Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

राष्‍ट्रपति शी चिनफिंग के खतरनाक मंसूबे! विभिन्‍न देशों में बंदरगाहों के जरिए चीन बढ़ा रहा रणनीतिक पैंठ

चीन की नजरें अब खुद को मजबूत करने के लिए विभिन्‍न देशों के बंदरगाहों पर लगी हुई हैं। राष्‍ट्रपति शी अपने मंसूबों को पूरा करने की शुरुआत काफी समय पहले ही कर चुके हैं। एशिया यूरोप और अफ्रीका में वो अपने कदम जमा चुके हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 06 Nov 2022 10:48 AM (IST)
Hero Image
विभिन्‍न देशों के बंदरगाहों पर लगी है चीन की निगाह

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। चीन जिस तेजी से विश्‍व में पांव पसार रहा है उसकी तीन सबसे बड़ी वजह हैं। पहली वजह अमेरिका के वर्चस्‍व को तोड़ना है तो दूसरी वजह अपने उत्‍पादों के लिए नए बाजार तलाशना और तीसरी वजह है अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करना। इन मकसद को पाने के लिए चीन काफी पहले अपनी शुरुआत कर चुका है। चीन द्वारा विभिन्‍न देशों में बंदरगाहों को लीज पर लेने या उनका मालिकाना हक पाने की जो कवायद की है उसकी सबसे खास बात ये है कि ये सभी एक क्षेत्र में नहीं है। चीन ने अब तक जिन बंदगाहों को अपने नियंत्रण में लिया है वो दुनिया के अलग-अलग महाद्वीप का हिस्‍सा हैं। चीन की ये रणनीति बताती है कि वो ऐसा करके अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहता है।

यहां पर एक खास बात ये भी है कि चीन ने अब तक विश्‍व के अलग अलग क्षेत्रों में जो बढ़त बनाई है वो राष्‍ट्रपति शी चिनफिंग के कार्यकाल में ही बनाई है। एशिया की ही बात करें तो चीन का लगभग हर देश के साथ सीमा विवाद है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर पर उसके आक्रामक रुख को पूरी दुनिया जानती है। इसमें कोई शक नहीं है कि चीन एक विशाल देश होने के साथ विश्‍व की एक शक्ति और सुरक्षा परिषद का एक अहम स्‍थायी सदस्‍य भी है। इस लिहाज से चीन का कमतर करके नहीं आंका जा सकता है। आइये जानते हैं कि राष्‍ट्रपति शी के कार्यकाल में चीन ने कैसे-कैसे बढ़ाए कदम:-

अफ्रीका का जिबूती:

इस बंदरगाह को चीन ने मार्च 2016 में लिया था। इसका मकसद था चीन की पीएलए को मजबूती देना। Bab-el-Mandeb Strait में स्थित इस पोर्ट को चीन ने करीब 60 करोड़ डालर की राशि खर्च कर विकसित किया और 2017 में इसकी शुरूआत हुई थी। जिस जगह चीन का ये आर्मी और नेवल बेस स्थित है वो जगह Gulf of Aden और Red Sea को अलग करती है। यहां पर केवल चीन का ही मिलिट्री बेस नहीं है बल्कि अमेरिका और जापान का बेस पहले से यहां पर मौजूद है। ये जगह समुद्री लुटेरों की वजह से बदनाम है। चीन का कहना है कि यहां पर मिलिट्री बेस बनाने का मकसद इन लुटेरों से जहाजों की सुरक्षा और उनकी सुरक्षित आवाजी को सुनिश्चित करना है। साथ ही अपनी नेवी के जहाजों की निर्बाध आवाजाही को भी सुनिश्चित करना उसका मकसद है।

ग्रीस का Piraeus Port:

वर्ष 2007 में ग्रीस जब दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गया था तब उसने अपने सबसे बड़े परेयस पोर्ट की कुछ हिस्‍सेदारी 2009 में चीन की कंपनी कोस्‍को को बेची थी। 2010 में इस हिस्‍सेदारी को और बढ़ा दिया गया। 2016 में फिर कर्ज में डूबे ग्रीस को आर्थिक मदद की जरूरत पड़ी तो उसने अपने सभी बंदरगाहों को विदेशी कंपनियों को बेच दिया था। इसमें परेयस पोर्ट के दो तिहाई शेयर कोस्‍को को बेचे गए। बता दें कि ये पोर्ट पूर्वी भूमध्यसागर का सबसे बड़ा और यूरोप का 7वां बड़ा बंदरगाह है। वहीं चीन की कंपनी कोस्‍को विश्‍व की सबसे बड़ी कंटेनर शिपिंग कंपनी है जिसके विश्‍व में 50 से अधिक टर्मिनल हैं। परेयस पोर्ट का हक मिलने के बाद ग्रीस में चीन के उत्‍पादों की बाढ़ आ गई है।

सोलोमन आइसलैंड:

सोलोमन द्वीप में बंदरगाह को लीज पर लेने की प्रक्रिया इसी वर्ष अगस्‍त-सितंबर में पूरी हुई थी। सोलोमन द्वीप ने शुरुआत में कहा था कि चीन उसके यहां पर नेवल बेस या मिलिट्री बेस नहीं बनाएगा। हालांकि इसको लेकर अब तक तस्‍वीर साफ नहीं हो पाई है। ये बंदरगाह एक ऐसी जगह है जहां से अमेरिका, ब्रिटेन, आस्‍ट्रेलिया समेत दूसरे देशों के जंगी जहाज संयुक्‍त रूप से गश्‍त लगाते हैं।

जर्मनी का हेमबर्ग पोर्ट:

जर्मनी ने अपने सबसे बड़ी पोर्ट को चीन को सौंपने का फैसला हाल ही में लिया है। जर्मनी का कहना है कि वो हेमबर्ग पोर्ट की कुछ हिस्‍सेदारी चीन को बेचेगा। इसके बाद ही चांसलर ओलाफ स्‍कोल्‍त्‍ज ने बीजिंग की यात्रा की है।

श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट:

चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को वर्ष 2018 में 90 वर्षों के लिए लीज पर लिया है। ये सौदा कर्ज में डूबे श्रीलंका की मदद के ऐवज में किया गया था। हालांकि इसके पीछे चीन का मकसद भारत पर नजर रखना और साथ ही हिंद महासागर में दूसरे देशों के जंगी जहाजों की आवाजाही की जानकारी रखना था।

यूरोप और ईयू से अलग राह पर चला जर्मनी, चीन से बढ़ी नजदीकियों के आखिर क्‍या है राजनीतिक और रणनीतिक मायने

चीन की जर्मनी में होने वाली धमाकेदार एंट्री, ग्रीस के बाद अब बर्लिन पर कस रहा है ड्रैगन का शिकंजा