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'प्यार और जंग के बीच कोई नियम नहीं होता', मद्रास हाईकोर्ट ने दुष्कर्म आरोपी को क्यों किया बरी?

पीड़िता और आरोपी के दूसरा बच्चा होने पर मद्रास हाईकोर्ट ने दुष्कर्म के आरोपी को बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि प्रेम और जंग में कोई नियम नहीं होता और ये मामला इसका प्रमाण है। दरअसल यह मामला 2014 के एक दुष्कर्म का है। पहले से एक बच्चा होने के बाद आरोपी और शिकायतकर्ता का दूसरा बच्चा भी हुआ। इसको देखते हुए कोर्ट ने फैसला सुनाया।

By Jagran News Edited By: Nidhi Avinash Updated: Tue, 13 Aug 2024 03:16 PM (IST)
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मद्रास हाईकोर्ट ने दुष्कर्म आरोपी को क्यों किया बरी? (Image: ANI)

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। 'प्यार और जंग में कोई नियम नहीं होते और यह मामला इसका प्रमाण है।' यह टिप्पणी मद्रास हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक दुष्कर्म दोषी को बरी करने के दौरान दी है। दरअसल, यह मामला एक दुष्कर्म का है। पहले बच्चे के पालन-पोषण के संबंध में समाधान के लिए कोर्ट ने शिकायतकर्ता और आरोपी को मध्यस्थता के लिए भेजने का आदेश दिया था। इस दौरान दोनों का दूसरा बच्चा भी हो गया। 

दुष्कर्म का मामला और कोर्ट ने सुनाया फैसला

दुष्कर्म के मामले में आरोपी को बरी करते हुए न्यायमूर्ति एन शेषशायी ने कहा, 'प्यार और युद्ध में कोई नियम नहीं होते और यह मामला शायद इस कथन का प्रमाण है।'

2014 का मामला, 2017 में आरोपी ने खटखटाया दरवाजा 

बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के अनुसार, मामले में मध्यस्थता का नतीजा यह हुआ कि दोनों पक्षों ने दूसरा बच्चा पैदा किया। पीड़िता द्वारा बच्चे को जन्म देने के बाद याचिकाकर्ता ने 2014 में आरोपी पर दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था। इसके बाद, आरोपी ने अपनी सजा के खिलाफ 2017 में अदालत का दरवाजा खटखटाया। इस दौरान आरोपी की अपील लंबित रही, जिसको देखते हुए अदालत ने पहले बच्चे के भविष्य को लेकर चिंता व्यक्त की। इसी को देखते हुए कोर्ट ने मामले को मध्यस्थता के लिए भेज दिया। 

मध्यस्थता के दौरान दोनों का हुआ दूसरा बच्चा

मध्यस्थता के दौरान ही आरोपी और शिकायतकर्ता का दूसरा बच्चा हो गया। बच्चा दोनों का ही इसकी पुष्टि हो जाने के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। न्यायालय ने कहा 'अगर अभियोक्ता और अपीलकर्ता अपनी स्वतंत्र इच्छा से जीने का रास्ता चुनते हैं, तो कानूनी व्यवस्था कोई महत्वपूर्ण काम नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि वह अपने निष्कर्ष को दर्ज करे कि इस मामले में अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया है कि वास्तव में कोई अपराध हुआ था।'

न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग

हालांकि, न्यायालय ने यह भी कहा कि मामले में न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग हुआ है क्योंकि शिकायतकर्ता ने झूठी एफआईआर दर्ज की होगी। हालांकि, यह बहुत पहले की कहानी है और न्यायालय इस मुद्दे पर दोबारा विचार करने का इरादा नहीं रखता है। 

पीड़िता जानती है अपना गलत-सही

बता दें शिकायतकर्ता लंबे समय तक कई बार आरोपी के साथ शारीरिक संबंध में रही थी और इस दौरान उसने कोई आपत्ति नहीं जताई थी। अदालत ने कहा, 'महिला ने अपीलकर्ता के खिलाफ तब तक कोई आरोप नहीं लगाया जब तक कि वह गर्भवती नहीं हो गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि अभियोक्ता एक वयस्क थी और वह जानती थी या कम से कम उसे पता होना चाहिए था कि वह क्या कर रही है।' इसको देखते हुए कोर्ट ने अपील स्वीकार करते हुए आरोपित व्यक्ति को सभी आरोपों से बरी कर दिया।

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