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मक्के के छिलके ने दी प्लास्टिक को चुनौती, ओजैर ने किया मुमकिन; अब इसपर रिसर्च करेगा आइआइटी पटना

Muzaffarpur News नाज़ ओजैर ने मक्के के छिलके से प्लास्टिक को चुनौती दी है। ओजैर का यह आइडिया इतना शानदार है कि अब इसपर आइआइटी पटना भी रिसर्च करेगा। रिसर्च वर्क के लिए ओजैर को हर माह तीस हजार रुपये भत्ता भी दिया जाएंगा। ओजैर दो दर्जन स्कूलों में यह तकनीक सिखा चुके हैं। उनके अनुसार प्लास्टिक के बढ़ते प्रभाव को प्राकृतिक चीजों से ही चुनौती दी जा सकती है।

By Pramod kumarEdited By: Aysha SheikhUpdated: Sat, 30 Sep 2023 12:35 PM (IST)
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मक्के के छिलके ने दी प्लास्टिक को चुनौती
जागरण संवाददाता, मुजफ्फरपुर : मक्के के छिलके से सिंगल यूज प्लास्टिक का विकल्प देने वाले जिले के मनियारी, मुरादपुर निवासी नाज़ ओजैर के प्रोजेक्ट पर आइआइटी पटना रिसर्च करेगा। इसके बाद उसे बढ़ावा देगा।

रिसर्च एवं डेवलपमेंट के लिए उनके प्रोजेक्ट का चयन आइआइटी पटना द्वारा किया गया है। रिसर्च वर्क के लिए ओजैर को हर माह तीस हजार रुपये भत्ता भी दिया जाएंगा। वह अपने प्रोजेक्ट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने के लिए प्रयासरत थे। अब उनका सपना साकार हो सकेगा।

नाज ओजैर मक्के के छिलके से प्लास्टिक को दे रहे चुनौती

मो. नाज ओजैर एक दशक से मक्के के छिलके से कप, प्लेट, पत्तल, कटोरी व झोला सफलतापूर्वक बना रहे हैं। अब तक दो दर्जन स्कूलों में जाकर एक हजार से अधिक बच्चों को यह तकनीक सिखा चुके हैं।

मक्का वैज्ञानिक मानते हैं कि मक्के का छिलका प्लास्टिक का बेहतर विकल्प साबित हो सकता। यह सस्ता और उपयोगी भी है। 32 वर्षीय ओजैर इंटर के बाद आगे की पढ़ाई करने हैदराबाद चले गए।

जवाहर लाल नेहरू टेक्नोलाजिकल यूनिवर्सिटी से वर्ष 2014 में बीटेक व 2016 में एमटेक किया। वहीं लेक्चर के रूप में छह महीने काम किया। कई कंपनियों से आफर मिले, लेकिन कुछ करने की सोच के साथ गांव वापस आ गए।

प्लास्टिक का विकल्प प्रकृति में खोजने लगे। इसी दौरान देखा कि दाना निकालने के बाद छिलके को लोग यूं ही फेंक देते। इसी पर उन्होंने प्रयोग शुरू किया, जिसमें सफलता मिली।

प्लेट बनाने में पांच से छह पत्ते लगते हैं। पहले घर पर बनाई लेई से इसे चिपकाते थे, फिर प्लेट बनाने वाली डाई मशीन पर रखकर उसे आकार देने के साथ काट देते हैं।

इसी तरह प्लेट और कटोरी भी बनाते हैं। एक पत्तल बनाने में तकरीबन 50 पैसे खर्च आता है। वॉटरप्रूफ होने के चलते इसका प्लेट सब्जी के लिए उपयोगी है। छिलके से तिरंगा, थैला आदि भी तैयार करते है।

उनके द्वारा मकई के छिलके से बनाए गए कप का उपयोग चाय पीने के लिए किया जा सकता है। उनकी मानें तो प्लास्टिक के बढ़ते प्रभाव को प्राकृतिक चीजों से ही चुनौती दी जा सकती है। हालांकि, आर्थिक संकट के कारण वे इस प्रोजेक्ट को विस्तार नहीं दे पा रहे।

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