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Jageshwar Dham : उत्तराखंड का पांचवां धाम है जागेश्‍वरधाम, महाशिवरात्र‍ि पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

Jageshwar Dham देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। ऋषि-मुनियों की तपोभूमि पर कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं जिनमें हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्‍था है। अल्‍मोड़ा जिले में ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जागेश्वर धाम।

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Tue, 09 Mar 2021 09:07 PM (IST)
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उत्तराखंड का पांचवां धाम है जागेश्‍वरधाम, महाशिरात्र‍ि पर उमड़ती है श्रद्धालुओं की भीड़

अल्‍मोड़ा, जागरण संवाददाता : Jageshwar Dham : देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका वर्णन पुराणों में भी मिलता है। ऋषि-मुनियों की तपोभूमि पर कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं जिनमें हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्‍था है। अल्‍मोड़ा जिले में ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जागेश्वर धाम। जहां यूं तो सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है लेकिन सावन और महाशिवरात्रि पर यहां जन सैलाब उमड़ता है। जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। 

यहीं से शुरू हुई लिंग पूजा  

कहा जाता है कि यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी कहा जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग माना जाता है। इसे योगेश्वर नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह माना जाता है। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में भी मिलता है।

जागेश्वर में मंदिरों की है श्रृंखला  

पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की थी । कहा जाता है कि प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं। ऐसे में मन्‍नतों का दुरुपयोग होने लगा। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। मान्‍यता है कि उन्होंने ही इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है।

धाम के सारे मंदिर केदार शैली में  

जागेश्वर धाम में सारे मंदिर केदारनाथ शैली से बने हुए हैं। अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर को भगवान शिव की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाले इस मंदिर के किनारे जटा गंगा नदी की धारा बहती है। मान्यता है कि यहां सप्तऋषियों ने तपस्या की थी और यहीं से लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा शुरू हुई थी। खास बात यह है कि यहां भगवान शिव की पूजा बाल या तरुण रूप में भी की जाती है। जागेश्वर धाम में भगवान शिव को समर्पित 124 छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण बड़ी-बड़ी पत्‍थरों से किया गया है। कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग पर स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि गुरु आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ के लिए प्रस्थान करने से पहले जागेश्वर के दर्शन किए और यहां कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुन: स्थापना भी की थी।   

7वीं से 12 शताब्दी के मध्य के बताए जाते हैं मंदिर 

जागेश्वर के मंदिरों का कोई लिखित इतिहास नहीं है। यहां मौजूद कई मंदिरों की वास्तुकला और शैली को देख इन्हें 7वीं से 12 शताब्दी के मध्य का बताया जाता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की मानें तो यहां कुछ मंदिर गुप्त काल के बाद और कुछ मंदिर दूसरी शताब्दी के बताए जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये मंदिर कत्यूरी या चांद राजवंश के दौरान के हो सकते हैं, लेकिन इसका कोई साक्ष्य नहीं। इस स्थल को लेकर यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इनमें से कुछ मंदिरों का निर्माण किया था, लेकिन इस सिर्फ य दावा है। 

कैसे पहुंचा जाए जागेश्‍वर धाम 

उत्‍तराखंड की सांस्‍कतिक राजधानी अल्‍मोड़ा जिले में स्थिति जागेश्‍वर कोठगोदाम और देहरादून से पहुंचा जा सकता है। काठगोदाम जहां रेल मार्ग से पहुंचा जा सकता है वहीं, दून हवाई सेवा से भी पहुंचा जा सकता है। यहां का निकटवर्ती हवाई अड्डा कुमाऊं में पंतनगर और गढ़वाल में देहरादून स्थित जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है। काठगोदाम से सीधे बस और टैक्‍सी की सुविधा अल्‍मोड़ा के लिए है। सड़क मार्गों से जागेश्वर राज्य के बड़े शहर जुड़े हैं।

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