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J&K: डोगरा इतिहास के साथ बौद्ध धर्म का साक्षी है अखनूर, ऐतिहासिक समृद्धि को बयान करती हैं यहां की धरोहरें

ऐतिहासिक धरोहर में खोदाई के दौरान मिले बौद्ध स्तूप इस बात के संकेत देते हैं कि अंबारा स्थित ऐतिहासिक धरोहर बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था।

By Rahul SharmaEdited By: Updated: Wed, 25 Sep 2019 02:48 PM (IST)
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J&K: डोगरा इतिहास के साथ बौद्ध धर्म का साक्षी है अखनूर, ऐतिहासिक समृद्धि को बयान करती हैं यहां की धरोहरें

जम्मू, ललित कुमार। जम्मू से 28 किलोमीटर दूर दरिया चिनाब के किनारे बसे अखनूर में पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। अखनूर ऐतिहासिक-पौराणिक-धार्मिक स्थल है, जहां कुछ वर्षो से पर्यटक पहुंच रहे हैं। इससे क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद जगी है। क्षेत्र में कई ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल हैं। यही नहीं, यहां की भूमि कई रहस्य छिपाए हुए है। इस तरह यह पर्यटन स्थल बनने के सभी मापदंडों पर खरा उतरता है। जरूरत सिर्फ सार्थक पहल करने की है। पिछले कुछ दशक में सरकार की ओर से सिंधु घाटी की सभ्यता काल के इस स्थल को पर्यटन मानचित्र पर लाने के कुछ प्रयास तो हुए लेकिन कभी गंभीरता नहीं दिखी। यही कारण है कि अखनूर आज भी अपने महत्व के अनुसार दर्जा हासिल नहीं कर सका। इसके बावजूद स्थानीय लोगों के लिए यह छोटा सा कस्बा एक दिन की छुट्टी मनाने के लिए उपयुक्त जगह है। यहां पर डोगरा इतिहास के साथ बौद्ध धर्म को जानने का मौका मिलता है। दरिया चिनाब किनारे बना गुरुद्वारा सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। जम्मू शहर से मात्र आधे घंटे की दूरी पर स्थित यह क्षेत्र महाभारत काल से भी जुड़ा है, तो वहीं बौद्ध गुरु दलाई लामा ने भी यहां का दौरा कर इसके महत्व को स्वीकार किया है।

 

अंबारा : अंबारा को विश्व की पुरातन धरोहरों में से एक माना जाता है। बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा स्वयं यहां आए थे। यह स्थल जम्मू के बौद्ध धर्म से रिश्तों का प्रमाण है। वर्ष 1999 से 2001 के बीच एतिहासिक धार्मिक स्थल अंबारा की खोदाई के दौरान अवशेषों से मिले महत्वपूर्ण तथ्यों से अंबारा में कुषाण वंश के शासनकाल से गुप्त वंशजों के शासन तक बौद्ध के प्रचार-प्रसार के लिए किए गए प्रयासों का पता चलता है। पहली शताब्दी से तीसरी शताब्दी के दौरान बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण धार्मिक केंद्र होने से जुड़े तथ्यों को उकेरते अवशेष मिलने से अंबारा विश्व की पुरातन धरोहरों में मानी जाती है। खोदाई के दौरान सोने की टोकरी में बुद्ध से जुड़ी वस्तुएं, सिक्के व कुषाण वंश के राजा कनिष्क से जुड़ी कई वस्तुएं मिली हैं, जिन्हें अंबारा में स्थित संग्रहालय में सहेज कर रखा गया है। सोने की टोकरी को विश्व के कई संग्रहालयों में प्रदर्शित भी किया गया है। ऐतिहासिक धरोहर में खोदाई के दौरान मिले बौद्ध स्तूप इस बात के संकेत देते हैं कि अंबारा स्थित ऐतिहासिक धरोहर बौद्ध धर्म का महत्वपूर्ण केंद्र था।

