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सामने दुर्गम पहाड़ियां, नीचे गंगा का अथाह बहाव... रोमांच से भरपूर है ऋषिकेश की ये ट्रेक; दूर-दूर से आते हैं पर्यटक

यहां एक खूबसूरत प्रकृतिक झरना भी है जो पर्यटकों को सम्मोहित कर देता है। ऋषिकेश से बदरी-केदार के लिए सड़क मार्ग का विकल्प उपलब्ध होने के बाद यह पैदल मार्ग पूरी तरह नेपथ्य में चला गया। सिर्फ स्थानीय ग्रामीण ही इसका उपयोग करते आ रहे थे। विगत वर्ष पौड़ी के जिलाधिकारी डा. आशीष चौहान के प्रयासों से इस मार्ग को शानदार ट्रेकिंग रूट के रूप में विकसित किया गया।

By Durga prasad nautiyal Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Fri, 15 Mar 2024 06:48 PM (IST)
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मनमोहक नजारे और रोमांच से भरपूर कोटली-भेल ट्रेक

दुर्गा नौटियाल, ऋषिकेश। तीर्थनगरी ऋषिकेश की पहचान सिर्फ योग की अंतरराष्ट्रीय राजधानी के रूप में ही नहीं है, यहां कई ऐसे पर्यटन स्थल और रोमांचक गतिविधियों के केंद्र भी हैं, जो देश-विदेश के पर्यटकों को बरबस अपनी ओर खींचते हैं। यहां कई ऐसे ट्रेकिंग रूट भी हैं, जिन्हें पर्यटक बेहद पसंद करते हैं।

इन्हीं में एक ट्रेकिंग रूट है, चारधाम यात्रा का प्राचीन पैदल मार्ग, जिसे कोटली-भेल ट्रेकिंग रूट के नाम से जाना जाता है। देखरेख के अभाव में यह ट्रेक भले ही वर्षों तक उपेक्षित रहा हो, लेकिन अब पौड़ी जिला प्रशासन के प्रयासों से इसे नई पहचान मिली है। इसे उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री घाटी में स्थित ऐतिहासिक गर्तांगली (लकड़ी का सीढ़ीदार रास्ता) की तर्ज पर विकसित किया गया है, इसलिए यह पर्यटकों को खूब भा रहा है।

बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा का यह प्राचीन पैदल मार्ग, पौड़ी जिले में कई पौराणिक चट्टियों से होते हुए ऋषिकेश से देवप्रयाग की ओर बढ़ता है। यह मार्ग महादेव चट्टी से आगे बेहद दुर्गम है और एक ऐसी पहाड़ी से होकर गुजरता है। इसके नीचे गंगा का अथाह बहाव है।

बताया जाता है कि कालांतर में इस मार्ग की चट्टानों को बेहद छोटे उपकरणों (कुदाल, खुरपी आदि) से काटकर तैयार किया गया। गढ़वाली भाषा में कुदाल को कुटली और इस तरह की चट्टान वाली पहाड़ी को भेल (भ्याल) कहा जाता है, सो इस मार्ग का नाम कोटली-भेल प्रचलित हुआ। हालांकि, ब्रिटिश काल में इस मार्ग को और चौड़ा एवं सुरक्षित बनाया गया। गंगा के किनारे-किनारे देवप्रयाग तक जुड़ने वाले इस मार्ग का यह हिस्सा बेहद रोमांचक और प्रकृति के मनमोहक नजारों से भरा है।

यहां एक खूबसूरत प्रकृतिक झरना भी है, जो पर्यटकों को सम्मोहित कर देता है। ऋषिकेश से बदरी-केदार के लिए सड़क मार्ग का विकल्प उपलब्ध होने के बाद यह पैदल मार्ग पूरी तरह नेपथ्य में चला गया। सिर्फ स्थानीय ग्रामीण ही इसका उपयोग करते आ रहे थे। विगत वर्ष पौड़ी के जिलाधिकारी डा. आशीष चौहान के प्रयासों से इस मार्ग को शानदार ट्रेकिंग रूट के रूप में विकसित किया गया। इमारती लकड़ियों की सुंदर नक्काशी के साथ इस मार्ग को सुरक्षित एवं भव्य बनाया गया है।

ट्रेकिंग के शौकीनों को भा रहा कोटली-भेल ट्रेक

कोटली-भेल ट्रेक पर्यटकों और ट्रेकिंग का शौक रखने वालों की पसंद बनाता जा रहा है। बीते कुछ माह में यहां बड़ी संख्या में देश-विदेश के पर्यटक ट्रेकिंग को पहुंचे हैं। कुछ दिन पूर्व ऋषिकेश के साइकिल क्लब के सदस्य भी इस ट्रेक पर घूमकर आए। ऋषिकेश में ट्रेकिंग के शौकीन विनोद कोठियाल, विजय रावत, राजेश नौटियाल, सुशील सेमवाल, अजय जुयाल, अमित चटर्जी आदि ने बताया कि कोटली-भेल ट्रेक एक खूबसूरत और रोमांचक ट्रेकिंग रूट है। पौड़ी जिला प्रशासन के प्रयासों से यह ट्रेक बेहतर ढंग से विकसित किया गया है। उन्होंने प्रशासन के साथ ही पर्यटकों और स्थानीय नागरिकों से भी इस ट्रेक का ध्यान रखने की अपील की है।

