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उत्तराखंड में प्रधानाचार्य की सीमित भर्ती का विरोध; शिक्षकाें के आंदोलन से हजारों छात्राें की पढ़ाई प्रभावित

Uttarakhand News In Hindi उत्तराखंड में प्रधानाचार्यों की सीमित भर्ती के विरोध में शिक्षकों का आंदोलन जारी है। इस आंदोलन की वजह से प्रदेश के सैकड़ों विद्यालयों में करीब तीन लाख छात्र-छात्राओं की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। सरकार और शिक्षकों के बीच इस लड़ाई में जीत किसी की भी हो लेकिन हार हजारों गरीब व अपवंचित नौनिहालों की तय है।

By Ashok Kumar Edited By: Abhishek Saxena Updated: Sun, 15 Sep 2024 08:16 AM (IST)
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Uttarakhand News: खबर में सांकेतिक तस्वीर का उपयोग किया गया है।

जागरण संवाददाता, देहरादून। प्रधानाचार्य की सीमित भर्ती के विरोध में राजकीय इंटर कॉलेजों के प्रवक्ता आंदोलनरत हैं और प्रदेश के सैकड़ों विद्यालयों में कुछ दिनों से करीब तीन लाख छात्र-छात्राएं का पठन पाठन का माहौल चौपट हो रहा है।

सरकार और शिक्षकों की इस लड़ाई में जीत किसी की भी, लेकिन हार हजारों गरीब व अपवंचित नौनिहालों की तय है। यदि सरकार भर्ती परीक्षा रद कर भी देती है फिर भी, शिक्षकों का वरिष्ठता विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है। आखिर 90 प्रतिशत प्रधानाचार्य विहीन इंटर कालेजों को प्रधानाचार्य कैसे मिलेंगे, इस रास्ते को नहीं तलाशा जा रहा है,जिसका सीधा प्रतिकूल प्रभाव हजारों ग्रामीण विद्यार्थियों पर पड़ता दिख रहा है।

सरकार के समक्ष रख रहे शिक्षक अपना पक्ष

शिक्षक अपनी पदोन्नति का पक्ष मजबूती से सरकार के समक्ष रख रहे हैं, लेकिन अभावग्रस्त उन गरीब ग्रामीण अभिभावकों की वेदना कौन सुनेगा जिनके बच्चे सरकारी राजकीय इंटर कालेजों के भरोसे हैं। गांवों में ट्यूशन सिस्टम का भी अभाव है। 50 प्रतिशत ग्रामीण परिवार ट्यूशन फीस देने में सक्षम नहीं हैं। शिक्षकों के आंदोलन के बाद इन सवालों के जवाब भी तलाशने होंगे। सीधी भर्ती को प्रवक्ता संवर्ग के कई शिक्षक प्रदेश सरकार की पहल को सकारात्मक भी मान रहे हैं।

सभी हेडमास्टर की पदोन्नति के बाद भी इंटर कालेज में रिक्त रहेंगे प्रधानाचार्य के पद

पूर्व की प्रधानाचार्य सेवा नियमावली के अनुसार केवल हेडमास्टर ही पांच वर्ष की सेवा के उपरांत प्रधानाचार्य पद पर पदोन्नति पाते थे। यहां यह महत्वपूर्ण है कि पहले प्रवक्ता या एलटी शिक्षक सीधे प्रधानाचार्य नहीं बन सकते थे। पहली बार दो वर्ष पहले संशोधित नियमावली में प्राविधान किया गया कि प्रधानाचार्य के कुल पदों में से 50 प्रतिशत पर हेडमास्टर पद से वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नत होकर प्रधानाचार्य बनेंगे जबकि आधे विभागीय सीमित परीक्षा के माध्यम से प्रवक्ता प्रधानाचार्य पद पर आएंगे।

विभाग का ढांचा कुछ ऐसा है कि यदि सभी हेडमास्टरों को एक साथ पदोन्नति दे दी जाए तब भी कई इंटर कालेजों में प्रधानाचार्य के पद रिक्त ही रहेंगे क्योंकि राज्य में हाईस्कूलों की संख्या 910 है और इंटर कालेज 1385 हैं। 

अब यहां सवाल यह है कि शिक्षकों का विरोध आखिर क्यों ?