पांडव गुफा : माना जाता है कि यह शहर महाभारत काल में विराट शहर था। यह वह नगर था जहां पांडवों को एक वर्ष के लिए कौरवों से छिपना पड़ा था। नदी के किनारे एक गुफा मंदिर है। गुफा मंदिर का नाम पांडव गुफा है। गुफा के प्रवेश द्वार पर हनुमान और भैरव की आकृतियां हैं। गुफा में शिवलिंग की मूर्ति है। माना जाता है कि यह पांडवों द्वारा स्थापित किया गया था। गुफा में अजरुन के साथ पांचों पांडव, उनकी पत्नी द्रोपदी और कृष्ण की आधारशिला भी है। मान्यता मंदिर के अंदर भगवान कृष्ण के पदचिह्न भी मिले हैं। धर्मराज और चित्रगुप्त की मूर्तियां कृष्ण पाद छाप के पास मिली हैं। छोटी गुफा मंदिर में काली, राधा-कृष्ण और शिव-पार्वती-गणोश के अन्य मंदिर भी हैं। पांडव गुफा मंदिर के पास, अखनूर किला स्थित है। यह 18 वीं शताब्दी ईसवी में राजा तेग सिंह द्वारा बनाया गया था। किले के अंदर की गई खोदाई में हड़प्पा और पूर्व हड़प्पा सभ्यता का पता चला है जो 5000 साल पुरानी हैं।

जियापोता घाट : जिस तरह अखनूर अपनी प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व के लिए इतिहास में गर्व का स्थान पाता है, ठीक उसी तरह चंद्रभागा के दाहिने किनारे पर जिया पोता घाट प्राचीन शहर की शान है। जिया पोता घाट का नाम जिया पोटा पेड़ से लिया गया है, जिसका वानस्पतिक नाम यूफोरबिएसी परिवार के पुतृन्जिवा रोक्सबर्गी है, जिनकी छत्रछाया में महाराजा गुलाब सिंह का राजतिलक समारोह हुआ था। जिया पोता घाट वो एतिहासिक स्थल है, जहां 17 जून 1822 को पंजाब के महाराजा रंजीत सिंह ने गुलाब सिंह का राजतिलक कर जम्मू-कश्मीर का डोगरा महाराजा बनाया था। शेर-ए-पंजाब रंजीत सिंह ने एक सिपाही को राजतिलक लगाकर राज्य का महाराजा बनाने के साथ डोगरा राज्य की स्थापना की। इस ऐतिहासिक दिन को आज भी डोगरा स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है और हर साल 17 जून को जिया पोता घाट पर राजतिलक सेलिब्रेशन कमेटी की ओर से भव्य कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। महाराजा गुलाब सिंह के राज्याभिषेक दिवस के उपलक्ष्य में, राजतिलक के दृश्य को दर्शाते हुए घाट पर एक स्मारक टेबलेट स्थापित किया गया है। यह माना जाता है कि मूल जिया पोता पेड़ उखड़ गया और अंतत: 1957 की बाढ़ में बह गया।

समूह देवता मंदिर : यह अखनूर के पास मंदिरों में छिपे हुए मोती में से एक है, जो डोगरा संस्कृति के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य को दर्शाता है। गांव के बंगले में हरे-भरे शिवालिकों की तलहटी में स्थित यह मंदिर एक शास्त्रीय तपोवन है, जो शांत, प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता का निवास है। यह मंदिर प्राचीन अखनूर से लगभग बारह किलोमीटर दूर है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसने अतीत के साथ-साथ वर्तमान समय में भी आध्यात्मिकता के साधकों को आकर्षित किया है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार समूद देवता को ब्राह्मणों के ब्राह्मण कुल के कुलदेवता के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय लोककथाओं के अनुसार एक ऋषि ने जल की कमी को दूर करने के लिए अपने कमंडल से पानी डाला और इसी तरह सुमा धारा और बोवली (प्राकृतिक झरने) से पूरे साल पानी निकलता रहा।

अखनूर किला : नदी के किनारे लंबा खड़ा है अखनूर किला। यह दो मंजिला किला चिनाब नदी के ऊपर एक चट्टान पर बसा है। किला 1982 से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के अधीन है। इसे स्मारक अधिनियम 1958 के अनुसार संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय स्मारक घोषित किया गया है। इतिहासकारों के अनुसार किले का निर्माण मूल रूप से राजा तेग सिंह ने 1762 में किया था। 1802 में राजा आलम सिंह ने। एएसआइ ने इस इमारत के प्राचीन गौरव को बहाल करने के लिए कई उपाय किए। अतिक्रमण हटाने के लिए कई प्रस्ताव पेश किए हैं। वर्तमान में इसमें विभिन्न सरकारी आवास हैं। एसडीएम कार्यालय और पुलिस स्टेशन सहित अन्य कार्यालय।