26 नवंबर को 9 सैटेलाइट की लांचिंग, विशेषज्ञों के अनुसार खेती-खनन से लेकर पर्यावरण तक को बचाने में मिलेगी मदद
ओसनसैट-3 सैटेलाइट से समुद्र के सतह और भीतर की जानकारी मिलेगी। ‘आनंद’ सैटेलाइट का फसलों पर कीटों के हमलों और अवैध खनन का पता लगाने के साथ प्रदूषण स्तर को जानने में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। चार सैटेलाइट ऐसी हैं जो IOT को आसान बनाएंगी
एस.के. सिंह, नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) शनिवार, 26 नवंबर 2022 को पीएसएलवी-सी54 लांच करने जा रहा है। यह पीएसएलवी नौ सैटेलाइट लेकर अंतरिक्ष में जाएगा और उन्हें विभिन्न कक्षाओं में स्थापित करेगा। ये सैटेलाइट हमारे जल, थल और वायु तीनों स्थानों की निगरानी करेंगी। ‘ओसनसैट-3’ सैटेलाइट की मदद से समुद्र की सतह पर हवा का दबाव और तापमान, समुद्र में मौजूद एल्गी और क्लोरोफिल की जानकारी मिलेगी। ‘आनंद’ सैटेलाइट का फसलों पर कीटों के हमलों और अवैध खनन का पता लगाने के साथ प्रदूषण स्तर को जानने में भी इस्तेमाल किया जा सकेगा। चार सैटेलाइट ऐसी भी हैं जो इंटरनेट ऑफ थिंग्स को आसान बनाएंगी।
श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से इस लांचिंग के लिए सुबह 11.56 बजे का समय तय किया गया है। इसरो का यह 84वां और इस साल का पांचवां मिशन है। यह पोलर सैटेलाइट लांच व्हीकल (PSLV) की 56वीं उड़ान है।
इंडियन स्पेस एसोसिएशन (ISpA) के डायरेक्टर जनरल लेफ्टिनेट जनरल (रिटायर्ड) ए.के. भट्ट ने जागरण प्राइम को बताया कि PSLV-C54 इन सभी सैटेलाइट को सन-सिंक्रोनस पोलर ऑर्बिट में स्थापित करेगा। सन-सिंक्रोनस का मतलब है कि जिस तरफ सूर्य रहता है उसी तरफ सैटेलाइट भी रहेगी। ये सभी लो अर्थ आर्बिट (LEO) सैटेलाइट हैं। पृथ्वी की सतह से 200 किलोमीटर से 2000 किलोमीटर तक की दूरी को लो अर्थ ऑर्बिट कहा जाता है।
PSLV-C54 जिन 9 सैटेलाइट को लेकर जाएगा उनमें सबसे महत्वपूर्ण ओसनसैट-3 अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट (EOS-06) है, बाकी आठ नैनो-सैटेलाइट हैं। ओसनसैट-3 का वजन 960 किलोग्राम है। इसे 723 किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में स्थापित किया जाएगा।
ओसनसैट-3: समुद्र की निगरानी
ओसनसैट-3 या EOS-6 ओसनसैट सीरीज की तीसरी पीढ़ी की सैटेलाइट है। जाहिर है कि यह पुरानी पीढ़ी की तुलना में काफी उन्नत है। इसमें ओसन कलर मॉनीटर (OCM-3), समुद्र की सतह के तापमान का मॉनीटर (SSTM) और केयू बैंड स्कैटरोमीटर (SCAT-3) इंस्ट्रूमेंट होंगे।
इस सैटेलाइट का मुख्य उद्देश्य समुद्र की सतह का अध्ययन करना, पानी में मौजूद सेडिमेंट और एरोसॉल का पता लगाना, फाइटोप्लैंकटन ब्लूम को मॉनिटर करना तथा क्लोरोफिल कंसेंट्रेशन पर नजर रखना है। फाइटोप्लैंकटन ब्लूम का मतलब है कि समुद्र में एल्गी और साइनोबैक्टीरिया जब तेजी से बढ़ते हैं, तो उनसे समुद्र के पूरे इकोसिस्टम और लोगों को नुकसान पहुंचता है। क्लोरोफिल से यह पता लगाने में मदद मिलती है कि पानी में कितनी मछलियां हैं।
लेफ्टिनेट जनरल भट्ट के अनुसार ओसनसैट-3 एक तरह से निरंतरता वाला मिशन है। अर्थात जो संस्थान ओसनसैट-2 की सेवाएं ले रहे हैं, उन्हें नई सैटेलाइट के माध्यम से सेवाएं मिलेंगी। ओसनसैट-2 को 23 सितंबर 2009 को लांच किया गया था। उसका वजन भी 960 किलोग्राम था। इस सीरीज की पहली सैटेलाइट ओसनसैट-1 1999 में लांच की गई थी।
आनंदः खेत-खनन से प्रदूषण तक की जानकारी
PSLV-C54 पर भेजी जाने वाली दूसरी महत्वपूर्ण सैटेलाइट भारतीय स्टार्टअप पिक्सल की ‘आनंद’ है। इसका वजन 15 किलोग्राम से भी कम है। खास बात यह है कि यह हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट है, जो सबसे आधुनिक तकनीक है। यह 150 से ज्यादा वेवलेंथ पर काम करेगी। नॉन-हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट लगभग 10 वेवलेंथ पर काम करती हैं। इस लिहाज से ‘आनंद’ में अब तक की सर्वश्रेष्ठ टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है। इसकी वजह से यह नॉन हाइपरस्पेक्ट्रल सैटेलाइट की तुलना में बेहतर तस्वीरें खींच सकती है।
