मोटे अनाज से दूर होगी किसानों की मुफलिसी
ज्वार बाजरा, मक्का, रागी, सावाँ, मड़ुआ व कोदो अब सुपर फूड में शुमार हो गये है। यह बड़े लोगों के खानपान का हिस्सा बन गया है।
सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। जिस मोटे अनाज को हिकारत की नजर से देखा जाता था, अब उन्हीं फसलों के भरोसे सरकार खेती को रफ्तार पकड़ाने की तैयारी कर रही है। घरेलू बाजार के साथ मोटे अनाज की निर्यात माँग भी बढ़ी है। इसी संभावना के भरोसे सरकार खेती को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाने के सपने देख रही है। इससे जहाँ खेती के दिन बहुरेंगे, वही किसानों के चेहरों पर मुस्कान आ सकती है।
ज्वार बाजरा, मक्का, रागी, सावाँ, मड़ुआ व कोदो अब सुपर फूड में शुमार हो गये है। यह बड़े लोगों के खानपान का हिस्सा बन गया है। तिलहन की तीसी अथवा अलसी अब बड़े लोगों के लिए अजूबी हो गई है। पंचतारा होटलों समेत बड़े लोगों के डाइनिंग टेबल पर इज्जत पाने लगी है। औषधीय गुणों से इसकी मांग में जबर्दस्त इजाफा हुआ है।
डाक्टरों के नुस्खे और डायटीशियन की सूची में जिन जिंसों को शामिल किया गया है किसानों का ध्यान उनकी व्यावसायिक खेती की ओर कभी गया ही नहीं। हरितक्त्राँति की अंधी दौड़ मे गेहूँ व धान की खेती के आगे बाकी परंपरागत फसलों की खेती गौण हो गई। नई पीढ़ी के लिए ये मोटे अनाज किसी अजूबा से कम नहीं है। उन्हीं फसलों की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार विशेष योजना तैयार कर रही है।
आमतौर पर इन फसलों की खेती असिंचित क्षेत्रों में होती रही है। इन फसलों की उपज को गरीबों के भोजन के रूप मे जाना जाता रहा है। शायद यह पहली बार होगा, जब सरकार का ध्यान इस ओर गया है। इसके लिए आरकेवीवाई के दूसरे चरण की शुरूआत की जा रही है। इसकी योजना को जल्दी ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा। वर्ष 2007 के पहले चरण मे शुरु इस योजना को कृ षि क्षेत्र की रफ्तार को गर्त से निकालकर 4 फ़ीसद की ऊँचाइयों तक पहुँचाने के लिए किया गया था। पाँच साल के शुरू की गई योजना वर्ष 2012 में खत्म हो गई। नतीजा देने वाली योजना के रूप में राज्यों ने इसे हाथोंहाथ लिया। 25000 हजार करोड़ रूपये की लागत से 11वीं पंचवर्षीय योजना वाली इस योजना का दूसरा चरण चालू होने जा रहा है, लेकिन इस बार यह मोटे अनाज वाली फसलों पर लक्षित होगी।
यह भी पढ़ें: गेहूं खरीद की तैयारी शुरू, समस्याओं से परेशान आढ़ती