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सच के साथी सीनियर्स: किसी सूचना को फॉरवर्ड करने से पहले सोर्स चेक कर लें

Sach Ke Saathi दिल्ली के रोहिणी में आयोजित सेमिनार में विश्वास न्‍यूज की एक्सपर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों को ट्रेनिंग देते हुए ने कहा कि सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर मिलने वाली सूचनाओं को बिना जांचे फॉरवर्ड करने से फर्जी और भ्रामक सूचनाओं की चेन लंबी होती जाती है। इसे तोड़ने के लिए सूचनाओं के सोर्स को चेक करना जरूरी है।

By Jagran News Edited By: Shyamji Tiwari Updated: Fri, 12 Jan 2024 10:40 PM (IST)
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किसी सूचना को फॉरवर्ड करने से पहले सोर्स चेक कर लें

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। मोबाइल के जिंदगी का अहम हिस्सा बनने के साथ ही लोग आभासी दुनिया के शिकार होने लगे हैं। सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म पर मिलने वाली सूचनाओं को बिना जांचे फॉरवर्ड करने से फर्जी और भ्रामक सूचनाओं की चेन लंबी होती जाती है। इसे तोड़ने के लिए सूचनाओं के सोर्स को चेक करना जरूरी है। इससे न सिर्फ इस चेन को तोड़ा जा सकता है, बल्कि डिजिटल फ्रॉड से भी बचा सकता है।

दिल्ली के रोहिणी में आयोजित सेमिनार में विश्वास न्‍यूज की एक्सपर्ट ने वरिष्ठ नागरिकों को ट्रेनिंग देते हुए यह बात कही। रोहिणी के सेक्टर-9 स्थित आदर्श पब्लिक स्‍कूल में शुक्रवार (12 जनवरी) को इस सेमिनार का आयोजन किया गया। जागरण न्यू मीडिया की फैक्ट चेकिंग विंग विश्वास न्‍यूज के मीडिया साक्षरता अभियान के तहत आयोजित कार्यशाला में मुख्य रूप से वरिष्ठ नागरिकों को ट्रेनिंग दी गई।

सूचनाएं हमारी मानसिक स्थिति पर प्रभाव डालती

विश्वास न्‍यूज की सीनियर एडिटर एवं फैक्ट चेकर उर्वशी कपूर ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए संतुलित खानपान और सूचनाओं के आपसी संबंध को समझाया। उन्होंने कहा कि जिस तरह संतुलित खानपान शारीरिक स्वास्थ्य के लिए जरूरी है, उसी प्रकार स्वस्थ सूचनाएं मानसिक सेहत के लिए जरूरी है। उन्होंने समझाया कि किस तरह से सूचनाएं हमारी मानसिक स्थिति पर प्रभाव डालती हैं।

डिप्टी एडिटर एवं फैक्ट चेकर पल्लवी मिश्रा ने उदाहरणों के माध्यम से मिसइन्फॉर्मेशन, डिसइन्फॉर्मेशन और मालइन्फॉर्मेशन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि लुभावने मैसेज के साथ फिशिंग लिंक्स शेयर किए जाते हैं। ऐसे मैसेज मिलने पर उनके यूआरएल को ध्यान से चेक करें और वेरिफाइड सोर्स से उसकी पुष्टि करें। अन्यथा फिशिंग लिंक्स पर क्लिक करने से आप साइबर ठगी के शिकार हो सकते हैं।

पल्लवी ने रश्मिका मंदाना के डीपफेक वीडियो का उदाहरण देते हुए वर्कशॉप में मौजूद प्रतिभागियों को डीपफेक वीडियो या एआई निर्मित तस्वीरों को पहचानने की ट्रेनिंग भी दी। साथ ही उन्होंने फैक्ट चेकिंग टूल्स गूगल ओपन सर्च और गूगल रिवर्स इमेज से किसी भी संदिग्ध सूचना या वायरल तस्वीर की जांच करना भी सिखाया।

कार्यक्रम के अंत में उर्वशी ने कहा कि चुनाव के दौरान इसे प्रभावित करने के लिए बहुत सी सूचनाओं सोशल मीडिया पर प्राप्त होती रहती हैं। इनकी पड़ताल कर इन्हें फैलने से रोकें और जागरूक मतदाता बनने में अपना सहयोग दें। साथ ही उन्होंने सभी से सच के साथी मुहिम का हिस्सा बनने की अपील भी की।

इन राज्यों में भी हो चुकी है ट्रेनिंग

इससे पहले इस अभियान के तहत मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और बिहार के नागरिकों को भी फैक्ट चेकिंग की ट्रेनिंग दी जा चुकी है। गूगल न्यूज इनिशिएटिव (जीएनआई) के सहयोग से संचालित हो रहे इस कार्यक्रम का अकादमिक भागीदार माइका (मुद्रा इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशंस, अहमदाबाद) है।

यह है अभियान

'सच के साथी सीनियर्स' भारत में तेजी से बढ़ रही फेक और भ्रामक सूचनाओं के मुद्दे को संबोधित करने वाला मीडिया साक्षरता अभियान है। कार्यक्रम का उद्देश्य 15 राज्यों के 50 शहरों में सेमिनार और वेबिनार की श्रृंखला के माध्यम से स्रोतों का विश्लेषण करने, विश्वसनीय और अविश्वसनीय जानकारी के बीच अंतर करते हुए वरिष्ठ नागरिकों को तार्किक निर्णय लेने में मदद करना है।