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पौराणिक द्वारका की जालली घाटी में अब महापाषाणकालीन ओखली मिली NAINITAL NEWS

करीब चार वर्ष पूर्व पुरातात्विक महत्व वाले जोयूं गांव के खेतों की जोताई व खोदाई के दौरान मिली समाधियों व नरकंकालों के अवशेषों के बाद शनिवार को इसी क्षेत्र में एक और महापाषाण कालीन

By Skand ShuklaEdited By: Updated: Sun, 13 Oct 2019 10:04 AM (IST)
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पौराणिक द्वारका की जालली घाटी में अब महापाषाणकालीन ओखली मिली NAINITAL NEWS

द्वाराहाट (अल्मोड़ा) जेएनएन : पौराणिक द्वारका की ऐतिहासिक जालली घाटी एक बार फिर सुर्खियों में आ गई है। करीब चार वर्ष पूर्व पुरातात्विक महत्व वाले जोयूं गांव के खेतों की जोताई व खोदाई के दौरान मिली समाधियों व नरकंकालों के अवशेषों के बाद शनिवार को इसी क्षेत्र में एक और महापाषाण कालीन कपमार्क्स (ओखली) खोज निकाली है। जोयूं में पहले ही मौजूद 11 व 22 ओखलियों वाले महापाषाणकालीन प्रस्तरखंडों के बाद इस मेगलिथिक ओखली के मिलने से साफ हो गया है कि यहां धान की खेती हजारों वर्ष पहले से होती आई है। पुरातत्व के जानकारों ने इसे पाली पछाऊं क्षेत्र के बहाने उत्तराखंड के सांस्कृतिक इतिहास को उजागर करने वाला महत्वपूर्ण अवशेष माना है।

दरअसल, दिल्ली विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर रहे प्राचीन संस्कृति के शोधकर्ता डॉ. मोहन चंद्र तिवारी इन दिनों अपने पैतृक क्षेत्र जालली में पुरातात्विक सर्वेक्षण के लिए पहुंचे हैं। शनिवार को उन्हें जालली मासी मोटरमार्ग पर मुनियाचौरा की झाडिय़ों के बीच एक स्लेटी रंग का ठोस आयताकार पाषाणखंड मिला। इस पर कलात्मकता के साथ डेढ़ फिट लंबी, सवा फिट चौड़ी व एक फिट गहरी मेगलिथिक श्रेणी की ओखली मिली।

तीन-चार सहस्त्राब्दी ईस्वी पूर्व का अनुमान

पुरातात्विक लिहाज से उर्वर जालली घाटी के मुनियाचौरा में मिली ओखली की प्राचीनता का अनुमान तीन से चार शताब्‍दी ईस्वी पूर्व तक किया जा सकता है। डॉ. तिवारी ने बताया कि स्थानीय बुजुर्ग इसे पांडवकालीन ओखली मान रहे हैं। मगर इतिहासकार उत्तराखंड के कपमार्क्स (ओखलियों) को आद्य इतिहास काल और वैदिक काल के मेगलिथिक कल्चर का खुलासा करते हैं।

आर्यकालीन हैं समाधियां व नरकंकाल

जोयूं के खेतों में चार वर्ष पूर्व जोताई के दौरान समाधियों व मानव कंकालों के अवशेष मिले थे। इसी वजह से जालली घाटी के प्रति शोधकर्ताओं की रुचि बढ़ी। इन समाधियों व कंकालों को विशेषज्ञों ने तब आर्यकालीन माना था। जोयूं गांव में 11 तथा 22 ओखलियों वाले पाषाणखंड पूर्व से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर के पुरातत्वविदों के लिए अभी भी शोध का विषय बने हुए हैं। शनिवार को इसी क्षेत्र में मिली ओखली के बाद अतीत के एक और रहस्य से पर्दा उठ चुका है।

प्रागैतिहासिक काल के मिलते रहे हैं अवशेष

डॉ. मोहन चंद्र तिवारी, पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर दिल्ली विवि एवं शोधकर्ता ने बताया कि जालली घाटी में प्रागैतिहासिक काल के अवशेष मिलते रहे हैं। जोयूं के खेतों से खोजी गई 11 व 22 ओखलियों वाले पाषाणखंड पहले से ही अंतरराट्रीय स्तर के शोधकर्ताओं के लिए रहस्य बने हैं। मुनियाचौरा में मिली ओखली महापाषाणकाल की है। ओखलियां बताती हैं कि इस घाटी में धान की खेती ईसा से तीन चार हजार वर्ष पूर्व से होती आ रही है।