Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

Lok Sabha Election 2024: यादव वोटों से निश्चिंत अखिलेश! इन जातियों को साधने की कोशिश, क्या सफल होगी रणनीति?

Lok Sabha Election 2024 उत्तर प्रदेश में टिकट वितरण में गैर- यादव पिछड़ी जातियों को प्राथमिकता देकर यदि सपा मुखिया अखिलेश यादव अपनी बिसात बिछा रहे हैं तो शह-मात के दांव आजमाने के लिए भाजपा भी आतुर हैं। यादव वोटों को लेकर निश्चिंत अखिलेश ने यह रणनीति पिछले विधानसभा चुनाव में भी अपनाई थी। पढ़ें यूपी में सपा कैसे साध रही है जाति समीकरण।

By Jagran News Edited By: Sachin Pandey Updated: Thu, 11 Apr 2024 01:19 PM (IST)
Hero Image
अखिलेश ने इस बार अब तक परिवार के सदस्यों के अलावा किसी बाहरी यादव नेता को टिकट नहीं दिया है।

जितेंद्र शर्मा, नई दिल्ली। बीते तीन लोकसभा चुनावों के आंकड़े गवाही देते हैं कि जिस यादव वोटबैंक को उत्तर प्रदेश में सपा का मुख्य आधार माना जाता है, उसी वर्ग के नेताओं की चुनाव में भागीदारी घटती जा रही है। यह सजातीय वोटबैंक पर मजबूती का अखिलेश यादव का विश्वास ही है कि इस बार उन्होंने अभी तक परिवार के चार सदस्यों के अतिरिक्त किसी बाहरी यादव नेता को टिकट नहीं दिया है।

टिकट वितरण में गैर- यादव पिछड़ी जातियों को प्राथमिकता देकर यदि सपा मुखिया अखिलेश यादव अपनी बिसात बिछा रहे हैं तो शह-मात के दांव आजमाने के लिए भाजपा भी आतुर है। सिर्फ परिवार के ही सदस्यों को टिकट देने के अखिलेश के निर्णय पर 'परिवारवाद' का पोस्टर लगाकर यादव वोटबैंक में सेंध के सहारे ओबीसी पर अपनी पकड़ को मजबूत करना चाहती है।

47 सीटों पर घोषित किए प्रत्याशी

उत्तर प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल सपा व कांग्रेस इस बार भाजपा के सामने एकजुट होकर ताल ठोंक रहे हैं। सपा 62 सीटों पर लड़ रही है, जिनमें से 47 पर वह प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। अखिलेश ने जिस तरह से टिकटों का बंटवारा किया है, उससे उनकी रणनीति साफ दिखाई देती है।

मुख्य रूप से यादव-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे चलती रही सपा का नारा इस बार पीडीए ( पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) है, पर देखा जाए तो अधिक जोर पिछड़ों पर है। अभी तक सबसे अधिक टिकट गैर-यादव पिछड़ी जाति के नेताओं को दिए हैं।

इन जातियों को साधने का प्रयास

कुर्मी, कुशवाहा और मौर्य जैसी जातियां अखिलेश की प्राथमिकता में रही हैं, जबकि यादवों के नाम पर परिवार के चार सदस्य मैनपुरी से डिंपल यादव, फिरोजाबाद से अक्षय यादव, आजमगढ़ से धर्मेंद्र यादव और बदायूं से शिवपाल यादव को प्रत्याशी बनाया है। साल 2019 में 37 सीटों पर लड़ी सपा ने परिवार के पांच सदस्य लड़ाए तो दो बाहरी थे। 2014 के चुनाव में नौ यादव मैदान में थे। इनमें मुलायम सिंह यादव दो सीटों पर लड़े थे, जबकि चार परिवार के इतर यादव नेता थे।

अखिलेश की इस रणनीति को राजनीतिक विश्लेषक अलग दृष्टिकोण से देख रहे हैं। उनका मानना है कि लगभग हर चुनाव में यादव बिरादरी का वोट बहुतायत में सपा को ही मिला है। इसके इतर 2022 के विस चुनाव में अखिलेश ने स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, ओमप्रकाश राजभर, केशवदेव मौर्य, पल्लवी पटेल जैसे पिछड़े नेताओं को अपने साथ रखा तो परिणामों पर उसका असर दिखा।

यह भी पढ़ें - Chunavi किस्सा: फणीश्वरनाथ रेणु ने हार के बाद खाई थी चौथी कसम; फिर बेटे ने ऐसे किया हिसाब बराबर

विधनसभा चुनाव में मिला समर्थन

कुर्मी, कुशवाहा, मौर्य बिरादरी के वोट सपा को अच्छी संख्या में मिले। पार्टी को 2017 की तुलना में लगभग 90 लाख अधिक वोट मिला। कुर्मी बहुल कुछ सीटों पर उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य सहित भाजपा नेताओं को हार मिली। ओबीसी वोटबैंक पर अब भी भाजपा की पकड़ अन्य दलों की तुलना में मजबूत है और अखिलेश की बिसात पर भाजपा अपने तरीके से चाल चलने के प्रयास में है। मध्य प्रदेश में डा. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना चुकी भाजपा ने उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार में चुनाव प्रचार के लिए सक्रिय कर दिया है।

यह भी पढ़ें - Lok sabha Election: 'आम आदमी की भावना को नहीं समझ पा रही कांग्रेस', भाजपा कार्यकर्ताओं से बोले शिवराज सिंह चौहान

अपना-अपना दृष्टिकोण

सपा संस्थापक स्व. मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे मैनपुरी के वरिष्ठ सपा नेता प्रो. केपी यादव का कहना है कि मुलायम सिंह यादव सिर्फ यादवों के नहीं, बल्कि पिछड़ों के सर्वमान्य नेता थे। सपा भी सिर्फ यादवों की पार्टी नहीं है। अन्य पिछड़े वर्ग के नेताओं को जोड़ना अखिलेश का सही निर्णय है।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री डा. सुभाष यदुवंश का कहना है कि सपा उम्र के सभी यादव मतदाताओं को अपना बंधक वोटबैंक मानती है। डा. यदुवंश का दावा है कि देशभर में लोकसभा चुनावों में भाजपा को यादवों का करीब 24 प्रतिशत वोट मिलता रहा है और इस बार यह आंकड़ा 40 प्रतिशत तक पहुंचने की उम्मीद है।

ये भी पढ़ें- किश्ती से चुनाव प्रचार, शिकारों पर होगी रैली...और तैरते दिखेंगे मतदान केंद; घाटी में कैसी चल रही है महासमर की तैयारी?