजरात व महाराष्ट्र को ही मिला है।

पारंपरिक सेक्टर में उलझे उत्तर के राज्य

इलेक्ट्रिक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पाद, सेमीकंडक्टर, केमिकल्स जैसे नए सेक्टर में होने वाले निवेश में इन राज्यों की अधिक हिस्सेदारी दिख रही है जबकि पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा जैसे उत्तर भारत के राज्य इंजीनियरिंग उत्पाद, छोटी मशीनरी, गारमेंट, आटो कंपोनेंट्स, स्पोर्ट्स गुड्स, साइकिल निर्माण जैसे पारंपरिक सेक्टर में उलझे रह गए।

हरियाणा क्यों आकर्षित नहीं कर पा रहा निवेश?

किसी समय चीनी उद्योग में पैठ जमा चुका बिहार अब मूलतः कृषि पर भी निर्भर रह गया है। मोबाइल फोन व उनके पार्ट्स निर्माण में उत्तर प्रदेश के नोएडा में भी बड़ा निवेश हुआ है और डिफेंस मैन्यूफैक्चरिंग में उत्तर प्रदेश में बड़ी संभावना तैयार हो रही है। हरियाणा में भी यात्री कार, ट्रैक्टर व मोटरसाइकिल का भारी निर्माण होता है लेकिन दक्षिण के राज्यों की तरह अब हरियाणा नए क्षेत्र के औद्योगिक निवेशकों को बहुत आकर्षित नहीं कर पा रहा है।

कुशल श्रमिकों की वजह से दक्षिण में आ रहा निवेश

जानकारों का कहना है कि दक्षिण के राज्यों के साथ महाराष्ट्र व गुजरात में इसलिए अधिक नए निवेश आ रहे हैं क्योंकि इन जगहों पर उत्तर भारत के मुकाबले काफी अधिक संख्या में कुशल श्रमिक भी उपलब्ध हैं। तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, केरल जैसे राज्यों में इंजीनियरिंग और टेक्निकल कुशलता का माहौल पहले से रहा है। गुजरात, महाराष्ट्र जैसे राज्य दक्षिण के इन राज्यों के समीप है, इसलिए यहां भी कुशल श्रमिकों का इको सिस्टम तैयार हो गया।

सेमीकंडक्टर का हब बन रहा गुजरात

एप्पल मोबाइल फोन का प्लांट तमिलनाडु में लगा तो देश में पहली सेमीकंडक्टर बनाने की यूनिट अमेरिकन कंपनी माइक्रोन गुजरात के साणंद में लगा रही है। इसकी एक मुख्य वजह है कि गुजरात सरकार माइक्रोन को आर्थिक सहायता के साथ अन्य सभी सुविधाएं तय समय में मुहैया करा रही है। सेमीकंडक्टर निर्माण में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स की पूरी चेन गुजरात में उपलब्ध है।

उत्तर भारत में उद्योग प्रोत्साहन नीति नहीं

पंजाब के उद्यमी एवं फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट आर्गेनाइजेशंस (फियो) के चेयरमैन अश्विनी कुमार के अनुसार, पंजाब या उत्तर भारत के अन्य राज्यों में दक्षिण के राज्यों की सरकार की तरह उद्योग को प्रोत्साहित करने की नीति नहीं है। तमिलनाडु में हर तीसरे मिनट एक कार, हर दूसरे मिनट एक ट्रक और हर छठे सेकेंड एक मोटरसाइकिल बनाने की स्थापित उत्पादन क्षमता है।

पंजाब में इन वस्तुओं का होता है उत्पादन

इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम का 25 प्रतिशत उत्पादन तमिलनाडु में तो 20 प्रतिशत महाराष्ट्र में होता है। देश में बिकने वाले 46 प्रतिशत इलेक्ट्रिक वाहन तमिलनाडु में बनते हैं। दूसरी तरफ पंजाब के उद्योग मुख्य रूप से ऑटो कंपोनेंट्स, स्पोर्ट्स गुड्स, इंजीनियरिंग गुड्स, सिलाई मशीन, होजरी गारमेंट्स जैसे उत्पाद बनाते हैं।

उत्तरी भारत के राज्यों को बड़े निवेश के लिए लाना होगा नीतिगत बदलाव

आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि चुनावी वादों पर फोकस करने वाले तमाम सूबों विशेषकर उत्तर भारत के राज्यों को नए सेक्टर के बड़े निवेश को हासिल करने के लिए नीतिगत बदलाव करना होगा। उन्हें जमीन की उपलब्धता से लेकर कानून-व्यवस्था जैसी गारंटी उद्यमियों को देनी होगी। कनेक्टिविटी को बेहतर करना होगा और उद्योग जगत की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए युवाओं को कुशल बनाने का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करना होगा। तभी मुफ्त चुनावी रेवड़ियों को लागू करने के लिए इन राज्यों को आर्थिक गुंजाइश मिलेगी और खजाने की कीमत पर सूबे को आर्थिक संकट से निकालने का रास्ता मिलेगा।

  • नए निवेश का 75% छह राज्य गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश ले जा रहे l
  • देश की कुल मैन्यूफैक्चरिंग में 53% हिस्सेदारी पांच राज्यों की, बुनियादी विकास पर खर्च में उत्तर प्रदेश सबसे आगे l
  • सब्सिडी और रेवड़ी तभी चल सकती हैं जब औद्योगिक विकास के लिए माहौल तैयार करें राज्य।

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