विचाराधीन कैदियों को सुप्रीम कोर्ट से मिली बड़ी राहत, नये कानून का उठा सकते हैं लाभ; इन मामलों में मिलेगी जमानत
BNSS 497 जेलों में बंद पुराने विचाराधीन कैदियों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उन पर भी बीएनएसएस की धारा 479 लागू होने का आदेश दिया है। केंद्र सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट करने के बाद शुक्रवार को कोर्ट ने इसे लेकर फैसला सुनाया है। जानिए क्या है इस धारा का प्रावधान और कैदियों को कैसे मिलेगा इससे लाभ।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में साफ किया कि नए कानून भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 479 का लाभ सभी विचाराधीन कैदियों को मिलेगा, चाहें उनके मामले एक जुलाई से पहले ही क्यों न दर्ज हुए हों। यानी एक तिहाई सजा भुगतने पर जमानत पाने का लाभ नये पुराने सभी विचाराधीन कैदियों को समान रूप से मिलेगा।
केंद्र सरकार द्वारा कानून के पूर्व प्रभाव से लागू करने के बारे में स्थिति स्पष्ट किये जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश भर के जेल अधीक्षकों को जल्दी से जल्दी धारा 479 के प्रविधान लागू करने के आदेश दिये हैं। सीआरपीसी की जगह एक जुलाई से लागू हुई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 479 विचाराधीन कैदियों को अधिकतम जेल में रखने के बारे में प्रावधान करती है।
क्या है प्रावधान?
यह धारा कहती है कि पहली बार के अपराधी विचाराधीन कैदी अगर उस कानून में आरोपित अपराध में दी गई अधिकतम सजा की एक तिहाई जेल काट लेता है तो कोर्ट उसे बांड पर रिहा कर देगा। इसके अलावा उम्रकैद और मृत्युदंड की सजा के अलावा किसी अपराध में आरोपित विचाराधीन कैदी अगर कुल सजा की आधी सजा काट लेता है तो कोर्ट उसे जमानत पर रिहा कर देगा।
पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक तिहाई सजा काटने पर जमानत मिलने के प्रविधान को पूर्व प्रभाव से लागू करने के बारे में स्थिति स्पष्ट करने को कहा था। शुक्रवार को न्यायमूर्ति हिमा कोहली और संदीप मेहता की पीठ ने सुनवाई की। केंद्र की ओर से पेश एडीशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने स्थिति स्पष्ट करते हुए प्रविधानों को पूर्व प्रभाव से लागू होने की बात कही।
सभी कैदियों पर लागू होगा नियम
उन्होंने कहा कि एक तिहाई सजा भुगतने पर जमानत मिलने के बीएनएसएस की धारा 479 (1) के प्रविधान देश भर में सभी विचाराधीन कैदियों पर समान रूप से लागू होंगे, चाहें उनका अपराध एक जुलाई 2024 के पहले ही क्यों न रजिस्टर हुआ हो। केंद्र की ओर से स्थिति स्पष्ट किये जाने के बाद कोर्ट ने देश भर के जेल अधीक्षकों को इसे लागू करने का आदेश दिया।
कोर्ट ने कहा कि इसके मुताबिक विचाराधीन कैदियों की अर्जियों को जल्दी से जल्दी निपटाया जाए और दो महीने में प्रक्रिया पूरी करके कोर्ट में रिपोर्ट दी जाए। साथ ही कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे भी हलफनामा दाखिल कर बताएंगे कि कितने विचाराधीन कैदी ऐसे हैं, जिन पर यह प्रावधान लागू होते हैं और कितनी अर्जियां इस संबंध में आई हैं तथा कितनों की रिहाई हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा था जवाब
सुप्रीम कोर्ट जेलों में अत्यधिक भीड़ के मामले में सुनवाई कर रहा है। पिछली सुनवाई पर कोर्ट के मददगार न्यायमित्र वरिष्ठ वकील गौरव अग्रवाल ने नये कानून बीएनएसएस की धारा 479 का हवाला देते हुए कहा था कि पहली बार के अपराधी विचाराधीन कैदियों के लिए इसमें एक छूट है कि अगर उन्होंने आरोपित अपराध में निर्धारित अधिकतम सजा की एक तिहाई जेल काट ली है तो उन्हें रिहा कर दिया जाएगा। हालांकि, तभी सवाल उठा कि क्या यह कानून पूर्व प्रभाव से (रेट्रेस्पेक्टिव) लागू होगा। इस पर पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से पेश एएसजी ऐश्वर्या भाटी से निर्देश लेकर स्थिति स्पष्ट करने को कहा था।