हाइपरस्पेक्ट्रल इमेज का प्रयोग अनेक जगहों पर हो सकता है। खेती में फसलों पर कीटों के हमलों और मिट्टी की सेहत का पता लगाने, नेचरल डिजास्टर की गंभीरता को जानने, प्राकृतिक संसाधनों की मैपिंग करने, जंगलों की मैपिंग और उनकी कटाई का पता लगाने, प्रदूषण के स्तर को जानने, खनिजों के साथ-साथ अवैध खनन का पता लगाने में इन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है।
हाइपरस्पेक्ट्रल इमेज का इस्तेमाल युद्ध में भी संभव है। यह कैमोफ्लाज अर्थात किसी आवरण के भीतर का भी पता लगा सकता है। उदाहरण के लिए, दुश्मन के टैंक या अन्य वाहनों को जंगल में पत्तों से ढंक दिया गया हो, तो कुछ समय बाद उन पत्तों में क्लोरोफिल की कमी होने पर हाइपरस्पेक्ट्रल कैमरा में वह हिस्सा बाकी जंगल से अलग दिखेगा।
ले. जनरल भट्ट ने बताया कि पिक्सेल की योजना 36 सैटेलाइट लांच करने की है। अगले साल चार-पांच सैटेलाइट लांच की जाएंगी। संभवतः 2024 तक सभी 36 सैटेलाइट लांच कर दी जाए। उनकी मदद से पूरी धरती पर नजर रखी जा सकेगी। इसलिए इसे पृथ्वी का हेल्थ मॉनीटर भी कहा जा रहा है।
थाइबोल्ट 1 और 2: अमेच्योर रेडियो कम्युनिकेशन नैनो सैटेलाइट
2012 में स्थापित भारत के पहले स्पेसटेक स्टार्टअप ध्रुवा स्पेस की दो सैटेलाइट थाइबोल्ट 1 और थाइबोल्ट 2 भी लांच की जा रही हैं। दोनों 0.5यू क्यूबसैट सैटेलाइट हैं। अर्थात इनका आकार करीब 6 इंच के क्यूब का है, जिन्हें लो अर्थ ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। जून में ध्रुव स्पेस ने पीएसएलवी-सी53 पर सैटेलाइट ऑर्बिटल डेप्लॉयर की सफलतापूर्वक टेस्टिंग की थी।
थाइबोल्ट अमेच्योर रेडियो कम्युनिकेशन नैनो सैटेलाइट है। इसके जरिए कंपनी अमेच्योर (हैम) रेडियो पर फोकस कर रही है। इसलिए इस थाइबोल्ट मिशन को देश के कई अमेच्योर रेडियो संस्थानों का समर्थन हासिल है। संजय नेक्कांति, कृष्णा तेजा पेनमकुरु और अभय ईगूर ने स्टार फ्लीट अमेच्योर रेडियो क्लब से ही ध्रुवा स्पेस की शुरुआत की थी।
सीईओ संजय नेक्कांति के अनुसार, “थाइबोल्ट एक डिजाइन लैब था जिसका 2019 में ध्रुवा स्पेस में विलय किया गया। इस विलय से ध्रुवा स्पेस के नए युग की शुरुआत हुई।” थाइबोल्ट की स्थापना अभय ईगूर, केटी पेनमकुरु और चैतन्य डोरा सुरापुरेड्डी ने की थी। सीटीओ अभय ईगूर ने बताया कि थाइबोल्ट का शाब्दिक अर्थ है ‘योर थंडर’ यानी आपकी गर्जना। हमारे लिए यह शब्द हमारी सहनशीलता को दर्शाता है, क्योंकि हम एक दशक से एक स्पेस कंपनी बनने का प्रयास कर रहे हैं, जब यहां इसके लिए कोई ईकोसिस्टम तैयार नहीं था।
एस्ट्रोकास्टः इंटरनेट ऑफ थिंग्स को करेगी आसान
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (internet-of-things) पर काम करने वाली स्विस कम्युनिकेशन कंपनी एस्ट्रोकास्ट PSLV-C54 पर अपने चार नैनो सैटेलाइट लांच करेगी। इनका वजन 5 किलोग्राम है। इनका इस्तेमाल मशीन-टू-मशीन कम्युनिकेशन में किया जा सकेगा। एस्ट्रोकास्ट अभी तक 12 सैटेलाइट लांच कर चुकी है। इनमें से एक PSLV से लांच की गई थी, बाकी स्पेसएक्स के फाल्कन-9 से लांच की गई थीं। यह कुल मिलाकर 64 क्यूबसैट का कांस्टेलेशन स्थापित करना चाहती है। इनका इस्तेमाल खासतौर से दूरदराज के इलाकों में मैरिटाइम, कृषि, पर्यावरण, लैंड ट्रांसपोर्ट, माइनिंग, तेल एवं गैस तथा इंडस्ट्रियल आईओटी डिवाइस में किया जा सकेगा।
भूटानसैटः पड़ोसी देश को भारत की मदद
ले. जनरल भट्ट ने बताया कि यह नैनो सेटेलाइट है जिसे अर्थ ऑब्जर्वेशन के लिए बनाया गया है। इसका वजन 15 किलोग्राम है। यह एक क्यूबसैट है, अर्थात इसकी लंबाई-चौड़ाई-ऊंचाई 30 सेंटीमीटर है। हालांकि इसका रिजॉल्यूशन बहुत हाई नहीं है। इसे इस लिहाज से देखा जा सकता है कि भूटान में स्पेस टेक्नोलॉजी अभी शुरुआती अवस्था में है। इसके जरिए वे अपने देश को मैप करना चाहते हैं। भूटान इससे पहले भी एक सैटेलाइट लांच कर चुका है। उसमें भी भारत ने मदद की थी।