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Jharkhand: सनातन का सम्मान! झारखंड के रबिलाल ने हनुमान चालीसा का संथाली में किया अनुवाद

Jharkhand दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री विश्व विद्यालय से संस्कृत में बीएड कर रहे जामताड़ा निवासी रबिलाल हांसदा ने हाल ही में हनुमान चालीसा का ओलचिकी (संथाल आदिवासियों की लिपि) में अनुवाद किया है। जामताड़ा जिले के कुंडहित स्थित जादूडीह गांव के रहने वाले रबिलाल हांसदा बचपन से ही भगवान राम हनुमान भोलेनाथ माता दुर्गा समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते रहे हैं।

By Jagran NewsEdited By: Prince SharmaUpdated: Sun, 19 Nov 2023 07:39 AM (IST)
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Jharkhand: सनातन का सम्मान! झारखंड के रबिलाल ने हनुमान चालीसा का संथाली में किया अनुवाद

कौशल सिंह, जामताड़ा। दिल्ली के लाल बहादुर शास्त्री विश्व विद्यालय से संस्कृत में बीएड कर रहे जामताड़ा निवासी रबिलाल हांसदा ने हाल ही में हनुमान चालीसा का ओलचिकी (संथाल आदिवासियों की लिपि) में अनुवाद किया है। उनके द्वारा अनुवादित इस हनुमान चालीसा का राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु विमोचन करेंगी। राष्ट्रपति मुर्मु, पांच दिसंबर को प्रस्तावित दीक्षा समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल होंगी।

बचपन से ही देवी-देवताओं की करते आ रहे हैं पूजा

जामताड़ा जिले के कुंडहित स्थित जादूडीह गांव के रहने वाले रबिलाल हांसदा बचपन से ही भगवान राम, हनुमान, भोलेनाथ, माता दुर्गा समेत अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते रहे हैं। उन्होंने कई हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया है। वह कहते हैं कि हनुमान वनवासी थे। उनकी भक्ति, संस्कार और उनका पराक्रम हर वर्ग के भारतीय जनमानस को प्रेरणा देता है। मेरी इच्छा थी कि संथाली भाषा जानने वाले आदिवासी समाज के लोग भी हनुमान चालीसा का पाठ कर सकें। मुझे खुशी है कि मेरी ये इच्छा पूरी हो गई। बहुत जल्द ही वह संथाली में रामायण और महाभारत का भी अनुवाद करने वाले हैं।

आदिवासी समाज को जागरूक करना प्राथमिकता

रबिलाल के अनुसार, आदिवासियों की परंपरा आदि काल से ही सनातनी रही है। हिंदू धर्मग्रंथों के कई प्रसंग ऐसे हैं, जो हमें सनातनी होने का गौरव प्रदान करते हैं। समाज में यदि किसी व्यक्ति के घर नवजात का जन्म होता है तो उसे तेल लगाकर नाइकी हड़ाम बच्चे का नामकरण करते हैं, यह परंपरा सनातन संस्कृति का ही अंग है। इसी तरह मृत्यु के बाद 12 दिनों के बाद विधि-विधान से श्राद्ध कर्म की भी आदिवासियों में परंपरा है। आदिवासी परंपराएं सनातन की मूल अवधारणा का ही प्रतिरूप है। मेरी कोशिश है कि आदिवासी समाज जागरूक और विकसित बने।

सुंदरकांड पढ़ने के दौरान हनुमानजी से बढ़ा अनुराग: रबिलाल कहते हैं, कुंडहित के सिंहवाहिनी प्लस टू स्कूल में वैकल्पिक विषय के रूप में संताली के शिक्षक नहीं थे। ऐसे में मैंने संस्कृत विषय को पढ़ाई के लिए चुनाव। शिक्षक उमेश कुमार पांडेय ने मेरा संस्कृत विषय से साक्षात्कार करवाया। धीरे-धीरे मेरी संस्कृत के प्रति ऐसी रुचि हुई कि मैंने आगे भी इसी विषय से पढ़ाई करने की ठानी। इस दौरान मैंने रामायण व महाभारत भी कई बार पढ़ा। सुंदरकांड पढ़ने के दौरान ही मेरे मन में वीर हनुमान के प्रति अनुराग बढ़ा। अनुवाद में मुझे तकरीबन छह महीने लगे। प्रकाशन की जिम्मेदारी भी गुरुदेव ने ही उठाई।

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अब रामचरितमानस और महाभारत का अनुवाद रबि अब अब रामचरितमानस और महाभारत का अनुवाद कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि संथाली भाषा ओलचिकी लिपि में लिखी गई है। इस लिपि की खोज पंडित रघुनाथ मुर्मु ने 1925 में की थी। इस लिपि का संबंध प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनि की अष्टाध्यायी से है। इस कारण संथाली भाषा में संस्कृत के अनेक शब्द समाहित हैं।