ICICI-Videocon Scam: ‘चंदा-दीपक कोचर का ‘चुप’ रहना जांच में असहयोग नहीं’, CBI को हाईकोर्ट से लगी लताड़
32 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में पीठ ने इस बात को रेखांकित किया कि कानून का उचित सम्मान किए बिना गिरफ्तारियां की गईं जो शक्तियों के दुरुपयोग का संकेत करता है। साथ ही जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद-20(3) के अनुसार चुप रहने का अधिकार किसी व्यक्ति को आत्म-दोषारोपण से बचाता है और इसे असहयोग नहीं समझा जाना चाहिए।
पीटीआई, मुंबई। आईसीआईसीआई ऋण धोखाधड़ी मामले में सीबीआई द्वारा कोचर दंपती की गिरफ्तारी को शक्तियों का दुरुपयोग करार देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि चुप रहने के अधिकार की तुलना असहयोग से नहीं की जा सकती। आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व प्रबंध निदेशक एवं सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को नियमित जमानत प्रदान करने का छह फरवरी का फैसला सोमवार को सार्वजनिक करते हुए हाईकोर्ट की खंडपीठ ने गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध कराने में विफल रहने के लिए सीबीआई की आलोचना की।
जस्टिस अनुजा प्रभुदेसाई (अब सेवानिवृत्त) और जस्टिस एनआर बोरकर की पीठ ने इस बात को रेखांकित किया कि कोचर दंपती के विरुद्ध एफआइआर 2019 में दर्ज की गई थी और उन्हें पूछताछ के लिए 2022 में बुलाया गया। पीठ ने कहा, "अपराध की गंभीरता के बावजूद अपराध दर्ज होने की तिथि से तीन वर्षों तक याचिकाकर्ताओं से न तो समन किया गया और न ही उनसे पूछताछ की गई।"यह भी पढ़ें: NCP में असली और नकली की लड़ाई: शरद पवार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का अजित पवार गुट को नोटिस
32 पृष्ठों के विस्तृत फैसले में पीठ ने इस बात को रेखांकित किया कि कानून का उचित सम्मान किए बिना गिरफ्तारियां की गईं जो शक्तियों के दुरुपयोग का संकेत करता है। साथ ही जोर देकर कहा कि संविधान के अनुच्छेद-20(3) के अनुसार चुप रहने का अधिकार किसी व्यक्ति को आत्म-दोषारोपण से बचाता है और इसे असहयोग नहीं समझा जाना चाहिए।कोचर दंपती को सीबीआई ने वीडियोकॉन-आईसीआईसीआई बैंक ऋण मामले में 23 दिसंबर, 2022 को गिरफ्तार किया था। उन्होंने तत्काल ही अपनी गिरफ्तारी को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी और उसे गैरकानूनी बताते हुए जमानत की मांग की थी। छह फरवरी के फैसले में अदालत ने गिरफ्तारियों को गैरकानूनी बताते हुए जनवरी, 2023 में प्रदान की गई अंतरिम जमानत को स्थायी कर दिया था।
पीठ का कहना था कि उचित कानूनी विचार के बिना नियमित गिरफ्तारियां न्याय के सारतत्व के विरुद्ध हैं। अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 41ए नियमित गिरफ्तारियों से बचाव के लिए लाई गई थी। यह प्रविधान गिरफ्तारी की शक्ति को सीमित करता है, जब आरोपित व्यक्ति पुलिस द्वारा पूछताछ के लिए जारी नोटिस का अनुपालन करता है, प्रविधान कहता है कि गिरफ्तारी तभी की जाएगी जब पुलिस को लगे कि यह जरूरी है।
यह भी पढ़ें: वारिस पठान के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक पोस्ट, AIMIM नेता ने मुंबई पुलिस में की शिकायत
अदालत ने माना कि किसी आरोपित से पूछताछ करना और संतुष्ट होना जांच एजेंसी का अधिकार है, लेकिन यह न्यायिक समीक्षा से पूरी तरह मुक्त नहीं है। पीठ ने कहा, "अदालत इस बात पर विचार कर सकती है कि स्वतंत्रता से वंचित करने की वजह तर्कसंगत और वाजिब हैं।" गौरतलब है कि कोचर दंपती के अलावा सीबीआई ने वीडियोकॉन ग्रुप के संस्थापक वेणुगोपाल धूत को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया था। हाईकोर्ट ने जनवरी, 2023 में उन्हें भी जमानत दे दी थी।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।अदालत ने माना कि किसी आरोपित से पूछताछ करना और संतुष्ट होना जांच एजेंसी का अधिकार है, लेकिन यह न्यायिक समीक्षा से पूरी तरह मुक्त नहीं है। पीठ ने कहा, "अदालत इस बात पर विचार कर सकती है कि स्वतंत्रता से वंचित करने की वजह तर्कसंगत और वाजिब हैं।" गौरतलब है कि कोचर दंपती के अलावा सीबीआई ने वीडियोकॉन ग्रुप के संस्थापक वेणुगोपाल धूत को भी इसी मामले में गिरफ्तार किया था। हाईकोर्ट ने जनवरी, 2023 में उन्हें भी जमानत दे दी थी।