गंगा में राफ्टिंग और कैंपिंग के साथ ट्रैकिंग का मजा

ऋषिकेश में अधिकांश पर्यटक गंगा में रिवर राफ्टिंग और कैंपिंग के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में अगर आप निकटवर्ती ट्रेकिंग रूट की जानकारी रखते हैं तो राफ्टिंग व कैंपिंग के साथ कोटली-भेल ट्रेक आपके भ्रमण को यादगार बना देगा। इस ट्रेक के आसपास क्षेत्र में शिवपुरी, ब्रह्मपुरी, कौड़ियाला, व्यासी आदि स्थानों पर पर्यटकों के लिए बड़ी संख्या में कैंपिंग की व्यवस्था है। सबसे अधिक पर्यटक यहां कैंपिंग और राफ्टिंग के लिए ठहरते हैं। इसके अलावा इस ट्रेक पर भी महादेव चट्टी पुल के समीप कुछ कैंपिंग साइट हैं, जहां आप ठहर भी सकते हैं।

खरीक ताल भी दर्शनीय

महादेव चट्टी से दायीं ओर एक पैदल रास्ता खरीक गांव के लिए जाता है। इस गांव में वर्षाकाल के बाद करीब तीन किमी की परिधि में एक प्राकृतिक ताल आकार लेता है, जो अपने आप में एक अद्भुत नजारा पेश करता है। पर्यटन की दृष्टि से इस ताल को कभी पहचान नहीं मिल पाई, लेकिन जुलाई-अगस्त से नवंबर-दिसंबर तक बनने वाला यह ताल भी पर्यटकों को सम्मोहित करता है। इस ताल तक पहुंचने के लिए महादेव चट्टी से करीब चार किमी की चढ़ाई पैदल तय करनी पड़ती है।

कोटली-भेल के ठीक सामने है तोताघाटी

गंगा पार ऋषिकेश-बदरीनाथ हाईवे भी कोटली-भेल ट्रेक के ठीक सामने एक दुर्गम पहाड़ी से होकर गुजरता है। इस पहाड़ी पर हाईवे के निर्माण की कहानी बड़ी रोचक है। यहां जब सड़क काटने के लिए कोई ठेकेदार आगे नहीं आया तो टिहरी जिले के लंबगांव निवासी तोता सिंह ठेकेदार ने इस पहाड़ी को काटकर यहां मार्ग का निर्माण किया था। तब से इस जगह को तोताघाटी नाम से प्रसिद्धि मिली। तोताघाटी में भी वैसी ही चट्टाने हैं, जैसी गंगा के पार कोटली-भेल में।

खाने-ठहरने के पर्याप्त इंतजाम

यदि आप कोटली-भेल की ट्रेकिंग पर आना चाहते हैं तो वर्षाकाल को छोड़कर कभी भी आ सकते हैं। वर्षाकाल में पहाड़ी से पत्थर गिरने व रास्ता टूटने का खतरा बना रहता है। खाने-ठहरने की पूरे ट्रेक पर कोई दिक्कत नहीं है। यहां होटल व होम स्टे में आपका मनपसंद खाना उपलब्ध हो जाता है।

ऐसे पहुंचें

ट्रेकिंग का शौक रखने वालों के लिए कोटली-भेल पहुंचने के दो विकल्प हैं। आप ऋषिकेश के लक्ष्मणझूला से पौराणिक यात्रा मार्ग पर जाना चाहें तो गरुड़ चट्टी, फूल चट्टी, मोहन चट्टी, कुंड, नोठखाल, बंदर चट्टी, बंदर भ्येल, ढांगूगढ़, बलोगी व महादेव चट्टी होते हुए पैदल ही करीब 35 किमी की ट्रेकिंग कर कोटली-भेल पहुंच सकते हैं।

लेकिन, अगर आप छोटी ट्रेकिंग करने के इच्छुक हैं तो ऋषिकेश-बदरीनाथ मार्ग पर ऋषिकेश से 35 किमी दूर कौड़ियाला से कुछ आगे तक सड़क मार्ग से जाकर महादेव चट्टी पुल पर उतर सकते हैं।

यहां से करीब चार किमी की पैदल ट्रैकिंग करते हुए आप कोटली-भेल पहुंच जाएंगे। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, सर्पाकार बहती गंगा का कलकल निनाद और रोमांचक ट्रेक आपका मन माह लेगा।