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Chhattisgarh: जल, जंगल और प्राणियों को बचाने के लिए टाइगर रिजर्व के अधिकारी की अनोखी पहल, गांव-गांव में करते हैं वॉल पेंटिंग

Chhattisgarh जल जंगल और वन्य प्राणियों को शिकार से बचाने के लिए उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व (यूएसटीआर) के उप निदेशक वरुण जैन ने अनोखी पहल की है। इस विषय में ग्रामीणों और लोगों को जागरूक बनाने के लिए उन्होंने गांव-गांव में वॉल पेंटिंग का अभियान शुरू किया है। इसके तहत वह 20 से अधिक गांवों में ऐसी पेंटिंग बना चुके हैं।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Thu, 12 Sep 2024 05:33 PM (IST)
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पैंगोलिन की पेटिंग (बाएं), वरुण जैन, उप निदेशक, यूएसटीआर (दाएं)

वाकेश साहू, रायपुर। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व (यूएसटीआर) के उप निदेशक वरुण जैन ने जल, जंगल और वन्य प्राणियों को शिकार से बचाने के लिए अनोखी पहल की है। उन्होंने लोगों को जागरूक करने के लिए अब तक 20 से अधिक गांवों में वॉल पेंटिंग की है।

यूएसटीआर क्षेत्र के गांवों में रहने वॉली जातियों और जनजातियों के बीच, पेड़-पौधे और जंगली-जानवर जैसे बाघ, तेंदुआ, सांप, मोर आदि को भगवान के रूप में पूजा जाता है। यहीं से उन्हें वॉल पेंटिंग का विचार आया। इसके बाद पिछले वर्ष जुलाई से खपरी (पैंगोलिन), कछुआ आदि वन्यजीवों की वॉल पेंटिंग शुरू की गई।

(दीवार पर पैंगोलिन की पेटिंग। सौजन्य : ग्रामीण)

सर्वेक्षण से जुटाई जानकारी

उप निदेशक वरुण जैन ने बताया कि ‘वृक्ष-जीव देव स्वरूप’ नामक सर्वेक्षण से पता चला कि कौन से समुदाय किस पौधों और जंगली जानवरों की पूजा करते हैं। स्थानीय जातियों व जनजातियों द्वारा बरगद, कदंब, साजा, पीपल, आंवला, कुंभी, कसई, बेल, महुआ, वन तुलसी, पलाश, कुरवा जैसी वृक्ष प्रजातियों की भी पूजा की जाती है।

उन्होंने बताया कि भुजिया जाति की नागेश नाग उपजाति में सांप को देवता माना जाता है। नेताम कछुए की पूजा करते हैं। लोहार घने संसार के पक्षी नीलकंठ की पूजा करते हैं। गाढ़ा, मोर पक्षी की पूजा करता है। कमार-पहाड़िया भालू की पूजा करते हैं। गोंड और ओटी गोही को भगवान के रूप में पूजते हैं। मेहर-कश्यप जंगली सूअर और वनभैंसे की पूजा करते हैं।

(टाइगर रिजर्व क्षेत्र में गांवों की दीवार पर वन भैंसों की पेंटिंग। सौजन्य : ग्रामीण)

सर्वे कार्य जांगड़ा, कुर्रूभाटा, पायलीखंड, बम्हनीझोला, उदंती, कोयबा, जुगाड़, अमाड, बड़गांव, बंजारीबाहरा, नागेश, करलाझर, देवझरमली, मोतीपानी और साहेबिन कछार आदि गांव में किया गया है। इस वन क्षेत्र को 1974 में अभयारण्य और 2009 में टाइगर रिजर्व अधिसूचित किया गया। इसके अंदर 100 से अधिक गांव है।

एक वर्ष में 92 आरोपित पकड़े गए

वन्यजीव अपराधों के विरुद्ध लड़ाई में चारवाहे (मुखबिर) की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे अवैध शिकार के लिए लगाए गए फंदे, शिकारियों के तीर, गुलेल मारने वॉले स्थान, अवैध कटाई और तालाबों में डाले गए डहर की जानकारी तत्काल वन विभाग को देते है। चरवाहों को इनाम भी दिया जाता है। इसलिए जून 2023 से जून 2024 तक 27 प्रकरण में 92 लोगों को पकड़ा है। वहीं सितंबर 2023 से दिसंबर 2023 तक अवैध लकड़ी तस्करी में 141 लोगों पर कार्रवाई की गई। एआई एप से भी वन्यप्राणियों व जंगल पर निगरानी हो रही है। कोयबा के ग्रामीण रूपेंद्र सोम ने बताया कि वन्यजीव अपराधों में 10 प्रतिशत कमी आई है।

(वन्यजीव अपराध की सूचना देने वॉली वॉल पेंटिंग। सौजन्य : ग्रामीण)

पहले थी यहां शिकार की व्यवस्था

टाइगर रिजर्व क्षेत्र में बाघ, तेंदुए के साथ जंगली भैंसा, गौर, हिरण, सांभर, कोटरी आदि बड़ी संख्या में थे। ब्रिटिश काल और 1970 के दशक से पहले यह क्षेत्र एक गेम रिजर्व था, जहां शुल्क के साथ शिकार की अनुमति थी। बाघ के शिकार के लिए 25 रुपये, जंगली भैंसा के लिए 200 रुपये, तेंदुए के लिए 10 रुपये शुल्क लिया जाता था।

क्षेत्र में होती थी तस्करी

टाइगर रिजर्व 1842.54 वर्ग किमी वन क्षेत्र में फैला है। इसकी सीमा ओडिशा से 125 किलोमीटर लगी हुई है, जो कि तस्करी गलियारा के रूप में जाना जाता है। यहां अवैध शिकार और कटाई के मामले में आते रहते हैं। इसको देखते हुए वॉल पेंटिंग बनाकर ग्रामीणों को जागरूक कर रहे हैं। वन्यप्राणी अवशेष अवयव से संबंधित प्रचलित अंधविश्वास जैसे बाघ, तेंदुआ खाल से धन-वर्षा, साल खपरी से बीमारी का इलाज आदि पर जागरूकता फैलाने संबंधित चर्चा की जाती है।

-वरुण जैन, उप निदेशक, उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व

(वरुण जैन, उप निदेशक, यूएसटीआर)

वन का घनत्व बढ़ाने और अवैध शिकार को रोकने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। इससे लोगों की सोच में परिवर्तन देखने को मिल रहा है। अब लोग वनों को कटाने से परहेज कर रहे हैं। इतना ही नहीं, जहां वनों की संख्या कम वहां पौधरोपण भी किया जा रहा है। अवैध शिकार से भी लोग दूरी बना रहे है। यह सब वन विभाग की टीम की जागरूकता है।

-अर्जुन नायक, नागेश गांव

गांव-गांव में वॉल पेंटिंग का कार्य किया जा रहा है। इससे जागरूक ग्रामीण अब शिकार जैसे कार्य से दूर हो रहे है। इसके परिणाम स्वरूप अवैध शिकार में कमी देखने को मिल रही है। वन विभाग की टीम नुक्कड़ नाटक, श्लोगन आदि से जागरूक से किया जा रहा है। क्षेत्र में मिट्टी के संरक्षण के लिए जंगलों में बोल्डर चेकडैम भी बनाया जा रहा है।

-रूपेंद्र सोम, यूएसटीआर