छठ में परैया के देसी कोल्हुआर में बने गुड़ की रहती है जबरदस्त डिमांड, यूपी, बंगाल और ओडिसा तक पहुंचती यह गुड़
बिहार के गया जिला के परैया में बने गुड़ बंगाल उड़ीसा और उत्तप्रदेश के लोग भी बड़े चाव से खरीदते थे। छठ में परैया के रवादार और सोंधी खुशबू वाली गुड़ की मांग बहुत अधिक होती है। मगर अब गुड़ की मांग को किसान पूरा नहीं कर पा रहे।
परैया (गया), विजय सिंह। गन्ना और खजूर की रस से बनने वाले गुड़ के लिए पूरे क्षेत्र में प्रसिद्ध परैया का इलाका आज अपनी पहचान खोता जा रहा है। इलाके से गुड़ की सोंधी खुशबू की महक धीरे- धीरे गायब होते जा रही है। यहां का बना गुड़ पहले बिहार के साथ बंगाल, उड़ीसा और उत्तप्रदेश राज्यों के कई इलाकों तक पहुंचता था यहां के तैयार गुड़ को लोग चाव से खरीदते थे। मोरहर नदी की दो शाखाओं के बीच बसे परैया प्रखंड कि भौगौलिक स्थिति गन्ने की खेती के लिए काफी उपयुक्त है। यहां की दोमट मिट्टी इसके उत्पादन के लिए काफी बेहतरीन मानी जाती है। दशकों पहले परैया में दर्जन भर से अधिक गांव के किसान एक हजार एकड़ से अधिक में गन्ने की खेती करते थे। जिसको नगदी फसल के रूप में सीधे मांग बाजार में रहती है।
1990 के दशक के पहले गुरारू चीनी मिल चालू थी, बंद होने से कारोबार प्रभावित
लोक आस्था से जुड़े महापर्व छठ में परैया के गुड़ की मांग बहुत अधिक होती है। टिकारी अनुमंडल सहित पूरे जिला में परैया के गुड़ की मांग को अब किसान पूरा नहीं कर पा रहे। परैया के रवादार गुड़ की विशिष्टता उसकी सोंधी खुशबू है। 1990 के दशक के पहले गुरारू चीनी मिल चालू थी। जिसमें परैया इलाके से ही गन्ने की आपूर्ति सर्वाधिक की जाती थी। प्रखंड के मंझियावा, उभई, खुशडीहरा, महादेवपुर, लक्ष्मण बिगहा, जमालपुर, परैया खूर्द सहित कई गांवों में गन्ने की फसल सालो भर लहलहाती रहती थी। आज इसकी खेती पचास से साठ एकड़ से भी कम में सिमट कर रह गई है। इसके साथ ही यहां गन्ना आधारित खंडसारी उद्योग पर भी संकट के बादल छाए हुए हैं। गुरारू चीनी मिल बंद होने के बाद गन्ना उत्पादक किसानों की स्थिति खराब होती चली गई। कुछ किसानों ने गन्ने से गुड़ बनाना शुरू किया। लेकिन स्थानीय स्तर पर गुड़ में प्रोत्साहन नहीं मिलने से किसान इसकी खेती से मुंह मोडऩे लगे। सरकार की तरफ से भी इन किसानों को किसी तरह का अनुदान नहीं मिला।