DY Chandrachud: 'जजों की नियुक्ति पर नियंत्रण के लिए लगातार चलती है खींचतान', CJI बोले- नियुक्तियों को लंबे समय तक रखा जाता लंबित
प्रधान न्यायाधीश ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की मुंबई पीठ के नए परिसर के उद्घाटन अवसर पर कहा न्यायाधिकरणों का एक उद्देश्य हमारी अदालतों में होने वाली देरी का मुकाबला करना व उनसे लड़ना था और यह उम्मीद की गई थी कि साक्ष्यों एवं प्रक्रियाओं के सख्त नियमों से बंधे ये न्यायाधिकरण अदालतों में देरी को दूर करने और समग्रता में न्याय के वितरण में सहायता करेंगे।
By Jagran NewsEdited By: Devshanker ChovdharyUpdated: Fri, 08 Dec 2023 11:57 PM (IST)
पीटीआई, मुंबई। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि जजों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण को लेकर खींचतान लगातार बनी रहती है, यहां तक कि रिक्तियां होने पर भी नियुक्तियों को लंबे समय तक लंबित रखा जाता है।
कैट की मुंबई पीठ के नए परिसर का उद्घाटन
प्रधान न्यायाधीश ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) की मुंबई पीठ के नए परिसर के उद्घाटन अवसर पर कहा, 'न्यायाधिकरणों का एक उद्देश्य हमारी अदालतों में होने वाली देरी का मुकाबला करना व उनसे लड़ना था और यह उम्मीद की गई थी कि साक्ष्यों एवं प्रक्रियाओं के सख्त नियमों से बंधे ये न्यायाधिकरण अदालतों में देरी को दूर करने और समग्रता में न्याय के वितरण में सहायता करेंगे।'
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उन्होंने कहा, लेकिन हमारे न्यायाधिकरण आम तौर पर समस्याओं से ग्रस्त हैं और हम खुद से पूछते हैं कि क्या इतने सारे न्यायाधिकरणों का गठन करना वास्तव में जरूरी था। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'चूंकि आपको जज नहीं मिलते, जब आपको जज मिलते हैं, रिक्तियां पैदा होती हैं जिन्हें लंबे समय तक लंबित रखा जाता है.. और फिर इस बात की लगातार खींचतान होती है कि जजों की नियुक्ति पर पूर्ण नियंत्रण किसका होगा।'
सीजेआई ने महाराष्ट्र की स्थिति की तारीफ की
उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के वकीलों और जजों को उन अनुकूल स्थितियों को नहीं भूलना चाहिए जो बाकी देश में नहीं हैं क्योंकि यहां शासन की एक संस्कृति है जिसमें न्यायपालिका को स्वतंत्र छोड़ दिया गया है। वे जजों के काम में हस्तक्षेप नहीं करते। परिणाम चाहे अनुकूल हो या प्रतिकूल वे उसे स्वीकार करते हैं।प्रधान न्यायाधीश ने कहा, 'अक्सर हम उस काम की महत्ता को भूल जाते हैं, जो सरकार न्यायिक ढांचे में सहायता के लिए करती है।' उन्होंने अदालतों को दिव्यांगों के अनुकूल बनाने की जरूरत पर भी बल दिया।
यह भी पढ़ेंः '2 मिनट के सुख वाली यौन इच्छाओं को काबू करें लड़कियां', कलकत्ता हाई कोर्ट की टिप्पणी पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई आपत्तिसाथ ही कहा कि सिर्फ तकनीक ही न्याय तक पहुंच का माध्यम नहीं बन सकती, अदालतों तक शारीरिक रूप से पहुंच को कभी भी कम नहीं आंका जा सकता। लिहाजा इसमें लगातार सुधार होना ही चाहिए। एक अच्छे रखरखाव और पहुंच वाला बुनियादी ढांचा न सिर्फ लोगों की कानूनी जरूरतों को पूरा करने में, बल्कि उनकी सुविधा के मामले में भी सरकार की सक्षमता में उनके विश्वास को बढ़ा सकता है।
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