Article 370: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कौल ने घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन का किया जिक्र, बोले- घावों को भरने की जरूरत
अनुच्छेद 370 (Article 370) पर लिखे गए अपने अलग फैसले में जस्टिस कौल ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर अत्यंत भावुक टिप्पणी की है जिसमें उनका दर्द साफ झलकता है। उन्होंने लिखा है कि आतंक के चलते राज्य के पुरुषों-महिलाओं एवं बच्चों ने बहुत कुछ झेला है। इसे भुलाकर आगे बढ़ने के लिए जख्मों को ठीक करने की जरूरत है। श्रीनगर के मूल निवासी जस्टिस कौल स्वयं भी कश्मीरी ब्राह्मण हैं।
अरविंद शर्मा, नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 पर दिए अपने फैसले में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने कश्मीरी पंडितों के पलायन का जिक्र करते हुए 1980 से राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन पर एक सत्य और सुलह आयोग बनाने का सुझाव देते हुए कहा कि सच से ही सुलह का रास्ता निकलेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह आयोग कोर्ट आफ कमीशन के रूप में काम नहीं करेगा।
श्रीनगर के मूल निवासी जस्टिस कौल स्वयं भी कश्मीरी ब्राह्मण हैं। इसी महीने 25 तारीख को वह सेवानिवृत्त होने वाले हैं। अनुच्छेद 370 पर लिखे गए अपने अलग फैसले में जस्टिस कौल ने जम्मू-कश्मीर की स्थिति पर अत्यंत भावुक टिप्पणी की है, जिसमें उनका दर्द साफ झलकता है। उन्होंने लिखा है कि आतंक के चलते राज्य के पुरुषों-महिलाओं एवं बच्चों ने बहुत कुछ झेला है। इसे भुलाकर आगे बढ़ने के लिए जख्मों को ठीक करने की जरूरत है।
न्यायमूर्ति कौल ने क्या कहा?
राज्य एवं राज्य के बाहरी तत्वों द्वारा यहां के लोगों के विरुद्ध किए गए मानवाधिकार हनन की सामूहिक समझ विकसित करना ही मरहम लगाने की दिशा में पहला और निष्पक्ष प्रयास होगा। आयोग के गठन में शीघ्रता करने पर जोर देते हुए न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि स्मृतियों के धुंधली होने से पहले ही आयोग का गठन एक समय सीमा के अंदर कर लेना चाहिए, क्योंकि युवाओं की एक पूरी पीढ़ी पहले से ही अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है।
आयोग के सहारे काफी हद तक उनकी क्षतिपूर्ति की जा सकती है। उन्होंने सरकार को आयोग की स्थापना का सबसे अच्छा तरीका तैयार करने का सुझाव दिया और कहा कि सामाजिक संदर्भों के साथ-साथ हमें राज्य की ऐतिहासिक पहचान को भी ध्यान में रखना जरूरी होगा।
1980-90 आतंक को किया याद
जस्टिस कौल ने दक्षिण अफ्रीका में मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए गठित एक ऐसे ही आयोग का जिक्र करते हुए कहा कि कश्मीर घाटी के विभिन्न वर्गों ने भी पहले ऐसे ही आयोग बनाने की मांग की थी। अपनी भावुक टिप्पणी में जस्टिस कौल ने देश बंटवारे के तुरंत बाद घाटी में विदेशी आक्रमण का जिक्र करते हुए कहा कि तब जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया गया।
1980-90 के दौरान आतंक के चलते राज्य की आबादी का बड़ा हिस्सा पलायन करने पर मजबूर हो गया। फिर भी समस्या का समुचित निवारण नहीं किया गया, जिसके चलते हालात इतने बिगड़ गए कि सेना बुलानी पड़ गई। जस्टिस कौल ने कहा कि सेनाएं देश के दुश्मनों से लड़ने के लिए होती हैं।
जम्मू-कश्मीर के लोगों ने जो झेला है...
देश के भीतर कानून-व्यवस्था बनाने के लिए नहीं। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोगों ने जो झेला है, उससे मैं दुखी हूं। जस्टिस कौल ने आगाह किया कि सत्य और सुलह आयोग के गठन के बाद उसे आपराधिक अदालत (कोर्ट आफ कमीशन) में बदलने से बचना चाहिए। आयोग को मानवीय भावना के साथ दोनों पक्षों की बात सुननी चाहिए। सभी पक्षों का अलग-अलग ²ष्टिकोण और इनपुट शामिल होना चाहिए। पीडि़तों को अपनी व्यथा सुनाने का मौका मिलेगा और सुलह का रास्ता निकलेगा।
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