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Dabwali Assembly Seat: देवीलाल के कुनबे में त्रिकोणीय मुकाबला, चचेरे भाई और भतीजा के बीच कांटे की टक्कर

डबवाली विधानसभा सीट पर देवीलाल के परिवार के सदस्यों के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। आदित्य चौटाला इनेलो से दिग्विजय चौटाला जजपा से और अमित सिहाग कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं। आप और भाजपा के उम्मीदवार भी समीकरण बिगाड़ सकते हैं। यह क्षेत्र 2005 से ही सत्ता के विपरीत चल रहा है। बता दें कि हरियाणा में 5 अक्टूबर को मतदान होना है।

By Jagran News Edited By: Rajiv Mishra Updated: Sat, 21 Sep 2024 03:58 PM (IST)
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डबवाली सीट पर देवीलाल के परिवार में मुकाबला (फाइल फोटो)

सनमीत सिंह थिंद, सिरसा। हरियाणा और पंजाब की सीमा से लगता डबवाली विधानसभा क्षेत्र। बागड़ बेल्ट की हॉट सीट। यहां एक महीने में समीकरण तेजी से बदले हैं। भाजपा की पहली सूची में नाम ना आने पर आदित्य चौटाला इनेलो में शामिल हो गए। उनके ताऊ ओमप्रकाश चौटाला ने उन्हें चुनाव मैदान में उतार दिया।

दूसरी ओर, जजपा से ओमप्रकाश के पोते एवं अजय के बेटे दिग्विजय चौटाला मैदान में हैं। इनके अलावा कांग्रेस के टिकट पर निवर्तमान विधायक अमित सिहाग भी इन्हीं के परिवार से हैं। अमित और आदित्य चचेरे भाई हैं, जबकि दिग्विजय उनके भतीजे हैं। तीनों त्रिकोणीय मुकाबला बनाए हुए हैं।

भाजपा ने बलदेव सिंह मांगेआना को दिया है टिकट

भाजपा ने यहां से बलदेव सिंह मांगेआना को उतारा है। यह प्रदेश का ऐसा विस क्षेत्र है जहां कई लोगों के घरों का एक दरवाजा पंजाब में तो दूसरा दरवाजा हरियाणा में खुलता है। कई गांव राजस्थान की सीमा से लगते हैं। इसी वजह से यह विधानसभा क्षेत्र पंजाबी और बागड़ी भाषा का मिश्रण लिये हुए हैं। प्रत्याशियों को बागड़ बेल्ट के गांवों में बागड़ी और पंजाबी बेल्ट के गांवों में पंजाबी भाषा में अपनी बात कहनी पड़ती है।

हार-जीत का इतिहास

2009 के परिसीमन में यह सीट सामान्य की श्रेणी में आ गई थी। इस सीट पर चौटाला परिवार से अजय सिंह चौटाला 2009 का विधानसभा चुनाव जीते थे। 2014 के चुनाव में नैना चौटाला जीतीं। दोनों चुनावों में केवी सिंह हार गए। 2019 में भाजपा के आदित्य चौटाला को कांग्रेस के अमित सिहाग ने हराया था।

आप और भाजपा बिगाड़ेंगे समीकरण

यहां जाट, सिख, पंजाबी, बिश्नोई और दलित मतदाता हैं। पांचों में से तीन प्रमुख प्रत्याशी जाट और दो प्रत्याशी जाट सिख है। कांग्रेस के अमित सिहाग, इनेलो के आदित्य चौटाला और जजपा के दिग्विजय की हार जीत के समीकरणों को अाप के कुलदीप सिंह गदराना और भाजपा के बलदेव सिंह मांगेआना प्रभावित कर सकते हैं।

2005 से चल रहा सत्ता के विपरीत

यह क्षेत्र 2005 के समय से ही सत्ता के विपरीत चल रहा है। तब इनेलो के डा. सीताराम जीते थे, पंरतु सरकार कांग्रेस की बनी। वर्ष 2009 में जब सामान्य सीट हुई तो इनेलो से अजय चौटाला जीते। लेकिन सरकार कांग्रेस की थी। 2014 में इनेलो से नैना चौटाला जीती, परंतु सत्ता भाजपा की थी। इसके बाद 2019 में कांग्रेस के अमित सिहाग जीते, परंतु भाजपा की सरकार बनी। भाजपा- जजपा गठबंधन के समय दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम रहे। ऐसे में जजपा प्रत्याशी भी चार साल इस सरकार का हिस्सा रहा। हार के बावजूद आदित्य चौटाला को भाजपा ने हरको बैंक का चेयरमैन बनाया था।

आदित्य चौटाला: पहले के बयान से बढ़ी मुश्किल

आदित्य चौटाला भाजपा से इनेलो में शामिल हुए जिस कारण दलबदलू का ठप्पा लग गया। चुनाव से पहले 32 गांवों में डोर टू डोर अभियान चलाकर भाजपा के लिए वोट मांग चुके थे। किसानों पर टिप्पणी की थी कि राबड़ी पीके सो जाओ, बिल वापस नहीं होंगे। उसका यह बयान इन चुनावों में चर्चा का विषय बना हुआ है। शहरी मतदाताओं का इनेलो से जुड़ाव नहीं है।

दिग्विजय चौटाला : मतदाताओं से दूरी

दिग्विजय चौटाला साढ़े चार साल बाद डबवाली में लोगों से मिल रहे हैं। सरकार में रहते हुए डबवाली के मतदाताओं से दूरियां रही। दिग्विजय के पिता अजय चौटाला ने किसान आंदोलन को बीमारी बताकर टिप्पणी की थी। इनलो से जजपा के गठन के बाद परिवार के सदस्यों द्वारा पिछला चुनाव ना लड़ने से मतदाताओं से जुड़ाव नहीं हो रहा।

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अमित सिहाग : सिख वोटर लुभाने को बहाना होगा पसीना

आम आदमी पार्टी और भाजपा ने सिख चेहरे को उतारा है। सिख समाज का बड़ा वोट बैंक कांग्रेस के पास था। जिसमें सेंध लग गई है। इनेलो ने आदित्य चौटाला को उतार कर एक तरफा मुकाबले को चुनौतीपूर्ण दिया है।

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