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ज्ञानवापी स्वामित्व विवाद में मंदिर पक्ष ने SC में दाखिल की कैविएट, HC के इस फैसले को मस्जिद पक्ष दे सकता है चुनौती

ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व संबंधी विवाद में मंदिर पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की ताकि अगर मस्जिद पक्ष हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देता है तो शीर्ष कोर्ट उनका पक्ष सुने बगैर कोई एकतरफा आदेश न जारी करे। गुरुवार को मंदिर पक्ष की ओर से पांचों मामलों में एडवोकेट ऑन रिकार्ड भक्ति वर्धन सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की गई।

By Jagran News Edited By: Anurag GuptaUpdated: Thu, 21 Dec 2023 10:42 PM (IST)
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ज्ञानवापी परिसर का स्वामित्व संबंधी विवाद (फोटो: एएफपी)

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ज्ञानवापी परिसर के स्वामित्व संबंधी विवाद में मंदिर पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल कर दी है ताकि अगर मस्जिद पक्ष हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देता है तो शीर्ष कोर्ट उनका पक्ष सुने बगैर कोई एकतरफा आदेश न जारी करे।

गुरुवार को मंदिर पक्ष की ओर से पांचों मामलों में एडवोकेट ऑन रिकार्ड भक्ति वर्धन सिंह की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की गई। स्वयंभू भगवान विश्वेशर की ओर से निकट मित्र विजय शंकर रस्तोगी के जरिये कैविएट दाखिल की गई।

कोर्ट की भाषा में क्या है कैविएट?

कैविएट दाखिल करने का मतलब होता है कि संबंधित मामले में कोई भी आदेश पारित करने से पहले अदालत कैविएट दाखिल करने वाले पक्षकार को भी सुने। यानी उसे भी पक्ष रखने का मौका मिले और कोर्ट एकतरफा कोई आदेश न जारी कर दे।

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इस मुकदमे को HC ने सुनवाई योग्य माना था

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 19 दिसंबर को मस्जिद पक्ष की पांच याचिकाएं खारिज करते हुए ज्ञानवापी परिसर में स्वामित्व विवाद से जुड़े मंदिर पक्ष के मुकदमे की सुनवाई को हरी झंडी दे दी थी। उस फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी पर स्वामित्व का दावा और मांग करने वाले मंदिर पक्ष के 1991 में दाखिल किए गए मुकदमे को सुनवाई योग्य माना था और कहा था कि यह मुकदमा पूजा स्थल कानून, 1991 से बाधित नहीं है।

हाई कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा था कि यह राष्ट्रीय महत्व का सिविल वाद है, न कि दो लोगों के बीच का विवाद। यह देश के दो बड़े समुदायों को प्रभावित करता है। पिछले 32 वर्षों से सिविल वाद लंबित है और 25 वर्षों तक अंतरिम आदेश के कारण सुनवाई रुकी रही। हाई कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रहित में यह वाद यथाशीघ्र तय होना चाहिए। दोनों पक्ष देरी की रणनीति अपनाए बगैर सुनवाई में सहयोग करें। हाई कोर्ट ने वाराणसी की जिला अदालत को यथासंभव छह महीने में इस सिविल वाद को निपटाने का आदेश दिया है।

HC के आदेश को चुनौती दे सकता है मस्जिद पक्ष

मस्जिद पक्ष की ओर से हाई कोर्ट के इस आदेश को चुनौती दी जा सकती है और इसी संभावना को देखते हुए मंदिर पक्ष ने कैविएट दाखिल की है। सुप्रीम कोर्ट में एक जनवरी तक सर्दियों की छुट्टी है। ऐसे में संभावना है कि मस्जिद पक्ष छुट्टियों के दौरान ही सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल कर देगा और उस पर जल्द सुनवाई का आग्रह भी किया जा सकता है, क्योंकि हाई कोर्ट के आदेश के मुताबिक, जिला अदालत को लंबित वाद पर जल्द सुनवाई पूरी करनी है। 1991 से लंबित इस मामले की सुनवाई 25 वर्ष रुकी रही, क्योंकि हाई कोर्ट ने 1998 में सुनवाई पर रोक लगा दी थी।

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