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दिल्ली में कांग्रेस को ये 'चीज' ले डूबी, AAP से गठबंधन के बावजूद नहीं चखा जीत का स्वाद

दिल्ली में कांग्रेस को एक बार लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है तो इसके लिए एक नहीं बल्कि कई कारण उत्तरदायी हैं। सबसे बड़ा कारण तो शीर्ष पार्टी नेतृत्व की मन- मानी है। प्रदेश इकाई की सोच और तर्कों को दरकिनार कर बार- बार उस पर अपने निर्णय थोपना पार्टी को खुद ही भारी पड़ गया।

By sanjeev Gupta Edited By: Geetarjun Updated: Wed, 05 Jun 2024 12:28 AM (IST)
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दिल्ली में कांग्रेस को ये 'चीज' ले डूबी, AAP से गठबंधन के बावजूद नहीं चखा जीत का स्वाद

संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली में कांग्रेस को एक बार लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है तो इसके लिए एक नहीं बल्कि कई कारण उत्तरदायी हैं। सबसे बड़ा कारण तो शीर्ष पार्टी नेतृत्व की मन- मानी है। प्रदेश इकाई की सोच और तर्कों को दरकिनार कर बार- बार उस पर अपने निर्णय थोपना पार्टी को खुद ही भारी पड़ गया।

प्रदेश इकाई के नेता बिल्कुल भी इस पक्ष में नहीं थे कि आम आदमी पार्टी से गठबंधन किया जाए। वजह, इसी पार्टी ने कांग्रेस को दिल्ली की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया था। अब जबकि दिल्ली निवासी कांग्रेस के शासनकाल और शीला दीक्षित सरकार की उपलब्धियों को याद करने लगे थे, शीर्ष नेतृत्व के दबाव में पार्टी को उसी आप के साथ गठबंधन करना पड़ गया। सात में से चार लोकसभा सीटें यानी 40 विधानसभा आप के खाते में डाल देने से प्रदेश के नेताओं को ही नहीं, कार्यकर्ताओं को भी भारी धक्का लगा।

कार्याकर्ता हुए नाराज

इसके बाद तीन सीटों के उम्मीदवारों के चयन में भी शीर्ष नेतृत्व ने प्रदेश इकाई की सिफारिशों को दरकिनार कर दिया। उत्तर पूर्वी और उत्तर पश्चिमी सीट पर कन्हैया कुमार एवं उदित राज सरीखे बाहरी उम्मीदवार उतार दिए गए। इससे 20 विधानसभा क्षेत्रों के कार्यकर्ता और नाराज हो गए। पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की नाराजगी को जब तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली ने उठाना चाहा तो उनकी भी नहीं सुनी गई। लवली और पूर्व मंत्री राजकुमार चौहान के अलावा कई अन्य नेताओं ने इसके विरोध में पार्टी छोड़ने का निर्णय लिया तो भी आलाकमान ने परवाह नहीं की।

इस सबके चलते इस बार कांग्रेस के स्थानीय नेताओं-कार्यकर्ताओं ने दिल से चुनाव में काम किया ही नहीं तो तीनों ही सीटों पर भितरघात भी खूब देखने को मिली। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने तीनों ही सीटों पर वरिष्ठ नेता सचिन पायलट, चौ वीरेंद्र सिंह और सीपी जोशी को पर्यवेक्षक बनाया। लेकिन पायलट के अलावा कोई एक से दूसरी बार नहीं आया।

पार्टी ने 40 स्टार प्रचारकों की सूची जारी की, लेकिन 10 प्रतिशत प्रचारकों ने भी गंभीरता से अपना काम नहीं किया। प्रदेश प्रभारी दीपक बाबरिया के अनावश्यक हस्तक्षेप की शिकायतें सामने आती रहीं। यहां तक कि दिल्ली के स्तर पर पार्टी अपना घोषणापत्र भी जारी नहीं कर सकी।

हमारी तरफ से कुछ चूक तो हुई ही हैं। अब चाहे आप से गठबंधन का विरोध कह लें या कुछ प्रत्याशियों की अस्वीकार्यता। इनके अलावा भी अन्य सभी कारकों पर विचार कर उन्हें दूर किया जाएगा। पूरा प्रयास रहेगा कि छह महीने बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करे। -देवेंद्र यादव, अध्यक्ष, दिल्ली कांग्रेस

हम शुरू से ही कांग्रेस नेतृत्व को समझाना चाह रहे थे, लेकिन हमारी नहीं सुनी गई। जनता ने न तो आप-कांग्रेस के गठबंधन को स्वीकार किया, न ही उन दो प्रत्याशियों को अपना समर्थन दिया, जिनका हम विरोध कर रहे थे। यहां तक कि वरिष्ठ नेताओं के पार्टी छोड़ने को भी आलाकमान ने गंभीरता से नहीं लिया। इसका भी फर्क तो पड़ा ही है। -अरविंदर सिंह लवली, पूर्व अध्यक्ष, दिल्ली कांग्रेस एवं वर्तमान में भाजपा नेता