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17 साल की लड़की को कोर्ट ने दी मां बनने की इजाजत 'सहमति से बनाए संबंध' पर बॉम्बे HC की महत्वपूर्ण टिप्पणी

Right To Choice बॉम्बे हाई कोर्ट ने (किशोरी) के प्रजनन स्वतंत्रता के अधिकार को लेकर टिप्पणी करते हुए 17 वर्षीय पीड़िता को अपनी गर्भावस्था जारी रखने की इजाजत दी है। अदालत ने कहा कि अगर किशोरी चाहे तो वह उसे 26 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देती है। जानिए कोर्ट ने अहम फैसले में क्या-क्या कहा।

By Agency Edited By: Piyush Kumar Updated: Thu, 05 Sep 2024 03:46 PM (IST)
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17 वर्षीय पीड़िता को लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट ने की महत्वपूर्ण टिप्पणी।(फोटो सोर्स: जागरण)

पीटीआई, मुंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को 17 वर्षीय पीड़िता को अपनी गर्भावस्था जारी रखने की इजाजत दी है। कोर्ट ने कहा कि वह नाबालिग लड़की की प्रजनन स्वतंत्रता और पसंद के अधिकार के प्रति सचेत है।

लड़की को प्रजनन स्वतंत्रता का अधिकार: कोर्ट

न्यायमूर्ति ए एस गडकरी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि किशोरी ने शुरू में गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की थी, लेकिन बाद में उसने अपने बच्चे को जन्म देने का फैसला किया क्योंकि वह उस आदमी से शादी करना चाहती थी जिसने कथित तौर पर उसके साथ दुर्व्यवहार किया था। न्यायालय ने कहा, “हम याचिकाकर्ता (किशोरी) के प्रजनन स्वतंत्रता के अधिकार, शरीर पर उसकी स्वायत्तता और पसंद के अधिकार के प्रति सचेत हैं।”

अदालत ने कहा कि अगर किशोरी चाहे तो वह उसे 26 सप्ताह के गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने की अनुमति देती है। पीठ ने कहा- "चूंकि उसने गर्भावस्था जारी रखने की इच्छा व्यक्त की है, इसलिए वह ऐसा करने की पूरी तरह से हकदार है।"

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि लड़की और उसकी मां को गर्भावस्था के बारे में तब पता चला जब उसे बुखार की जांच के लिए ले जाया गया। बाद में 22 वर्षीय एक व्यक्ति के खिलाफ उसका यौन शोषण करने का मामला दर्ज किया गया। इसके बाद पीड़िता ने गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया। हालांकि, किशोरी ने बाद में दावा किया कि वह उस आदमी के साथ सहमति से रिश्ते में थी और उनका इरादा शादी करने और बच्चे को पालने का है।

सरकारी जेजे अस्पताल में एक मेडिकल बोर्ड द्वारा नाबालिग की जांच की गई, जिसने हाई कोर्ट को एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें कहा गया कि भ्रूण में कोई असामान्यता नहीं थी, लेकिन नाबालिग होने के कारण, वह बच्चे को जन्म देने के लिए उचित मानसिक स्थिति में नहीं थी। उच्च न्यायालय ने कहा कि किशोरी और उसकी मां दोनों ने गर्भावस्था को जारी रखने और इसे पूर्ण अवधि तक ले जाने के लिए अपना झुकाव दिखाया है। 

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