Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

1988 से अब तक 42 सांसदों ने गंवाई संसद सदस्यता, 14वीं लोकसभा के सबसे ज्यादा 19 माननीय हैं शामिल

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 बीते दिनों चर्चाओं का केंद्र रहा है। बता दें कि इस अधिनियिम के तहत 1988 से अब तक 42 सांसदों की सदस्यता गई है। 14वीं लोकसभा के सबसे ज्यादा 19 सांसद शामिल हैं।

By AgencyEdited By: Mohd FaisalUpdated: Sun, 07 May 2023 03:30 PM (IST)
Hero Image
1988 से अब तक 42 सांसदों ने गंवाई संसद सदस्यता (फाइल फोटो)

नई दिल्ली, एजेंसी। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को हाल ही में मोदी सरनेम मामले में सूरत कोर्ट ने सजा सुनाई थी। जिसके बाद उन्हें अपनी लोकसभा की सदस्यता भी गंवानी पड़ी। ऐसे में बीते दिनों भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 चर्चाओं का केंद्र रहा है। बता दें कि इस अधिनियिम के तहत 1988 से अब तक 42 सांसदों की सदस्यता गई है। 14वीं लोकसभा के सबसे ज्यादा 19 सांसद शामिल हैं।

इन कारणों से गई नेताओं की संसद सदस्यता

दरअसल, इन सांसदों की अयोग्यता पर फैसला राजनीतिक निष्ठा को बदलना, एक सांसद के लिए अशोभनीय आचरण करना और दो साल या उससे अधिक की जेल की सजा वाले अपराधों के लिए अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद विभिन्न आधारों पर लिया गया है। जिन सांसदों की आयोग्यता हाल ही में गई है, उनमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, NCP नेता मोहम्मद फैजल और बसपा नेता अफजल अंसारी शामिल हैं। अदालतों द्वारा उन्हें दो साल से अधिक की सजा के बाद जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान इन पर लागू हुए हैं।

राहुल गांधी ने हाई कोर्ट में दी फैसले को चुनौती

बता दें कि लोकसभा में लक्षद्वीप का प्रतिनिधित्व करने वाले फैजल की अयोग्यता को केरल उच्च न्यायालय से हत्या के प्रयास के मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने के बाद रद्द कर दिया गया था। हालांकि, राहुल गांधी ने मोदी सरनेम से जुड़े आपराधिक मानहानि के मामले में राहत पाने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया है, जिसमें सूरत की एक अदालत ने उन्हें दो साल की जेल की सजा सुनाई थी।

1985 में पहली बार गई थी इस नेता की सदस्यता

बताते चलें कि 1985 में दलबदल विरोधी कानून लागू होने के बाद लोकसभा के एक सदस्य को अयोग्य घोषित करने का पहला मामला कांग्रेस के सदस्य लालदुहोमा का था, जिन्होंने मिजो नेशनल यूनियन के उम्मीदवार के रूप में मिजोरम विधानसभा चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल किया था। नौवीं लोकसभा में जब तत्कालीन जनता दल के नेता वीपी सिंह ने गठबंधन सरकार बनाई थी, तब नौ लोकसभा सदस्यों को दलबदल विरोधी कानून का उल्लंघन करने पर अयोग्य घोषित कर दिया गया था।

14वीं लोकसभा में 19 सांसदों पर हुई कार्रवाई

हालांकि, 14वीं लोकसभा में 10 सदस्यों को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी और जुलाई 2008 में यूपीए-1 सरकार द्वारा विश्वास मत के दौरान क्रॉस वोटिंग के लिए 9 सदस्यों को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी। वहीं, 2005 में भाजपा के छह सदस्यों, बसपा के दो और कांग्रेस और राजद के एक-एक सदस्य को 'कैश फॉर क्वेश्चन' घोटाले को लेकर लोकसभा से निष्कासित कर दिया गया था। बसपा के एक राज्यसभा सदस्य को भी सदन से निष्कासित कर दिया गया था।

10वीं लोकसभा में आयोग्य ठहराए गए चार सदस्य

वहीं, 10वीं लोकसभा में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने गठबंधन सरकार का नेतृत्व किया था। इस दौरान चार सदस्यों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत सदन से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। दल-बदल-विरोधी कानून के तहत राज्यसभा सदस्य को अयोग्य घोषित करने का अपना भी इतिहास रहा है। इसके तहत मुफ्ती मोहम्मद सईद (1989), सत्यपाल मलिक (1989), शरद यादव (2017) और अली अनवर (2017) को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी है।

शिबू सोरेन और जया बच्चन की जा चुकी है सदस्यता

इसके साथ ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन और समाजवादी पार्टी की सदस्य जया बच्चन को साल 2001 और 2006 में लाभ का पद धारण करने के लिए राज्यसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था। सोरेन जहां झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे, वहीं, जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष थी। इसके साथ ही चारा घोटाले में दोषी ठहराए जाने के बाद राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद और जद (यू) सदस्य जगदीश शर्मा को लोकसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।