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टाइप-1 डायबिटीज से हैं पीड़ित तो घर में कुत्ता पाल लें, मुसीबत के वक्त काम आएगा ये सच्चा दोस्त

ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के बाद दावा किया है कि प्रशिक्षित कुत्ते टाइप-1 डायबिटीज के रोगियों को रक्त में शर्करा (ब्लड शुगर) की कमी होने पर सतर्क करेंगे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Mon, 21 Jan 2019 11:58 AM (IST)
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टाइप-1 डायबिटीज से हैं पीड़ित तो घर में कुत्ता पाल लें, मुसीबत के वक्त काम आएगा ये सच्चा दोस्त

लंदन, प्रेट्र। कुत्तों को इंसान का सबसे वफादार साथी माना जाता है। वह बड़ी से बड़ी विपत्ति में मालिक के साथ चट्टान की तरह खड़ा रहता है। कुत्ता अब अपने मालिक के स्वास्थ्य की निगरानी भी करेगा। जी हां, पालतू कुत्ते डायबिटीज (मधुमेय) के रोगियों को न सिर्फ बीमारी के प्रति सचेत करेंगे बल्कि उससे निजात दिलाने में भी मदद करेंगे। इतना ही नहीं, प्रशिक्षित कुत्ते मरीजों को मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत भी करते हैं।

ब्रिटेन की ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन के बाद दावा किया है कि प्रशिक्षित कुत्ते टाइप-1 डायबिटीज के रोगियों को रक्त में शर्करा (ब्लड शुगर) की कमी होने पर सतर्क करेंगे। विज्ञान पत्रिका पीएलओएस-1 में प्रकाशित अध्ययन रिपोर्ट में दावा किया गया है कि औसत प्रशिक्षित कुत्तों ने अपने मालिकों को 4000 से ज्यादा बार बीमारी के प्रति सचेत किया। इनमें से 83 फीसद लोग ऐसे थे जो हाइपोग्लाइकेमिक (टाइप-1) की चपेट में थे।

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता निकोला रूनी ने बताया कि कुत्तों के होने से डायबिटीज के रोगियों में जीवन की गुणवत्ता बढ़ जाती है। रूनी ने बताया कि हमने 27 प्रशिक्षित कुत्तों की विश्वसनीयता का आकलन करने के लिए 6 से 12 हफ्तों तक उनके मालिकों के रक्त में शुगर की मात्रा में बदलाव करने के बाद गंध सुंघाई। हर बार कुत्तों ने हाइपोग्लाइकेमिक की स्थिति में सचेत किया।

‘मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स’ नामक संस्था इन कुत्तों को प्रशिक्षित करती है। पालतू कुत्तों को मालिक की गंध से उसकी बीमारी का पता लगाने के लिए तैयार किया जाता है, ताकि वह मालिक को जानलेवा बीमारियों से दूर रख सकें। शोध में पता चला कि प्रशिक्षित कुत्तों की क्षमता दूसरे कुत्तों के संपर्क में आने पर और मालिक के बदलने पर प्रभावित होती है।

हर डॉग में नहीं होती यह क्षमता
ध्यान रहे हर कुत्ते में ब्लड शुगर की मात्रा को जांचने की क्षमता नहीं होती है। इसके लिए कुत्ते को ‘मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स’ या फिर उस जैसी ही किसी संस्था से प्रशिक्षित होना जरूरी होता है। मेडिकल डिटेक्शन डॉग्स नामक एजेंसी के सह संस्थापक (को फाउंडर) और चीफ इग्जीक्यूटिव क्लेयर गेस्ट ने बताया कि टाइप-1 डायबिटीज के मरीजों के लिए यह खोज बहुत ही प्रभावशाली है।

क्या है हाइपोग्लाइकेमिक डायबिटीज
हाइपोग्लाइकेमिक डायबिटीज में रक्त में शर्करा की मात्रा खतरनाक रूप से घट जाती है। अगर समय से उपचार न किया जाए तो व्यक्ति बेहोश हो सकता है। यहां तक कि उसकी मौत भी हो सकती है।

टाइप 1 डायबिटीज
टाइप 1 डायबिटीज के दौरान शरीर में इंसुलिन का निर्माण बंद हो जाता है या उत्पादन बहुत कम हो जाता है। ऐसे में मरीज को बाहर से इंसुलिन देनी पड़ती है। टाइप 1 डायबिटीज को नियंत्रित किया जा सकता है, परंतु पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता। यह बचपन में किसी भी समय हो सकता है। यहां तक कि शैशव अवस्था में भी हो सकता है। देश में 1 से 2 प्रतिशत लोगों में ही टाइप 1 डायबिटीज पाया जाता है। इस प्रकार की डायबिटीज से ग्रस्त लोगों के लिए इंसुलिन लेना अनिवार्य है, अन्यथा उनकी जान पर भी बन आ सकती है।

टाइप 1 को नियंत्रित करने के तरीके

  • टाइप 1 डायबिटीज में पैनक्रियाज की बीटा कोशिकाएं इंसुलिन बनाने में असमर्थ होती हैं। इसलिए टाइप-1 डायबिटीज में कोई दवाएं काम नहीं करती बल्कि इंसुलिन ही प्रभावी होती है।
  • इंसुलिन लेने से पहले शुगर की नियमित रूप से जांच अनिवार्य है।
  • संतुलित आहार और प्रतिदिन व्यायाम करना चाहिए।
  • आहार में वसा की मात्रा कम रखनी चाहिए और मीठे खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए।