1984 के Avalanche में बाल-बाल बची थीं देश की पहली एवरेस्ट विजेता पद्मभूषण बछेंद्रीपाल, पहली बार बयां की आपबीती
Avalanche In Uttarkashi देश की प्रथम एवरेस्ट विजेता पद्मभूषण बछेंद्रीपाल के साथ भी एवरेस्ट आरोहण के दौरान हिमस्खलन की घटना हुई थी जिसमें वह बाल-बाल बची थीं। उन्होंने पहली बार अपने साथ घटी एवलांच की घटना को साथ साझा किया।
शैलेंद्र गोदियाल, उत्तरकाशी : Avalanche in Uttarkashi : उच्च हिमालयी क्षेत्र में हिमस्खलन और ग्लेशियर में क्रेवास की घटनाओं के चलते हर समय जान दाव पर होती है। इसलिए पर्वतारोहियों को चोटियों का आरोहण करते समय बेहद सतर्क और सावधान रहना होता है।
देश की प्रथम एवरेस्ट विजेता पद्मभूषण बछेंद्रीपाल के साथ भी एवरेस्ट आरोहण के दौरान हिमस्खलन की घटना हुई थी, जिसमें वह बाल-बाल बची थीं। फिर उन्होंने इसी घटना को अपनी ताकत बनाया और एवरेस्ट आरोहण किया। बछेंद्रीपाल ने अपने साथ घटी एवलांच की घटना को पहली बार 'दैनिक जागरण' के साथ साझा किया।
बछेंद्रीपाल ने बताया कि 15 मई 1984 को एवरेस्ट आरोहण के दौरान 24 हजार फीट की ऊंचाई पर ग्लेशियर में उनका कैंप लगा था, जिसमें पांच टेंट लगाए गए थे। रात करीब 12 बजे, जब वह गहरी नींद में थे, अचानक हिमस्खलन हुआ। एक जोर का धमाका हुआ और उन्हें लगा कि आक्सीजन सिलिंडर फट गया है। लेकिन, वह धमाका ग्लेशियर में क्रेवास आने का था।
किसी तरह बछेंद्रीपाल को क्रेवास के अंदर फंसे टेंट से बाहर खींचा
हिमस्खलन होने लगा और हिमखंडों से उनका कैंप दब गया। उन्हें सिर के पीछे वाले हिस्से में चोट महसूस हुई। वह हिल भी नहीं पा रही थी और भारी हिमखंडों के बीच दबी थी।
जबकि, अन्य दो टेंटों में ठहरे पर्वतारोही घायल थे और चिल्ला रहे थे। बछेंद्रीपाल बताती हैं कि उनके टेंट में एक पर्वतारोही और था, जो हिल-डुल रहा था। फिर बाहर से किसी ने चाकू से टेंट काटा और उन्हें किसी तरह क्रेवास के अंदर फंसे टेंट से बाहर खींचा।
बाहर देखा तो पूरा कैंप ध्वस्त था और अधिकांश पर्वतारोही चोटिल थे। केवल किचन का टेंट सुरक्षित दिखा, तो वह सबसे पहले उसी टेंट में गई, पानी गर्म किया, दर्द की दवा ली और फिर चाय बनाई।
उन्हें याद है कि उस रात मौसम पूरी तरह साफ था, वह चांदनी रात थी। उन्होंने उस दौरान मौत को बेहद करीब से देखा। सुबह पांच बजे कैंप-टू से रेस्क्यू करने के लिए टीम पहुंच गई। फिर वह 22 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित कैंप-टू लौटे।
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बछेंद्रीपाल कहती हैं, ‘इस हिमस्खलन से भयभीत होने के बजाय मैंने सोचा कि मेरी जान इसलिए बची, क्योंकि मुझे एवरेस्ट का आरोहण करना है।
16 मई को घायलों को कैंप-टू से बेस कैंप पहुंचाया गया, आगे के आरोहण अभियान के निर्णय को लेकर टीम संचालकों ने सभी से बारी-बारी पूछा तो मैंने सिर के पीछे लगी हल्की चोट के बारे में कुछ नहीं बताया और अभियान पर जाने के लिए हां कह दिया।
इसके बाद बेस कैंप से नई सपोर्टिंग टीम आई, दो दिन बाद फिर हमने उसी स्थान के पास अपना कैंप लगाया, जहां 15 मई की रात हिमस्खलन हुआ था। इसी हौसले से 23 मई 1984 को मैंने एवरेस्ट का आरोहण किया।’
हमने होनहार पर्वतारोही खो दिए : बछेंद्रीपाल
वरिष्ठ पर्वतारोही बछेंद्रीपाल कहती हैं कि द्रौपदी का डांडा में हिमस्खलन की घटना बेहद ही आहत करने वाली है। इस घटना में हमने उत्तरकाशी के दो होनहार पर्वतारोही खो दिए। सविता कंसवाल और नवमी रावत में बेहद उत्साह था। एक माह पहले ही उनकी एवरेस्टर सविता कंसवाल से बात हुई थी। टाटा एडवेंचर फाउंडेशन सविता को गेस्ट प्रशिक्षक के रूप में रखने की कार्यवाही कर रहा था।
सविता की पर्वतारोहण में एक अच्छे करियर बनाने को लेकर बहुत अधिक उम्मीदें थीं और उसने कई सपने भी देखे थे। इस घटना पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा। मन कह रहा है कि काश! यह केवल सपना होता और सभी सुरक्षित होते। यह घटना कैसे हुई, पता नहीं।