शिक्षकों ने दो वर्ष पहले प्रधानाचार्य संशोधित नियमावली का विरोध नहीं किया, और न ही यह बताया कि आखिर प्रधानाचार्य नियमावली होनी कैसी चाहिए थी, इस प्रधानाचार्य नियमावली को बने लगभग दो वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। संगठन, सरकार और विभाग के मध्य इस बीच कई बैठकें हुईं और कुछ तो ऐसी भी थीं जिनमें इस नियमावली का जिक्र भी हुआ, बाकायदा विभाग के मिनट्स में नियमावली और प्रधानाचार्य के पदों पर विभागीय सीमित परीक्षा के आधार पर पदोन्नति को स्थान भी मिला। अब जब यह पद उत्तराखंड लोक सेवा आयोग को जा चुके हैं तो यह पद भी एक तरीके से विवादित हो चुके हैं और इन पदों पर वरिष्ठता के आधार पर पदोन्नति नहीं की जा सकेगी।

वरिष्ठता विवाद को सभी पक्ष नामुमकिन मान चुके हैं

न्यायालयों में वरिष्ठता संबंधी लंबित वादों और कतिपय मामलों में स्टे के कारण वरिष्ठता आधारित पदोन्नति अब लगभग सभी हितधारक जैसे शिक्षक, विभाग और सरकार नामुमकिन मान चुके हैं। ऐसे में विद्यालयों की स्थिति आखिर कब तक कामचलाऊ रहेगी। आज स्थिति यह हो चुकी है कि 1385 इंटर कालेजों में से 1101 प्रधानाचार्य विहीन हैं और बच्चे व्यवस्था की ओर टकटकी लगाए बैठे हैं। इस सीमित विभागीय परीक्षा को रोकने के लिए भले ही शिक्षक सीएल लेकर आंदोलित रहे लेकिन पिछले कुछे दिनों से विद्यालयों में पठन पाठन का माहौल चौपट ही रहा है।

अक्टूबर में अर्द्धवार्षिक और फरवरी में बोर्ड परीक्षा

विद्यालयी शिक्षा का वार्षक कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर महीने में अर्द्धवार्षिक परीक्षा होगी और फरवरी में उत्तराखंड बोर्ड परीक्षा होगी। शिक्षा मंत्री 20 अप्रैल तक उत्तराखंड बोर्ड परीक्षा परिणाम घोषित करने की घोषणा कर चुकी हैं। ऐसे में आंदोलन लंबा खिंचता है तो परीक्षाओं की तैयारियों के लिए छात्रों को बहुत कम समय मिलेगा।

आंदोलन का नेतृत्व करने का जिम्मा जिला कार्यकारिणी को सौंपा

राजकीय शिक्षक संघ ने जिस पत्र से शिक्षकों के आंदोलन का आह्वान किया उस पर केवल प्रांतीय महामंत्री के हस्ताक्षर थे प्रांतीय अध्यक्ष के नहीं। हालांकि प्रांतीय महामंत्री को नियमानुसार यह अधिकार है कि केवल उनके हस्ताक्षर से पत्र निर्गत हो सकते हैं लेकिन इतने बड़े निर्णय वाले पत्र पर अध्यक्ष के हस्ताक्षर होने से पत्र की स्वीकार्यता संभवतया अधिक होती।

दूसरा अपने संबोधन में प्रांतीय अध्यक्ष राम सिंह चौहान कहते हैं कि यह आंदोलन प्रांत का नहीं बल्कि जनपदों का है तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण आमरण अनशन पर प्रांतीय कार्यकारिणी के अध्यक्ष और महामंत्री का न बैठना भी इस आंदोलन में संशय उत्पन्न करता है।