Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

आदिवासी गांव के होम स्टे बने नशामुक्ति के साथ लोककला संरक्षण और स्वावलंबन का माध्यम

मध्य प्रदेश के सीधी जिले में पर्यटन की दिशा में नई पहल हुई है। यहां पांच नए होम स्टे बनाए गए हैं। इनके माध्यम से आदिवासी लोककला और संस्कृति का संरक्षण किया जा रहा है। यहां शाम होते ही टोली नृत्य की प्रस्तुति देती है। पर्यटन बोर्ड की मदद से इनकी देखरेख आदिवासी महिला और पुरुष ही करते हैं। ये आदिवासी शराब की लत भी त्याग चुके हैं।

By Jagran News Edited By: Yogesh Sahu Updated: Wed, 25 Sep 2024 07:42 PM (IST)
Hero Image
आदिवासी गांव के होम स्टे बने नशामुक्ति का जरिया।

नीलांबुज पांडे, जेएनएन (सीधी)। मध्य प्रदेश के सीधी जिले में होम स्टे की वजह से आदिवासियों की जीवनशैली ही बदल गई। सुरा के शौकीन आदिवासियों का सुर, ताल व नृत्य में ऐसा मन रमा कि उन्होंने शराब से तौबा कर ली।

इतना ही नहीं, होम स्टे में नृत्य की प्रस्तुति देकर वह अपनी लोककला का संरक्षण भी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश पर्यटन बोर्ड की पहल पर जिले के खोखरा गांव में 2020 में बनाए गए होम स्टे आदिवासियों के स्वावलंबन का माध्यम भी बने हैं।

अब यहां प्रत्येक शनिवार को शाम ढलते ही युवाओं की टोली शैला और कर्मा नृत्य पर थिरकते दिखती है। गांव के रघुराज सिंह कहते हैं कि आदिवासी अंचल में ज्यादातर लोग सुबह से ही शराब का सेवन करने लगते थे।

यह इनकी जीवनशैली का हिस्सा था। ऐसे में जब चार वर्ष पहले गांव में पांच होम स्टे बनाए गए तो उसमें लोककला की प्रस्तुति देने आने वाले आदिवासी नशा करके पहुंचते थे।

इससे कभी-कभार पर्यटकों को असहज स्थिति का सामना तो करना ही पड़ता था, होम स्टे को लेकर संदेश नकारात्मक जा रहा था।

ऐसी स्थिति में होम स्टे के संचालक मंडल और गांव की सरपंच ने निर्णय किया कि जो आदिवासी युवा शराब पीकर नृत्य या गायन करेगा, उसे भविष्य में प्रस्तुति देने का अवसर नहीं दिया जाएगा।

गांव की सरपंच पार्वती सिंह ने ग्राम सभा में इसको लेकर प्रस्ताव भी रखा। युवा भी संगीत प्रेमी निकले। उन्होंने शराब से स्वयं को दूर कर लिया।

इस व्यवस्था का असर यह हुआ कि करीब 30 कलाकार अब पूरी तरह से शराब का साथ छोड़ चुके हैं। यह कलाकार गौंड, पनिका और बैगा आदिवासी हैं।

यहां होम स्टे का संचालन आदिवासी महिला-पुरुष ही करते हैं। इससे इन्हें स्वावलंबन की राह मिली। पहले जो आदिवासी युवा कभी-कभार ही नृत्य करते थे, अब वर्षाकाल के कुछ माह छोड़कर अन्य दिनों में यहां आने वाले पर्यटकों के सामने प्रस्तुति देते हैं।

इससे इन्हें एक शाम में एक से दो हजार रुपये की आय हो जाती है। 1035 लोगों की आबादी वाले खोखरा गांव में 249 परिवार रहते हैं।

यह है कर्मा और शैला नृत्य

कर्मा नृत्य में तीन महिलाएं और तीन पुरुष मिलकर ढोलक लेकर झूमते हुए गाकर नृत्य करते हैं। शैला नृत्य में 16 पुरुष गाना गाकर लकड़ी की कुल्हाड़ी, तलवार, बंदूक लेकर नृत्य करते हैं। इसमें लगभग गरबा जैसा दृश्य दिखाई देता है।

इसलिए किया गया खोखरा गांव का चुनाव

मप्र पर्यटन बोर्ड ने खोखरा गांव में होम स्टे आरंभ करने का निर्णय इसकी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए किया। यहां से 50 किमी दूर संजय दुबरी टाइगर रिजर्व है।

गांव के निकट गोपद और महान नदी का संगम सहित एक जलप्रपात भी है। पर्यटक यहां बने मिलेट म्यूजियम (श्री अन्न संग्रहालय) भी पहुंचते हैं, जहां 20 प्रकार के बीज और बालियां रखी गई हैं।

पर्यटकों को गांव से जोड़ने के लिए होम स्टे में लकड़ी से बना हल, धूप से बचने को सिर में लगाने के लिए खोमरी (बांस की बनी गोल टोपी), सूपा (बांस से बना सूपा अनाज फटकने में सहायक होता है) सहित अन्य सामग्री को रखा गया है। लोककला संरक्षण व स्वावलंबन का माध्यम बन रहे होम स्टे अतिथि सत्कार में जुटे हैं।

संजय टाइगर रिजर्व और आसपास की हरियाली देखने के लिए आने वाले मेहमानों को खोखरा गांव खींच ही लेता है। मेहमानों के मनोरंजन के लिए प्रत्येक शनिवार की शाम शैला और कर्मा नृत्य की प्रस्तुति आदिवासी कलाकार देते हैं। कलाकार इस बात के लिए प्रतिबद्ध हैं कि वे मादक पदार्थ का सेवन किए बिना ही ये प्रस्तुतियां देंगे। - अंगिरा मिश्रा, परियोजना समन्वयक, ग्राम सुधार समिति