Ludhiana News: नवाचार अपनाकर लोकल को बनाया ग्लोबल, खुशबू वाले बीज तैयार करने में रमे अवतार सिंह
श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन में जिस तरह अलग-अलग पंक्तियों में विभिन्न रंगों के ट्यूलिप पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ऐसे ही विभिन्न रंगों के फूलों की कतार पंजाब के गांवों में नजर आए तो कुछ आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लुधियाना के रहने वाले अवतार सिंह ढींडसा फूलों का उत्पादन करते-करते उस खेती में ऐसे डूबे कि आज फूलों को छोड़ ‘खुशबू के बीज’ बनाने में रम गए हैं।
भूपेंदर सिंह भाटिया, लुधियाना। श्रीनगर के ट्यूलिप गार्डन (Srinagar Tulip Garden) में जिस तरह अलग-अलग पंक्तियों में विभिन्न रंगों के ट्यूलिप पर्यटकों को आकर्षित करते हैं। ऐसे ही विभिन्न रंगों के फूलों की कतार पंजाब के गांवों में नजर आए तो कुछ आश्चर्य नहीं होना चाहिए। लुधियाना के रहने वाले अवतार सिंह ढींडसा (Avtaar Singh Dhindsa) फूलों का उत्पादन करते-करते उस खेती में ऐसे डूबे कि आज फूलों को छोड़ ‘खुशबू के बीज’ बनाने में रम गए हैं।
पंजाब के अन्य किसान जहां गेहूं और धान की परंपरागत खेती करने में ही जुटे हैं, वहीं ढींडसा ने फूलों के बीज बनाने शुरू कर दिए।
इतना है साल का टर्नओवर
आज वह यूरोप में फूलों के सबसे बड़े निर्यातक बन गए हैं। अमेरिका, हालैंड, फ्रांस, जापान, कोरिया, ताइवान व आस्ट्रेलिया सहित अन्य यूरोपीय देशों में उनके बीज की काफी मांग है। आज ढींडसा को बीजों के विश्वव्यापी कांट्रेक्ट उत्पादक के रूप में जाना जाता है। अवतार की टर्नओवर प्रतिवर्ष दो मिलियन डॉलर है।
परंपरागत खेती से हटकर नया प्रयास था
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी से फ्लोरीकल्चर में डिग्री हासिल करने के बाद ढींडसा कुछ अलग करना चाहते थे। इसी दौरान उन्हें पीएयू के एक फ्लोरीकल्चर प्रोफेसर अजयपाल सिंह गिल ने फूलों की खेती करने को प्रेरित किया। ढींडसा ने तीन एकड़ जमीन में उच्च तकनीक के साथ फूल उगाने शुरू किए। इसी दौरान वह अमेरिका की एक कंपनी के संपर्क में आए।
अमेरिका की कंपनी के कहने पर बीज तैयार करना शुरू किए
ढींडसा कहते हैं, परंपरागत खेती से हटकर नया प्रयास था, लेकिन विदेश में डिमांड होने पर गजब का उत्साह बढ़ा। फिर अन्य देशों की कंपनियों से भी संपर्क साधना शुरू किया और कारोबार बढ़ता चला गया।’ इसी दौरान उनसे फूल लेने वाली अमेरिका की एक कंपनी ने उन्हें फूलों के बीज तैयार करने को कहा। ढींडसा ने नए क्षेत्र में कदम रखा और फूलों से ज्यादा डिमांड बीजों की होने लगी। उन्होंने फूलों का निर्यात छोड़ अब सिर्फ फूलों के बीजों का निर्यात शुरू कर दिया है।
30-32 किस्म के फूलों के बीज करते हैं तैयार
ढींडसा कहते हैं कि भारत और यूरोपीय देशों में फूलों की खेती को लेकर काफी अंतर है। यूरोप, अमेरिका व अन्य देशों में वहां के मौसम के अनुसार समर फ्लावर (गर्मी के फूल) ज्यादा होते हैं, जबकि भारत में विंटर फ्लावर की पैदावार ज्यादा होती है। उन्हें चूंकि माल विदेश में भेजना है तो वहां की डिमांड के अनुसार बीज तैयार करते हैं। वह मुख्यतः 30 से 32 किस्म के फूलों के बीज तैयार करते हैं।
पंजाब के अलावा मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी करवाते हैं खेती
तीन एकड़ से फूलों की खेती की शुरुआत करने वाले ढींडसा आज 1,500 एकड़ में बीजों का उत्पादन करते हैं। इसके लिए वह कॉन्ट्रैक्ट पर जमीन लेने के अलावा किसानों को भी कॉन्ट्रैक्ट पर काम देते हैं। यही कारण है कि उनका कारोबार पंजाब के अलावा मध्य प्रदेश और कर्नाटक तक फैला हुआ है।
विदेश में ही काफी मांग, देश में बेच नहीं पाते बीज
विदेश और देश में फूलों के बीज की मांग व क्वालिटी में अंतर पर ढींडसा कहते हैं कि वह अपने बीज भारत में नहीं बेच पाते। विदेश में भेजे जाने वाले बीजों की क्वालिटी का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। वहां 99.9 और 100 के बीच का भी अंतर देखा जाता है। विदेशों की मांग ही पूरी नहीं कर पाते तो यहां बेचने की बात ही नहीं उठती। वह कहते हैं कि इस खेती की ओर किसान जागरूक हों तो उनकी आर्थिक स्थिति ज्यादा बेहतर हो सकती है।