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एशिया में ही क्‍यों हैं दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर, जानें- क्‍या है इसके पीछे की इनसाइड स्‍टोरी

सर्दियों की शुरुआत से ही भारत के कई शहरों की आबोहवा जानलेवा हो गई है। ये हाल केवल भारत का ही नहीं है बल्कि चीन के भी अधिकतर शहर इसी तरह से जानलेवा हवा की चपेट में हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Sun, 06 Nov 2022 12:24 PM (IST)
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जहरीली हवा की चपेट में एशिया के कई शहर

नई दिल्‍ली (आनलाइन डेस्‍क)। मौसम के करवट बदलते ही भारत समेत दूसरे देशों में हवा में प्रदूषण का स्‍तर अचानक बढ़ने लगा है। भारत की ही बात करें तो पश्चिम में स्थित अहमदाबाद और मुंबई से लकर कोलकाता और दक्षिण में बेंगलुरू तक लगभग सभी शहरों की हवा जहरीली है। दिल्‍ली और दूसरे शहरों की बात करें नोयडा में आज का एक्‍यूआई का स्‍तर 242, गुरुग्राम में 307, दिल्‍ली के मंडीखेड़ा इलाके में 589, आगरा में 170, कानपुर में 68, लखनऊ में 229, बनारस में 170 गया में 180 है।

चीन के कई शहरों की हवा भी जहरीली 

इसी तरह से चीन में भी राजधारी बीजिंग समेत लगभग हर शहर की हवा जहरीली है। नेपाल में काठमांडू, बांग्‍लादेश में ढाका की हवा भी जहरीली है। इन सभी जगहों की एक खास बात ये है कि ये सभी एशियाई देश हैं। आपको बता दें कि विश्‍व के सबसे प्रदूषित शहरों में एशिया के ही सबसे अधिक शहर भी शामिल हैं। इनमें पाकिस्‍तान, भारत, चीन और श्रीलंका शामिल है। ऐसे में ये सवाल मन में जरूर उठता है कि आखिर ऐसा क्‍यों है कि एशिया के इन्‍हीं देशों के शहर सबसे अधिक प्रदूषित है। इस सवाल का जवाब हमारे पास है।

3-4 अरब की आबादी 

आपको बता दें कि एशियाई देशों में शामिल भारत, पाकिस्‍तान, श्रीलंका, बांग्‍लादेश और चीन की ही यदि कुल आबादी का आंकलन किया जाए तो ये करीब 3-4 अरब के बीच है। ये सभी देश विकासशील देशों की सूची में शामिल हैं। ऐसे में इन देशों में पर उन्‍नत तकनीक का न होना, ढांचागत अर्थव्‍यवस्‍था में कमी, शिक्षा का निचला स्‍तर, रोजगार की कमी, लोगों के जीवन यापन का स्‍तर निम्‍न होना और सीमित साधन सभी यहां की हवा को जहरीला बनाने में बड़ा योगदान देते हैं।

कोयले की सबसे अधिक खपत 

आपको बता दें कि दुनिया में सबसे अधिक कोयले की खपत करने वाले देशों में चीन पहले नंबर पर तो भारत दूसरे नंबर पर आता है। इसके बाद अमेरिका और जर्मनी का नंबर आता है। वर्ष 2021 में दुनिया में कुल कोयला की खपत करीब 51 अरब टन रही है। भारत की ही यदि बात करें तो देश में ऊर्जा की जरूरत को पूरा करने में कोयला 55 फीसद तक योगदान देता है। चीन और भारत की दुनिया में सबसे अधिक कोयले की खरीद भी करते हैं।

धड़ल्‍ले से कोयले का इस्‍तेमाल 

भारत हो या चीन या फिर पाकिस्‍तान यहां पर कार्बन उत्‍सर्जन का स्‍तर काफी ऊंचा है। इसकी एक बड़ी वजह ऊर्जा के इस्‍तेमाल के लिए यहां पर भारी मात्रा में कोयले का इस्‍तेमाल किया जाता है। चाहे वो बिजली उत्‍पादन हो या कोई दूसरी जगह इसकी खपत हर जगह देखी जा सकती है। भारत के शहरों से लेकर दूर-दराज के इलाकों में ईंधन के रूप में कोयले के अलावा दूसरी चीजों जैसे- लकड़ी और गोबर के उपलों का इस्‍तेमाल धड़ल्‍ले से किया जाता है। इससे जो धुंआ निकलता है वो हवा को प्रदूषित करता है।

प्राकृतिक ऊर्जा के स्रोतों पर नहीं ध्‍यान 

खेतों में जलाई जाने वाली पराली की बात करें तो इसका योगदान भी प्रदूषण को बढ़ाने में रहा है। इसके बाद भारत समेत दूसरे एशियाई देशों में चलने वाले वाहनों से निकलने वाला धुंआ भी हवा को जानलेवा बना देता है। इन सभी देशों की एक बड़ी समस्‍या ये भी है कि अक्षय ऊर्जा या फिर ऊर्जा के प्राकृतिक स्रोतों की भूमिका ऊर्जा उत्‍पादन में काफी कम रही है। जैसे- सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में भारत, चीन समेत दूसरे एशियाई देश काफी पिछड़े हुए हैं। इसकी वजह से देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए हम कोयले पर ज्‍यादा निर्भर हैं। कोयला हवा को जहरीला बनाने में एक बड़ा कारण है।

हमारी आदतें हम पर ही भारी 

उन्‍नत तकनीक की कमी और हमारी 'जाने दो, कुछ नहीं होता' की आदत भी हवा को लगातार जानलेवा बनाने में सहायक साबित हो रही है। प्रदूषण में इजाफा करने में केवल यही चीजें अहम भूमिका नहीं निभाती हैं बल्कि दूसरी चीजें जैसे- निर्माण क्षेत्रों में बरती जाने वाली लापरवाही, जगह-जगह फैली गंदगी, प्‍लास्टिक और रबड़ को जलाकर उसका उपयोग करने की हमारी प्रवृति भी इसमें बड़ा योगदान निभाती हैं।  

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