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Delhi News: एनएसयूटी परिसर में संरक्षण के लिए अनोखी पहल, दो हजार स्क्वायर मीटर में विकसित होगा जोहड़

अधिशासी अभियंता प्रदीप देशवाल ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर के अंतर्गत सड़क के दोनों ओर ड्रेन बनी हुई हैं जहां से बारिश का पानी गुजरकर इन कुएं तक जाता है और वहां पानी को तीन स्तर पर फिल्टर किया जाता है।

By Pradeep ChauhanEdited By: Updated: Mon, 20 Jun 2022 06:37 PM (IST)
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इसके बाद उस फिल्टर बारिश के पानी को कुएं में छोड़ा जाता है।

नई दिल्ली [मनीषा गर्ग]। प्राकृतिक जोहड़ का संरक्षण जहां एक तरफ सरकारी एजेंसियों के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है, वहीं द्वारका सेक्टर-3 स्थित नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एनएसयूटी) दो हजार स्क्वायर मीटर में अपना एक जोहड़ विकसित करने जा रहा है।

केंद्र सरकार की जल शक्ति मिशन योजना को सफल बनाने की दिशा में एनएसयूटी का यह अहम कदम है। अधिकारियों के मुताबिक आगामी एक हफ्ते के भीतर योजना का टेंडर पास हो जाएगा और जुलाई में योजना पर काम शुरू हो जाने की पूरी उम्मीद है। इससे न सिर्फ भूजल स्तर बढ़ेगा बल्कि विश्वविद्यालय परिसर में तरह-तरह के पक्षियों का भी बसेरा होगा।

साथ ही अतिरिक्त जल को सहेजा जा सकेगा। असल में मानसून के दौरान विश्वविद्यालय के करीब 50 एकड़ क्षेत्रफल में फैले हरित क्षेत्र में पानी की जरूरत नहीं होती है। इसलिए उस दौरान सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट से प्राप्त शोधित जल को यहां-वहां बर्बाद करने के बजाय जोहड़ में सहेजा जाएगा।

इससे पानी की बर्बादी पर विराम लगेगा और दूसरा भूमिगत जलस्तर भी बढ़ेगा। दूसरा जरूरत पड़ने पर उस पानी का इस्तेमाल किया जा सकेगा। अभी विश्वविद्यालय बारिश की एक-एक बूंद को सहेजकर हर साल करीब 31,670 क्यूबिक मीटर पानी से भूमिगत जल स्तर को बढ़ा रहा है।

पुरानी धरोहर को सहेजा : वर्ष 1990 में एनएसयूटी को द्वारका सेक्टर-3 में जमीन आवंटित हुई थी, उस समय यहां कई कुएं थे जिसके पानी का इस्तेमाल किसान सिंचाई में किया करते थे। जमीन पर विश्वविद्यालय के निर्माण के दौरान कई कुएं ध्वस्त हो गए, लेकिन पांच आज भी जीवित है और उनका इस्तेमाल वर्षा जल संचयन के लिए किया जाता है।

अधिशासी अभियंता प्रदीप देशवाल ने बताया कि विश्वविद्यालय परिसर के अंतर्गत सड़क के दोनों ओर ड्रेन बनी हुई हैं, जहां से बारिश का पानी गुजरकर इन कुएं तक जाता है और वहां पानी को तीन स्तर पर फिल्टर किया जाता है। इसके बाद उस फिल्टर बारिश के पानी को कुएं में छोड़ा जाता है।

प्रदीप देशवाल ने बताया की 70 हजार स्क्वायर मीटर क्षेत्रफल पर गिरने वाला बारिश का पानी, जिसमें सड़क व फुटपाथ शामिल है, फिल्टर होकर इन कुएं के माध्यम से जमीन में जाता है। बीते 21 वर्षों से इसी योजना के तहत बारिश की बूंदों को सहेजा जा रहा है।

वहीं विश्वविद्यालय परिसर के अंतर्गत इमारतों पर गिरने वाले बारिश के पानी को सहेजने के लिए हाल ही में दिल्ली जल बोर्ड की मदद से अलग वर्षा जल संचयन प्लांट लगाया गया है। प्रदीप देशवाल बताते हैं कि वर्षा जल संचयन प्लांट को समय समय पर अपडेट किया जाता है, ऐसे में विश्वविद्यालय परिसर में जलजमाव की स्थिति पैदा होने की गुजांइश नहीं है।

  • मास्टर प्लान के अनुसार विश्वविद्यालय परिसर में जिस जगह पर इमारत नहीं बननी है, वहां जोहड़ को विकसित किया जा रहा है। जोहड़ के आसपास भव्य पार्क भी विकसित किया जाएगा। यह पूरी परियोजना चार करोड़ रुपये की है।प्रो. जय प्रकाश सैनी, कुलपति