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देश में होनी चाहिए यौन शिक्षा कार्यक्रम की शुरुआत, सुप्रीम कोर्ट ने क्यों दिया ये सुझाव?

सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अश्लील वीडियो के अपराध पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार को समग्र रूप से यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करने का सुझाव दिया। इस कार्यक्रम में बच्चों की अश्लील वीडियो के कानूनी और नैतिक परिणामों को भी शामिल किया जाएगा। इससे अपराधियों को रोकने में मदद मिलेगी। यौन शिक्षा को लेकर फैले भ्रमों को दूर कर युवाओं को सहमति की स्पष्टता समझाई जानी चाहिए।

By Jagran News Edited By: Shubhrangi Goyal Updated: Mon, 23 Sep 2024 11:00 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने दिया यौन शिक्षा कार्यक्रम का सुझाव

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बच्चों के अश्लील वीडियो के अपराध पर लगाम लगाने के लिए केंद्र सरकार को समग्र रूप से यौन शिक्षा कार्यक्रम लागू करने का सुझाव दिया है। इस कार्यक्रम में अश्लील वीडियो के कानूनी और नैतिक परिणामों को भी शामिल किया जाना चाहिए। इससे अपराधियों को रोकने में मदद मिल सकती है। इस कार्यक्रम में यौन शिक्षा को लेकर फैले भ्रमों को दूर कर युवाओं को सहमति और उत्पीड़न की स्पष्टता समझाई जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें अश्लील वीडियो देखने और उसकी सामग्री रखने को पोक्सो और आइटी कानून में अपराध बताने वाले फैसले में कही।

'भारत में यौन शिक्षा को लेकर भ्रम फैला है'

कोर्ट ने यौन शिक्षा के बारे में किशोरों को सही जानकारी नहीं हो पाने में भारत में यौन शिक्षा पर बातचीत में हिचक और ऐसी शिक्षा को लेकर फैली भ्रम की स्थिति को बड़ी बाधा माना है। कोर्ट ने कहा कि भारत में यौन शिक्षा को लेकर व्यापक भ्रम है। यहां तक कि बहुत से माता-पिता और शिक्षक भी इसे लेकर संकीर्ण नजरिया रखते हैं और सेक्स के बारे में बात करना अनुचित व अनैतिक समझते हैं।

इस सामाजिक कलंक ने यौन स्वास्थ्य पर खुलकर बात करने के प्रति अनिच्छा पैदा की है जिस कारण किशोरों में जानकारी का महत्वपूर्ण अंतर आ जाता है। एक भ्रम यह भी है कि सेक्स एजुकेशन से युवाओं का व्यवहार गैरजिम्मेदाराना और स्वेच्छाचारी हो जाएगा। आलोचना करने वाले अक्सर कहते हैं कि यौन स्वास्थ्य और कंट्रासेप्टिव के बारे में जानकारी देने से किशोरों में यौन गतिविधियां बढ़ जाएंगी।

जबकि रिसर्च बताती है कि समग्र सेक्स एजुकेशन वास्तव में सेक्सुअल एक्टीविटी में देरी लाती है और जो लोग सेक्सुअली एक्टिव हैं, उन्हें सुरक्षित बनाती है। यह भी सोच है कि सेक्स एजुकेशन पश्चिम की धारणा है और यह भारतीय पारंपारिक मूल्यों से मेल नहीं खाती।

स्कूलों में सेक्स एजुकेशन प्रतिबंधित

इस सोच से कई राज्यों में स्कूलों में सेक्स एजुकेशन प्रतिबंधित हो गई। इस तरह का विरोध समग्र यौन स्वास्थ्य कार्यक्रम लागू करने में बाधा है और इसके कारण बहुत से किशोर-किशोरियों को सही जानकारी नहीं मिल पाती। इसके चलते किशोर और युवा इंटरनेट की ओर मुखातिब होते हैं जहां उन्हें बिना निगरानी और बिना किसी फिल्टर के सूचना मिलती है, जो कई बार गलत होती है एवं अस्वास्थ्यकर व्यवहार का बीज बो सकती है।

यह भी एक गलत धारणा है कि सेक्स एजुकेशन सिर्फ संतानोत्पत्ति के बायोलाजिकल पहलू तक ही सीमित है। कहा कि प्रभावी सेक्स एजुकेशन में व्यापक विषय शामिल होते हैं जिसमें स्वास्थ्य, रिलेशनशिप, सहमति, लिंग आधारित समानता और विविधिता का सम्मान शामिल होता है। लिंग आधारित समानता को बढ़ावा देने और यौन ¨हसा को कम करने के लिए इन विषयों पर ध्यान देना जरूरी है। कोर्ट ने झारखंड के उड़ान कार्यक्रम की सफलता की सराहना की।