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ट्रांसजेंडर, समलैंगिक और यौनकर्मी क्यों नहीं कर सकते रक्तदान? सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को ट्रांसजेंडर समलैंगिक और यौनकर्मियों को रक्तदान से बाहर रखने के केंद्र के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया। साथ ही राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और राष्ट्रीय रक्त आधान परिषद से भी जवाब मांगा। शीर्ष अदालत कार्यकर्ता शरीफ डी रंगनेकर द्वारा 2017 के दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

By Jagran News Edited By: Siddharth Chaurasiya Updated: Fri, 02 Aug 2024 10:32 PM (IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से एक याचिका पर जवाब मांगा है।

आईएएनएस, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र से उस याचिका पर जवाब मांगा जिसमें ट्रांसजेंडर, समलैंगिक और यौनकर्मियों को रक्तदान करने से रोकने वाले दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र सरकार, राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन और राष्ट्रीय रक्ताधान परिषद को नोटिस जारी किए।

सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती

शीर्ष अदालत कार्यकर्ता शरीफ डी रंगनेकर द्वारा 2017 के दिशानिर्देशों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी। दिशानिर्देश में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों (एमएसएम) और महिला यौनकर्मियों को रक्तदाता बनने से बाहर रखा गया है। वर्ष 2017 के दिशानिर्देश एचआईवी और हेपेटाइटिस संक्रमण या ‘ट्रांसफ्यूजन ट्रांसमिसिबल इंफेक्शन’ (टीटीआई) के जोखिम के कारण इन्हें रक्तदाता बनने से स्थायी रूप से रोकते हैं।

दायर याचिका में क्या कहा गया?

सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका कार्यकर्ता शरीफ डी रंगनेकर ने दाखिल की हुई है। गाइडलाइन्स में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, पुरुषों के साथ यौन संबंध रखने वाले पुरुषों (एमएसएम) और महिला यौनकर्मियों को रक्तदाता बनने से बाहर रखा गया है। करीब 9 साल पहले जारी किए ये दिशानिर्देश एचआईवी और हेपेटाइटिस संक्रमण जैसी बीमारियों को रोकने के लिए थे।

याचिका में कहा गया कि 2017 की गाइडलाइन संविधान के आर्टिकल 14, 15, 17 और 71 में बताए गए समानता, सम्मान और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। दावा है कि गाइडलाइन 1980 में अमेरिका में बनाए गए इसी तरह के गाइडलाइन से प्रेरित हैं। जबकि तब से लेकर अब तक इन गाइडलाइन में कई बार विचार और बदलाव किया जा चुका है। बिना किसी जांच के ही रक्तदान पर रोक लगा देना इस बात को मजबूत करता है कि इन समुदाय के लोग पहले से ही गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं।