UP Lok Sabha Election Result: मुस्लिमों ने खामोशी से कर दिया खेला, पलट कर रख दिए इन सीटों के नतीजे
लोकसभा चुनाव में चेहरों से नहीं मुसलमानों ने सिर्फ वोटों से दम दिखाया। अपनी सटीक रणनीति से वह कई सीटें गठबंधन की झोली में डालने में सफल रहे जबकि कई पर भाजपा को कड़े मुकाबले को मजबूर कर दिया। खामोशी के साथ लिखी इस पटकथा के आगे न भाजपा की ध्रुवीकरण रोकने की रणनीति काम आई न ही बसपा की मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर बंटवारे की कोशिश का ही असर हुआ।
संजय रुस्तगी, मुरादाबाद। पश्चिम उत्तर प्रदेश में मुस्लिम राजनीति का नया उदय देखने को मिला है। लोकसभा चुनाव में चेहरों से नहीं, मुसलमानों ने सिर्फ वोटों से दम दिखाया। अपनी सटीक रणनीति से वह कई सीटें गठबंधन की झोली में डालने में सफल रहे, जबकि कई पर भाजपा को कड़े मुकाबले को मजबूर कर दिया।
खामोशी के साथ लिखी इस पटकथा के आगे न भाजपा की ध्रुवीकरण रोकने की रणनीति काम आई, न ही बसपा की मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर बंटवारे की कोशिश का ही असर हुआ। पश्चिम उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बाहुल्य सीटें मुरादाबाद, रामपुर, संभल, सहारनपुर और कैराना गठबंधन जीतने में सफल रहा है।
रामपुर में 52 प्रतिशत, मुरादाबाद और संभल में 48 प्रतिशत के आसपास मुस्लिम मतदाता हैं। 2022 में रामपुर सीट उपचुनाव में भाजपा के पास चली गई थी। इस परिणाम को मुस्लिमों के भाजपा की ओर आने का संकेत माना गया, लेकिन अब परिणाम उलटने से साफ हो गया कि मुस्लिम मतदाता इस बार अपनी रणनीति पर ही चले हैं।
इसके अलावा नगीना में चंद्रशेखर आजाद की जीत की बात करें, तो इसके पीछे भी मुस्लिम मतदाताओं की मुख्य भूमिका मानी जा रही है। अनुसूचित जाति का वोटबैंक आजाद के साथ होने की संभावना के मद्देनजर वहां मुस्लिमों ने सपा के बजाय उन्हें समर्थन दिया।
मुजफ्फरनगर से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की हार के पीछे भी मुस्लिमों की एकजुटता बड़ा फैक्टर रही है। मेरठ में भाजपा के अरुण गोविल जीत गए हैं, लेकिन मुस्लिमों के सपा की सुनीता वर्मा के साथ होने की वजह से उन्हें कई चरण में पीछे रहना पड़ा।
अमरोहा लोकसभा सीट के मुस्लिम बाहुल्य अमरोहा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी दानिश अली रिकार्ड बढ़त लेकर निकले। लेकिन, इसे आगे बरकरार नहीं रख सके। अमरोहा में करीब 38 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। सज्जादानशीन सैयद शिब्ली मियां का कहना है कि मुस्लिम समाज हमेशा संगठित होकर देश की तरक्की के लिए वोट देता रहा है। भाजपा सरकारों ने सुविधाएं कम दी, लेकिन दिलोदिमाग में डर ज्यादा बैठाया है। लिहाजा इस बार बदलाव रहा।
यह रही रणनीति
चुनाव में सभी दलों ने मुस्लिमों को लेकर अलग-अलग रणनीति तैयार की, तो मुस्लिम मतदाता अपनी खामोश रहने की रणनीति पर कायम रहे। भाजपा ने तीन तलाक, सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास का नारा देकर मुस्लिमों को अपना बनाने की कोशिश की।
मुस्लिम नेताओं को सक्रिय कर केंद्रीय योजनाओं को लेकर जागरुकता अभियान भी चलाया। ध्रुवीकरण रोकने की रणनीति के तहत ही पहले दो चरणों में संयमित बयानबाजी रखी गई।
बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर अपनापन दिखाने की कोशिश की। माना जा रहा था कि इससे मुस्लिम बंटेंगे और राजग को इसका लाभ हो सकता है। कांग्रेस और सपा के प्रत्याशी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में जनंसपर्क पर जोर देने के बजाय अन्य लोगों के पास ज्यादा गए।
इधर, मुस्लिमों ने भी बातचीत में हमेशा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की योजनाओं की सराहना की। जनहित में किए उनके काम भी गिनाए। अंत समय तक यह अहसास नहीं होने दिया, वह एकजुट होकर गठबंधन के समर्थन में जा रहे हैं।